मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

मैं बहुत विचलित हूँ इस शहर में अब ..

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मैं बहुत विचलित हूँ इस शहर में अब ..




आज मैंने फिर देखा है

सड़कों पर इंसानी खून
 
मांस के चीथड़े
 
लहूलुहान इंसानियत
 

भेड़ियों ने दिन दहाड़े किया अपना काम
 
जिनके कंधों पर था
 
सुरक्षा का भार
 
वे सोते रहे गहरी नींद में
 

चारमीनार पर फिर से
 
दीखने लगीं हैं दरारे
 
खामोश है गोलकुंडा
 
बूढ़े खंडहर के रूप में 

शांतिदूत गौतमबुद्ध की प्रतिमा

हुसैन सागर के बीच

एक दम नि:शब्द 
 

मैं बहुत विचलित हूँ
 
इस शहर में अब

 .....

21/02/2013 की शाम हैदराबाद में हुए बम विस्फोट के बाद लिखी
 एक रचना
 .
  हैदराबाद बम विस्फोट 2013 में अब तक 16  व्यक्तियों की मृत्यु हो 
चुकी है। 6 मरणासन्न व्यक्तियों सहित लगभग 120 लोग घायल हैं।

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें


 



















कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें
1

रात लाएगी सहर
आँख क्यों करते हो तर।
कैसे ना उम्मीद में
जिन्दगी होगी बसर।   
बढ़ सदा बेखौफ हो
दिल में रख बिल्कुल न डर।
कल तुम्हें है झूमना
पा के खुशियों की खबर।
टोकते रहने से भी
कुछ न कुछ पड़ता असर।

2

तुम नदी की धार में पतवार बिन   
जंग मुश्किल जीतना हथियार बिन।   
खूब उत्पादन हुआ पर देखिए
सड़ रहा है माल अब बाजार बिन।   
साथ चलती हैं कई मजबूरियाँ
राह कटती हैं नहीं उदगार बिन।   
खौफ से है हर तरफ खामोशियाँ
रोग बढ़ता जा रहा उपचार बिन।   
बज़्म में आके हुआ एहसास यह       
दिल तड़पता है यहाँ दिलदार बिन।

3
      
दो घड़ी के लिए ठहर जाएँ
फैसला आज आप कर जाएँ।

रात पहले ही हो चुकी काफी
अब अँधेरों में हम किधर जाएँ।

दे चुके हैं जुबान हम सबको
इस तरह अब नहीं मुकर जाएँ।

हम यहाँ हैं, सँभाल लेंगे सब
आप निश्चिन्त हो के घर जाएँ।

बात मेरी भी आप रक्खेंगे
राजधानी तरफ अगर जाएँ।
   
संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

शिरोमणि महतो की कविताएं



हम झारखण्ड के युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं प्रकाशित कर रहे हैं। झारखण्ड में जीवन-यापन करते हुए वहाँ की जनपदीय सोच को अभिव्यक्त करना जोखिम भरा काम है, हमने शिरोमणि महतो की उन कविताओं को तरजीह दी है। जिसमें उनका जनपद, उनका परिवेष मुखर होता है। बेशक अपने परिवेश के शिरोमणि महतो अच्छे प्रवक्ता हैं। इस उत्तर आधुनिक समय में झारखण्ड और वहां की चिन्ताएं विश्व-पटल पर रखने का कौशल शिरोमणि महतो में है। वह बड़ी बारीकी से आस-पास विचरण करते समय की चुनौतियों को महसूस करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं कि ऐसे कठिन समय में एक लोकधर्मी कवि की क्या भूमिका होनी चाहिए?

अकाल


पिछले साल सूखाड़ था 
इस साल अकाल हो गया 
सूखाड़ की नींब पर
अकाल का खूँटा खड़ा होता है
घर में एक भी 
अनाज का बीटा नहीं
घड़े-हंड़े सब खाली-खाली
किसी में एक भी दाना नहीं
छप्पर से भूखे चूहे गिरते
और तडप कर दम तोड़ देते !
अकाल केवल अनाज का नहीं
पानी का भी अकाल है.... 
 कुँआ पोखर नदी नाले 
 सब के सब सूख गये 
 भूखे-प्यासे पशु पक्षी 
 भटक रहे इधर-उधर
और तड़प-तड़प दम तोड़ रहे.... 
 अकाल का मायने 
 ‘-काल’  
 फिर यह क्यों सिद्ध हो रहा
-महाकाल ! रूप रंग आकार 
 एक होने के बावजूद
कितना अलग होता है-
आदमी का मिजाज 
और उसका काम-काज !!

झगड़ा 

 सबके घरों में
अक्सर होता है-झगड़ा 
लोग भूल जाते  
लोहू का संबंध  
जन्मों का बंधन 
 झगड़े में अक्सर आदमी  
 अपना आपा खो बैठता है 
 तब कुछ भी नहीं होता
 उसके बस में  
 मुँह से बरबस 
  गालियाँ निकलने लगती हैं
  जैसे अंधड़ के आने पर 
  पेड़ के पत्ते झड़ने लगते हैं.
  झगड़ा से आदमी का 
  घर टूटता है  
 सर फूटता है 
 मन फटता है   
 और बंद होते हैं 
 आत्मा के द्वार

पता  : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144  मोबाईल  : 9931552982