शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

कविता - प्रकृति : अमन उनियाल





थोड़ी सी धूप और थोड़ी से नमी है
यहीं पर पवन और यहीं पर जमीं है
कभी हार का गम होता है
कभी जीत की खुशी
यही तो प्रकृति की जादूगरी है
थोड़ी सी धूप और थोड़ी सी नमी है
जब मुश्किलों को झेला
तभी मंजिलें मिली हैं
यही तो समय की नियति रही है
थोड़ी सी धूप और थोड़ी सी नमी है
होना है इक दिन
सबको विदा इस दुनिया से
यही तो परमात्मा की आशिकी है
थोड़ी सी धूप और थोड़ी सी नमी है़
यहीं पर पवन और यहीं पर जमीं है।

संपर्क -
अमन उनियाल
कक्षा 11 रा 0 0 का0 गौमुख
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखण्ड 249121

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

स्वर्णलता ठन्ना की कविताएं-

       

     रतलाम म0प्र0 में जन्मीं स्वर्णलता ठन्ना ने परास्नातक की शिक्षा हिन्दी एवं संस्कृत में  प्राप्त की है एवं  हिन्दी से यूजीसी नेट उत्तीर्ण किया है। साथ ही  सितार वादन , मध्यमा : इंदिरा संगीत वि0 वि0 खैरागढ़ , छ 0 ग 0 से एवं पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन - माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि0 वि0 भोपाल से प्राप्त की है । आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा "  युवा प्रतिभा सम्मान 2014 " से सम्मानित 

           साथ ही वेब पत्रिका अनुभूति, स्वर्गविभा, साहित्य रागिनी, साहित्य-कुंज, अपनी माटी, पुरवाई,  हिन्दीकुंज, स्त्रीकाल, अनहद कृति, अम्सटेल गंगा,  रचनाकार, दृष्टिपात, जनकृति, अक्षर पर्व,संभाव्य, आरम्भ, चौमासा, अक्षरवार्ता (समाचार-पत्र) सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ,लेख एवं शोध-पत्र प्रकाशित।
संप्रति- ‘ समकालीन प्रवासी साहित्य और स्नेह ठाकुर ’  विषय पर शोध अध्येता,हिंदी अध्ययनशाला , विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन।


आवाजों के वर्तुल

मैं जब भी सुनती हूँ
तुम्हारी आवाज के वर्तुल
सारा कोलाहल
एक मद्धिम रागिनी में
तब्दिल हो जाता है
दिल की बोझिल धड़कनों में
नव स्पंदन के स्वर घुल जाते हैं
पलकों पर स्वप्न
नया जीवन उत्सव रचने में
तल्लीन हो जाते हैं
पीले फूलों की ऋतुएँ लेकर
देह की प्रकृति में
वसंत हाथ जोड़े खडा
प्रेम का याचक बना
दिखाई देता है
दिन पूरबी कोने को जगमगाते
दो कदम के फासले पर ही
साँझ के आँचल में छुप जाते हैं
और दिल की नाजुक दूर्वा पर
तुम्हारी याद के ओस कण
दमक उठते हैं...।


सतरंगा इंद्रधनुष

सोनाभ क्षितिज में
पसर जाती है जब
सुहानी साँझ
तारों की आगत से
सजने लगता है आसमाँ
और इठला कर चाँद
उग आता है
रश्मियां बिखेरता
तब यादों के सफों में
डबडबाई आँखों से
झर उठते हो तुम
छलक आता है मन
और सीलन से भर जाता है
दिल का हर कोना
चोटिल पल एक-एक कर
याद आते हैं
बीते क्षण लौट कर
अपने साये से टकराते हैं
ऐसे में मुझे
तुम याद आते हो...
प्रेम...!
मैंने सुना है
तुम सर्वज्ञ, सर्वव्यापी
और सक्षम हो...
तो झरते आँसुओं और
उजली चाँदनी से
रच दो ना
कोई सतरंगा इंद्रधनुष
मेरे लिए भी...।

संपर्क - 
84, गुलमोहर कालोनी, गीता मंदिर के पीछे, रतलाम . प्र. 457001
मो. - 09039476881
-मेल - swrnlata@yahoo.in

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

कविता-बच्चे : साहिल नाथ







बच्चे होते हैं दिल के सच्चे
प्यारे होते हैं पर थोड़ा कच्चे
बच्चे ही पहचाने देश की उन्नति का सेहरा
बडे़ होकर देते देश की सीमाओं पर पहरा
बच्चों की उम्र होती है काफी नाजुक
इसलिए ध्यान देना होता है इन्हे पढ़ाई पर
लेकिन कुछ लोग इनके उददेश्य से भटकाकर
कर देते हें इन्हें गलत रास्तों पर
कलम पकड़ने की उम्र पर पकड़ा देते हैं इनके
हाथों में बन्दूक,छुपा देते हैं इनकी प्रतिभाओं को
और बन्द कर देते हैं इनकी अच्छाइयों का सन्दूक
बच्चों को देनी होती है सही शिक्षा और सही सोच
ताकि ये बढ़ सके समाज में प्रगति पथ की ओर
बच्चे होते हैं दिल के सच्चे
प्यारे होते पर थोड़ा कच्चे।
संपर्क -
साहिल नाथ
कक्षा- 11, राइका गौमुख
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखण्ड 249121