शनिवार, 31 अगस्त 2013

हिंदी हाइगा के लिए महायज्ञ

संपादिका ऋता शेखर का हिंदी हाइगा के लिए महायज्ञ-"हिंदी-हाइगा"

-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

हाइकु, हिंदी हाइकु, हाइगा और अब हिंदी हाइगा. जापान से नि:सृत यह विधा अब केवल जापानी भाषा की ही नहीं रह गयी, बल्कि दुनिया की अन्य भाषाएँ भी इस पर अपना प्यार छलका रही हैं. जिस प्रकार अरबी भाषा की काव्य-विधा ग़ज़ल ने अपने मोहपाश में विभिन्न भाषाओँ को क़ैद कर लिया, वही कशिश हाइकु में भी है. हिंदी के साहित्यकार भी हाइकु काव्य-विधा के आकर्षण, भाव ग्राह्य-क्षमता, गंभीरता तथा गहराई से प्रभावित हुए और हाइकु हिंदी साहित्य में उपस्थित हो गया. आज विपुल मात्रा में हाइकु लिखे जा रहे हैं. पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं. नए-नए संकलन आ रहे हैं. आज हाइकु पर गोष्ठियां व सेमिनार आयोजित हो रहे हैं। ये सब निश्चित रूप से हाइकु की दिनोंदिन बढ़ती जा रही लोकप्रियता के प्रमाण हैं.
जापानियों की हर तकनीक का विकास नैनो टेक्नोलोजी अर्थात सूक्ष्म तकनीक पर आधारित है और उनके निरंतर विकास करने व गतिशील होने का सर्वाधिक प्रबल प्रमाण यह 'सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की ओर प्रवाह' है। संभवत: इसी सोच का परिणाम हाइकु भी रहे होंगे. जब जापानी साहित्य के अभियंताओं ने सूक्ष्मतम छंद की कल्पना की होगी तो निश्चित रूप से 'गागर में सागर' या 'बिंदु में सिन्धु' की तलाश में  हाइकु ने अपना आकार ग्रहण कर लिया होगा. इस सूक्ष्मतम छंद को प्रतिष्ठा प्रदान करने का श्रेय मात्सुओ बाशो (१६४४-९४) को जाता है. सत्रहंवी सदी में जापान में उद्भूत इस छंद को वर्तमान में अनेक भाषाओँ ने आत्मसात कर लिया है. भारत में हाइकु लाने का श्रेय कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर को जाता है. वर्तमान में हिंदी ने हाइकु के साथ-साथ हाइगा का भी अनुकरण किया है. हाइगा जापानी चित्रकला तकनीक की एक विशिष्ट शैली है, जिसका तात्पर्य है- 'चित्र हाइकु'. इसे हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं की हाइकु को उसी के अनुकूल चित्र के साथ समायोजित कर देने की कला हाइगा है. हाइगा की शुरुवात भी सत्रहंवी सदी में जापान में ही हुई. अत: हाइगा को हाइकु आधारित चित्रमय कविता कह सकते हैं.
हिंदी में हाइकु के जितने प्रयास हुए हैं, उस दृष्टि से हाइगा के प्रयास बहुत नहीं हुए हैं. हिंदी हाइगा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास व कार्य अभी भी न्यून हैं. इस क्रम में सुश्री ऋता शेखर 'मधु' का नाम आज की तारीख में अग्रणी है, जिन्होंने इंटरनेट में एक ब्लॉग (www.hindihaiga.blogspot.com) के माध्यम से हिंदी हाइगा के उन्नयन का बीड़ा उठाया है. विभिन्न हाइकुकारों के हाइकुओं को हाइगा का रूप प्रदान कर ब्लॉग के माध्यम से पूरी दुनिया के समक्ष परोसने का यह श्रमसाध्य कार्य वह पूरी तन्मयता एवं सक्रियता से पिछले दो वर्षों से निरंतर कर रही हैं. उनकी इस लगन एवं समर्पण का ही प्रतिफल है कि उनके संपादन में 'हिंदी हाइगा' पुस्तक का प्रकाशन संभव हो सका. जहाँ तक मेरी जानकारी है हिंदी हाइगा के सन्दर्भ में इस प्रकार का यह प्रथम प्रयास है। यह एक समवेत संकलन है, जिसमें देश-विदेश के हिंदी के छत्तीस उत्कृष्ट हाइकुकारों के चुनिन्दा हाइगा सम्मिलित किये गए हैं। वरिष्ठ हाइकु-लेखिका एवं उत्कृष्ट चित्रकारा ऋता शेखर जी के संपादन एवं संयोजन में प्रकाशित यह पुस्तक 'हिंदी हाइगा' अपने आप में अनूठी एवं विशिष्ट है.   
हिंदी हाइगा के क्षेत्र में छिटपुट प्रयासों से दूर यह पुस्तक एकदिशीय लक्ष्य एवं पूर्ण समर्पण का परिणाम हैं. इस सार्थक परिणाम का पूरा श्रेय नि:संदेह 'मधु' जी को जाता है, जिन्होंने एक-एक हाइकुरूपी मनकों को इस प्रकार से इस मालारूपी पुस्तक में पिरोया है कि इस पुस्तक का पाठक-दर्शक पढ़कर-देखकर न केवल 'वाह-वाह' कह उठता है, बल्कि दांतोंतले उंगली दबाने को भी मज़बूर हो जाता है. उत्कृष्ट कार्य सदैव स्वयं बोलता है और यही कार्य इस हिंदी हाइगा पुस्तक में भी किया गया है, जिसकी आभा से चकाचौंध हुए बिना रह पाना मुश्किल है.
इस संकलन में जहाँ एक ओर हिंदी हाइकु के शलाका-पुरुष रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु' जी के हाइगा हैं, वहीँ वरिष्ठ हाइकु-लेखिकाओं डॉ. सुधा गुप्ता, डॉ. हरदीप संधू व डॉ. भावना कुंवर के भी हाइगा भी शामिल हैं. कुछ अन्य स्थापित हाइकुकारों एवं प्रतिभावान नए हाइकूकारों को भी इस संकलन में स्थान मिला है. हाइकु के अन्य स्थापित रचनाकारों में स्वयं संपादिका ऋता शेखर 'मधु', डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति, रवि रंजन, डॉ. अनीता कपूर तथा  प्रियंका गुप्ता आदि के नाम प्रमुख हैं. हाइकुकार दिलबाग विर्क, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, डॉ. जेन्नी शबनम, रश्मिप्रभा, नवीन सी. चतुर्वेदी तथा एम. कुश्वंश आदि के हाइगा भी संकलन की आभा में वृद्धि करते हैं.
बड़े आकार की तिरपन पृष्ठ की यह पुस्तक विद्या प्रेस, पटना से प्रकाशित है, जिसके सभी पृष्ठ पूर्णतया रंगीन एवं लेमिनेटेड हैं. पुस्तक का मूल्य पांच सौ उञ्चास रुपये मात्र है.
हिंदी हाइगा के विकास-क्रम में इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए सुश्री ऋता शेखर 'मधु' जी को कोटिक बधाइयाँ। हिंदी हाइकु और हिंदी हाइगा जगत को भविष्य में भी उनसे इस तरह के और संकलनों की अपेक्षा रहेगी।



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मंगलवार, 6 अगस्त 2013

कहानी-आस्था की अॅंधेरी खोह का सच

                    25 दिसम्बर 1980 को उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जनपद के फरीदपुर नामक गांव में जन्में प्रेमचंद्र नंदन ने लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से की । लगभग दो वर्षों तक पत्रकारिता करने और कुछ वर्षों तक इधर-उधर भटकने के उपरांत अध्यापन के साथ-साथ कविताएँ, कहानियाँ, लघुकथाएँ एवं समसामयिक लेखों आदि का लेखन एवं विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। एक कविता संकलन -सपने जिंदा हैं अभी , 2005 में प्रकाशित ।
               

आस्था की अॅंधेरी खोह का सच




 प्रेम नंदन

                    यह एक काल्पनिक कथा है।इसके चरित्र, स्थान, घटनायें, मंतव्य सभी कुछ काल्पनिक हैं। इनका वास्तविक जीवन से कोई भी संबंध नहीं है-लेखक।
                    यमुना नदी के किनारे स्थित एक भव्य आश्रम। आश्रम के बीचो बीच एक विशाल और भव्य मंदिर। मंदिर से सटा हुआ साधुओं एवं आश्रम के महंत का आलीशान निवास। मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक गौशाला, जहॉ भक्तों द्वारा दान की गई सैकड़ों गायें जो साधु-सन्यासियों को दूध घी से नहलाने के लिए हमेशा तैयार रहा करती थीं। आश्रम के एक कोने में भक्तों एवं आगन्तुकों के ठहरने और विश्राम करने के लिए एक विशाल तिमंजिली इमारत ।थोड़े कम शब्दों में कहें तो एक पंचसितारा आश्रम।आश्रम में साधुओं-सन्यासियों की भारी फौज। आश्रम के महंत का पूरे क्षे़त्र में बड़ा सम्मान था और आश्रम में ‘सेवा‘ करने वाले एवं चढ़ावा चढ़ाने वाले भक्तों का तांता लगा रहता था। नेताओं और मंत्रियों तक का उस आश्रम में आना-जाना था। दूर-दूर तक आश्रम की धाक थी और लोगो का मानना था कि बाबा की जिस पर भी कृपा हो जाये उसके सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सेवा करने से आदमी धनधान्य से परिपूर्ण हो जाते हैं। इसी विश्वास पर सवार होकर बाबा की कीर्ति दूर तक फैली थी और आश्रम में बारहों महीने श्रद्धालुओें की भारी भीड़ जमा रहती थी।
                  उसी क्षेत्र के एक कस्बे में रामराज का परिवार रहता था जो बाबा का परमभक्त था । रामराज के यहॉ दूध का व्यवसाय होता था और बाबा की दया से खूब फल-फूल रहा था।रामराज का परिवार अपने व्यवसाय में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था और जैसे जैसे उसकी तरक्की हो रही थी उसके चौगुने अनुपात में बाबा पर उसके पाविार की आसक्ति भी बढ़ती जा रही थी। उसके परिवार का कोई न सदस्य प्रतिदिन बाबा के आश्रम में सेवा के लिए हाजिर रहता, उसकी पत्नी , बेटे और बेटी भी बाबा की सेवा करके अपने को सौभाग्यवती समझती । रामराज के परिवार की इस भक्तिभावना के कारण आश्रम में उसके परिवार को विशिष्ट दर्जा प्राप्त था। बाबाजी की दया से रामराज का एक पुत्री और तीन पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था। सम्पन्न होने के साथ-साथ बाबाजी का विश्वासपात्र होने के कारण पूरे क्षेत्र में उसका बड़ा सम्मान था। रामराज के परिवार की ही तरह पूरे क्षेत्र में तमाम ऐसे परिवार थे जो आश्रम के स्थायी सेवक थे।
                      रामराज के परिवार का छोटा से छोटा काम भी बाबा की अनुमति के बिना न होता था।एक तरह से उसके परिवार के सभी निर्णयों पर बाबा का एकाधिकार था ।
                       रामराज का बड़ा लड़का रोहित पढ़-लिखकर जब रेलवे में अफसर हो गया तो उसकी शादी के लिए तमाम लड़की वाले आने लगे। रामराज उनसे कहता कि पहले बाबाजी लड़की देखेंगें, वे जो लड़की पसंद करेंगे वही उनकी बहू बनेगी।
                    कुछ लड़की वाले नाक-भौं सिकोड़ते ,कुछ अपनी लड़की बाबाजी केा दिखाने को तैयार हो जाते। इस तरह रामराज के लड़के के लिए जो भी रिस्ते आते उनमें से बहू ढूढने का काम बाबाजी के जिम्मे सौंप कर रामराज निश्चिंत हो अपने काम धंधें में मस्त हो जाते।
                   बाबा का लड़की देखने का तरीका बड़ा अजीब था। वह लड़कियों को अकेले अपने कमरे में देखता,वह उन्हे अपने सामने बैठा लेता ,उनके दोनो हाथ अपने हाथ में लेकर देर तक घूरता रहता ,बाबा की तीक्ष्ण नजरें उनके शरीर को बींधती रहती। फिर बाबा लड़कियों से तरह -तरह क सवाल करता जिसके चलते कुछ लड़कियों ने तो अपनी तरफ से मना कर दिया कुछ के मॉ-बापों ने जब बाबा की हरकतें सुनी तो उन्होंने भी मना कर दिया।
पता नहीं क्या बात थी कि अब पूरे क्षे़त्र में कोई भी परिवार रामराज के यहॉ अपनी बेटी देने को तैयार न था !
रामराज के एक दूर के रिस्तेदार रामदीन कन्नौज में रहते थे। वह रिटायर्ड फौजी थे और आधुनिक विचारों के आदमी थे । उनकी इकलौती और लाडली बेटी नेहा, कानपुर में रहकर पढ़ाई कर रही थी । एक बार किसी कार्यक्रम में वे रामराज के यहॉ आये तो उन्होने रामराज से अपनी बेटी नेहा के विवाह की बात चलायी तो रामराज ने कहा कि बहू तो बाबाजी ही पसंद करेंगे, ऐसा करो किसी दिन अपनी बेटी को लेकर आश्रम आ जाओं वहीं पर हम लोग भी लड़की देख लेंगे और बाबाजी भी देख लेंगे अगर लड़की बाबाजी को पसंद आ गयी तो रिस्ता पक्का समझो।
रामदीन बोले-‘‘शादी आपके लड़के को करनी है या बाबाजी को । ऐसा करिये आप किसी भी दिन हमारे घर आकर लड़की देख लीजिए ,अपने लड़के को भी लेते आईये ’’
                       रामराज तपाक से बोले-‘‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता, हमारे घर का कोई भी काम बाबाजी की अनुमति के बिना नहीं होता,उनकी इच्छा हमारे लिए भगवान की इच्छा है। हमारे घर की बहू भी वही लड़की बनेगी जिसे बाबाजी पसंद करेंगे। यदि आप हमारे यहॉ अपनी लड़की का विवाह करना चाहते हैं तो जैसा हम कहते हैं वैसा करना पड़ेगा।’’

                    रामदीन पहले तो हिचकिचाये फिर तैयार हो गये।उन्हे और क्या चाहिये था ।रामराज का धनधान्य से भरा पूरा परिवार, उस पर खूबसूरत और नौकरीपेशा लड़का ,वे बाबाजी को अपनी लड़की दिखाने के लिए तैयार हो गये।
                   रामराज के बताये समय के अनुसार रामदीन परिवार सहित शरदीय नवरात्रि के पावन दिनों में बाबाजी के आश्रम जा पहुचे, जहॉ पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार रामराज अपने पूरे परिवार के साथ आश्रम में पहले से ही मौजूद था।
                    नेहा ने देखा, बाबाजी एक तख्त पर कमर में पीताम्बर लपेटे लेटे हुए हैं। रामराज की पत्नी उनके पैर दबा रही है और उनकी बेटी बाबा के शरीर पर मालिश करने में लगी है।
                 रामदीन ने आश्रम पहुंचकर सपरिवार बाबा के चरणेां में साष्टांग प्रणाम किया। रामराज के परिवार के सभी सदस्यों को नेहा पहली ही नजर में पसंद आ गई क्योकि नेहा वास्तव में खूबसूरत थी। लेकिन उनकी पसंद बाबाजी की मुहर के बिना बेकार थी।रामराज बोले-हमें तो आपकी लड़की बहुत पसंद है लेकिन जब तक बाबाजी उसे पसंद नहीं कर लेते हम कुछ नहीं कह सकते ।
इस बीच बाबाजी भी नेहा को कनखियों से देख चुके थे। थोड़ी देर बाद वे तख्त से उठकर अपने कमरे की ओर जाते हुए बोले-‘‘ लड़की को मेरे कमरे में भेजो।’’
नेहा के साथ उसके मॉ-बाप भी बाबा के कमरे की ओर जाने लगे तो रामराज ने उन्हें रोककर कहा-‘‘ बाबाजी अकेले में ही लड़की देखते हैं।’’

                          नेहा ने बाबा के कमरे में घुसते ही देखा कि पूरा कमरा राजसी ठाट-बाट से सजा है और कमरे में खुशबूदार अगरबत्ती का धुऑ भरा हुआ है। बाबा एक तख्त पर बैठे हुए मुस्कुराते हुए नेहा को उसी तख्त पर बैठने का इशारा किया। नेहा बाबा के सामने ही चुपचाप बैठ गई। बाबाजी ने जब नेहा के दोनो हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी ऑखों में घूरकर देखा तो नेहा थर-थर कॉपने लगी ।
बाबाजी बोले-‘‘ डरो नही बेटी, तुम्हारा भाग्य बहुत तेज है जो तुम इतने अच्छे घर की बहू बनने जा रही हो।’’
नेहा निरीह-सी चुपचाप बैठी रही। बाबा की नजरें उसके शरीर पर चीटियों की तरह रेंग रहीं थीं। उसकी नाजुक हथेलियॉ अब भी बाबा के हाथों में थी ।
                             नेहा को वहॉ अपनी सांस घुटती जैसी महसूस हुई उसने अपने हाथ बाबाजी के हाथों से छुड़ाया और दरवाजे की ओर तेजी से भागी।जब वह आश्रम के बरामदे में बैठे अपने मॉ-बाप के पास पहुॅची ,वह हॉफ रही थी।
                       उसके पीछे-पीछे बाबा मुस्कूराता हुआ चला आ रहा था । बाबा ने दूर से ही कहा - रामराज तुम बहुत ही भाग्यशाली हो, तुम्हें साक्षात लक्ष्मी बहू के रूप में मिलने जा रही है।ऐसा करो आज का दिन बहुत शुभ है । लड़का-लड़की और दोनेा के मॉ-बाप यहॉ मौजूद ही हैं । सगाई अभी और यहीं पक्की हो जानी चाहिए।
बाबाजी ने जैसे अपना फैसला सुनाया। बाबाजी की बात सुनकर दोनों परिवारों की खुशी का ठिकाना न रहा। नेहा को कुछ कहने का मौका ही न मिला और उसी दिन सगाई की रस्में वहीं आश्रम में ही पूरी हो गयीं और बाबाजी ने तीन महीने बाद शादी की तारीख भी पक्की कर दी । दोनो परिवार खुशी-खुशी अपने घरों को लौटकर शादी की तैयारियों में लग गये।
                               नेहा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई । वह रामदीन की इकलौती और लाडली बेटी थी इसलिए रामदीन ने उसकी शादी में जी खोलकर पैसा खर्च किया और बारात का शानदार स्वागत करके अपने जिगर के टुकड़े को ऑसुओं से भीगी शुभकामनाओं के साथ खुशी खुशी बिदा कर दिया।
मायके से बिदा होकर नेहा जब दोपहर को अपनी ससुराल पहुंची तो उसे सबसे पहले बाबाजी के आश्रम ले जाया गया । वहॉ पर रोहित और नेहा ने बाबाजी के चरणों में सिर रखकर आशीर्वाद लिया और बाबाजी ने भी दोनों को सदा सुखी रहनें का आशीर्वाद दिया। इसके बाद सब लोग घर लौट आये।
थकी होने के कारण नेहा को नींद आ गई। शाम को सात बजे के आस-पास उसकी ननद ने उसे जगाया और बोली- भाभी ,नहा करके जल्दी से तैयार हो जाओ, आश्रम चलना है।
नेहा ने कहा -‘‘अभी दोपहर को तो आश्रम गये थे, अब क्या जरूरत है?’’
उसकी ननद बोली-’’भाभी , हमारे यहॉ सभी कामों की शुरूआत बाबाजी के आर्शीवाद से ही होती है। आपकी भी नई जिंदगी शुरू होने जा रही है इसलिए बाबाजी का आर्शीवाद तो लेना ही पडे़गा!‘‘
नेहा कुछ देर बाद तैयार हो गयी । और अपने सास-ससुर, पति,ननद और देवरों के साथ आश्रम के लिए निकल पड़ी।
लगभग नौ बजे वे सब आश्रम पहुंचे।वहॉ सभी के खाने-पीने एवं ठहरने की पहले से ही व्यवस्था थी। खा-पीकर परिवार के सभी लोग एक कमरे में बैठे गपशप कर रहे थे तभी नेहा की सास ने उससे कहा चलो बहू , बाबाजी की सेवा कर आते हैं ।
                                  नेहा अपनी सास के साथ जब बाबा के कमरे में पहुंची ,बाबा अपने कमरे के एक तख्त पर टेक लगाये बैठा हुआ मंद मंद मुस्कुरा रहा था उसकी मुस्कान से ही लग रहा था कि वह बहुत देर से उनका ही इंतजार कर रहा था।
दोनों ने कमरे में पहुंचते ही सर्वप्रथम बाबा जी के चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया ,फिर नेहा की सास बाबा के पैर दबाने लगी नेहा भी सास के पास ही फर्श पर बैठ गई।सास ने उसे भी पैर दबाने के लिए कहा। नेहा भी मन मारकर बाबाजी के पैर दबाने लगी। कुछ देर तक दोनों सिर झुकाये बाबाजी के पैर दबाती रहीं और बाबा धर्म के उपदेश देता रहा। फिर बाबाजी ने नेहा की सास को ऑख के इशारे से बाहर जाने को कहा तो नेहा की सास बाहर जाने लगी। नेहा भी साथ में जाने के लिए खड़ी हुई तो सास ने उससे कहा- बहू ,तुम्हें अभी और सेवा करनी है।तुम बाबाजी की थेाड़ी देर और सेवा करो, मैं अभी आती हॅू।
                                यह कहकर नेहा की सास कमरे से बाहर निकल गयी और कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। नेहा अवाक् सी कभी बाबा की तरफ तो कभी दरवाजे की ओर देखने लगी । बाबा के चेहरे पर इस समय भी एक विचित्र मुस्कान तैर रही थीं। उसकी सास के बाहर जाते ही बाबा ने नेहा को बैठने के लिए कहा लेकिन नेहा नहीं बैठी। ऐसे में बाबा ने नेहा का हाथ पकड़कर अपने पास बैठाना चाहा तो नेहा ने उसका हाथ छिटक दिया और दरवाजे की ओर दैाड़ पड़ी।
                                 बाबा ने चीते की फुर्ती से लपक कर नेहा को बीच में ही पकड़ लिया और अपनी बलिष्ठ भुजाओं से उठाकर उसे तख्त पर पटककर बोला-इस परिवार का नियम है कि उसकी बहू-बेटियॉ सबसे पहले बाबा को समर्पित होती हैं फिर पति को,तुम्हारी सास ने तो तुम्हें यह सब बताया ही होगा।
नेहा जोर से चीखी और बाबा को एक जोरदार धक्का दिया जिससे बाबा तख्त के नीचे गिर गया लेकिन वह नेहा के उठने से पहले ही उठकर नेहा पर टूट पड़ा।नेहा चीखती, चिल्लाती और गिड़गिड़ाती रहीं लेकिन उस रंगे सियार ने नेहा को तब तक नहीं छोड़ा जब तक वह बेहोश नहीं हो गई।
                           जब नेहा को होश आया तो वह अपनी ससुराल में लेटी थी । सास उसका माथा सहला रहीं थी और पति रोहित समेत घर के सभी लेाग उसको घेरे खड़े थे नेहा के होश में आते ही सबने राहत की सॉस ली । अपने सामने सबको देखकर नेहा की आंखों में अंगारे दहक उठे। उसने सास का हाथ झटक कर उसे अपने से अलग किया और उठने की कोशिश की तो उसे लगा कि उसका शरीर निर्जीव हो गया है ,पैर सुन्न हो गये हैं। उसने झटके के साथ दोबारा उठने का प्रयास किया तो लड़खड़ाकर पलंग के नीचे गिर गई। रोहित ने नेहा को उठाना चाहा तो उसने फुफकार कर कहा- कमीने ,छूना नहीं मुझे नहीं तो तेरी जान ले लूंगी....। दूर हट...।
नेहा का यह रूप देखकर रोहित सहित उसका पूरा परिवार सकते में आ गया।नेहा की सास गिड़गिड़ाते हुए बोली -बहू , यह हमारे परिवार का नियम ...। नेहा बीच में ही चीख पड़ी -चुप हो जा कुतिया,नहीं तेा मुंह नोच लूंगी, परिवार का नियम है.....! इतना कहकर वह जोर-जोर से रोने लगी।
                   जब समझाने से बात न बनी तो रामराज ने उसे धमकी देते हुए कहा- जो हुआ है उसे बाबाजी का आशीर्वाद समझकर भूल जाओं इसी में तुम्हारी भलाई है,वरना....। इतना सुनते ही नेहा में न जाने कहॉ से इतनी ताकत आ गई कि उसने उठकर रामराज का गला पकड़ लिया और बड़ी मुश्किल में सबके छुड़ाने पर ही उसे छोड़ा। नेहा का यह रूप देखकर सभी सकपका गये और कमरे बाहर निकल गये। नेहा ने किसी तरह कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और अपने बाबूजी को फोन करने लगी।
नेहा ने रो-रोकर अपने साथ हुई हरकत के बारे में अपने मॉ-बाप को बताया तो वे सन्न रह गये। अभी कल ही उन्होने अपने जिगर के टुकड़े को बड़े अरमानों के साथ बिदा किया था और अभी चौबीस घण्टे भी नहीं हुए यह सब हो गया। वे बदहवास से हो गये और जैसे थे वैसे ही दो-चार रिस्तेदारों को लेकर नेहा की ससुराल पहुंचे। मॉ-बाप की आवाज सुनकर ही नेहा ने दरवाजा खोला और अपनी मॉ की बाहों में चीखकर गिर पड़ी। बेटी की हालत देखकर उसके मॉ-बाप फफककर रो पड़े।
                      अब तक रामराज क घर में पास-पड़ोस की औरतों और लोगों का जमघट लग चुका था। सभी आश्चर्य और अफसोस जाहिर कर रहे थे।नेहा के मॉ-बाप को देखकर रामराज परिवार सहित घर से गायब हेा चुका था।
रामदीन रिस्तेदरों और पड़ोस के कुछ लोगों के साथ अपनी बेटी को लेकर सीधे थाने पहुंचकर और अपनी बेटी के साथ हुई घटना पूरे विस्तार से बताई और बाबा और रामराज को पूरे परिवार सहित सभी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी । पुलिस ने नेहा का मेडिकल चेकअप कराकरं , अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही का आश्वासन देकर उन्हें घर भेज दिया।
                 बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस रामराज को उसके पूरे परिवार सहित जेल भेज दिया और बाबा के आश्रम को सीज कर दिया लेकिन बाबा को पुलिस अभी तक नहीं पकड़ पायी है। सुना है कि वह बाबा भेष बदलकर किसी नेता की शरण में छिपा हुआ है।
                   प्रदेश के इस हाई प्रोफाइल हो चुके केस ने न्यूजपेपरों और टी0वी0 चैनलों की टीआरपी बढ़ा दी है। एक दिन इन्ही में से एक टी0वी0 चैनल मे बाबा पुलिस के समक्ष समर्पण करते हुए प्रकट हुआ और अपने भक्तों को सम्बोधित करते हुए बोला-‘‘यह मेरे विरोधियों की चाल है जिन्होने मुझ पर ऐसे घिनौने आरोप लगाये हैं लेकिन मुझे विश्वास है कि सच जल्दी ही लोगों के सामने आ जायेगा । ’’
कुछ महीनों बाद ही बाबा को जमानत मिल गई और वह पुनः अपने आश्रम में लोगों को , आस्था की अॅधेरी खोह में छिपे बैठे भगवान से मिलाने के सपने दिखाकर मौज करने लगा। अभी और न जाने कितनी लड़कियों को उस बाबा का ग्रास बनना पड़ेगा यह बाबा के भगवान को भी नहीं पता !



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