बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें



                         बिहार के खगड़िया जिले में 12 जनवरी 1962 को जन्में कैलाश झा किंकर ने परास्नातक के साथ एल0 एल 0बी0 भी किया है।अब तक देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनकी कविताओं एवं गजलों का प्रकाशन हो चुका है।इनकी प्रकाशित कृतियों में- संदेश , दरकती जमीन,  चलो पाठशाला  सभी कविता संग्रह कोई कोई औरत  खण्ड काव्य हम नदी के धार में, देखकर हैरान हैं सब ,जिंदगी के रंग है कई  सभी गजल संग्रह  
 
           हिंदी गजल को आम लोगों की बोली भाषा में कह देना ही नहीं वरन सरल शब्दों को हथियार की तरह प्रयोग करना किंकर को समकालीन रचनाकारों से विशिष्ठ बनाती हैं। अपने देश को दागदार बनाने, लूटने खसोटने एवं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लोगों  की ठीक ठाक पड़ताल करते हैं किंकर।इनकी गजलें आशा की नई किरन दिखाती हैं जो देर तक   हमें आलोकित करती रहेंगी।

संपादन-कौशिकी  त्रैमासिक और स्वाधीनता संदेश  वार्षिकी
 





 
 


















कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें -

     1-

वो अन्धकार में बैठे                  
जो इन्तजार में बैठे। 
                 
हिम्मत जुटा न  पाए जो                  
अब भी कछार में बैठे।                  
    
गाँवों का आँकड़ा लेते                  
ए. सी. की कार में बैठे।                   

बद-वक्त कुंडली मारे                  
जीवन की धार में बैठे।                 

विश्वास हो न पाता है                  
सचमुच बिहार में बैठे।

  
2-
                

 उजाले का वो जरिया ढूँढ़ता है
 वो कतरा में भी दरिया  ढूँढ़ता है।

 गई है माँ कमाने खेत उसकी
 वो बच्चा घर में हड़िया ढूँढ़ता है।

 न मीठी बात में आना कभी तुम
 अगर सामान बढ़िया ढूँढ़ता है।

 पला जो गाँव में बच्चा हमारा
शहर में बाग-बगिया ढूँढ़ता है।

 नहीं सुनता यहाँ कोई किसी की
 तू दिल्ली में खगड़िया ढूँढ़ता है।
 
  संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204
               मोबा0.09430042712,9122914589

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

नित्यानंद गायेन की तीन कविताएं


          20 जनवरी 1981 को शिखरबाली, 0 बंगाल में जन्में नित्यानंद गायेन की कवितायें और लेख सर्वनाम, अक्षरपर्वकृति ओर, समयांतर, समकालीन तीसरी दुनिया, जनसत्ता, हिंदी मिलाप  आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन का शतक।
अपने हिस्से का प्रेम नाम से एक कविता संग्रह प्रकाशित  अनवर सुहैल के संपादन में संकेत द्वारा कविता केंद्रित अंक।
संप्रति- अध्यापन

 
 




















नित्यानंद गायेन की तीन  कविताएं-

देवता नाराज़ थे

खाली हाथ
वह लौट आया
मंदिर के दहलीज से

नहीं ले जा सका 
धूप- बत्ती, नारियल
तो देवता नाराज़ थे

झोपड़ी में
बिलकते रहे
बच्चे भूख से
भगवान
एक भ्रम है
मान लिया उसने


मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

कुछ साये
ऐसे भी होते हैं
जिनका कोई
चेहरा नहीं होता
नाम नहीं होता
केवल
भयानक होते हैं
नफ़रत की बू  आती है
भय का आभास होता है

कहीं भी हो सकते हैं
अयोध्या में
गोधरा में
इराक या अफगानिस्तान में
किसी भी वक्त

इंसानी खून से
रंगे हुए हाथ
इनकी पहचान है

कोई मज़हब नहीं इनका
ये साये
खुद के भगवान्  होते हैं

खुद नहीं उगते ये
मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

राख हुए सपने


गुलाबी के
सपने तो बहुत थे
उन्हें तोड़ने वाले
कहाँ कम थे

रंगीन चूड़ियों
का  सपना
सहृदय बालम
का सपना

सबको अपना
बनाने का सपना 

जलाई  जाएगी
उसे केरोसिन डालकर
नहीं था
ये सपना गुलाबी का
पर
राख हुए सब सपने
गुलाबी के साथ


गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

विनीता जोशी की दो लघु कविताएं-

विनीता जोशी



 



       उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में जन्मीं युवा कवयित्री विनीता जोशी के गीत कविताएँ, लघुकथाएँ और बाल कविताएँ, कहानी, लेख, समीक्षा आदि का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं यथा कादम्बिनी, वागर्थ, पाखी, गुंजन जनसत्ता ,अमर उजाला, दैनिक जागरण ,सहारा समय, शब्द सरोकार में प्रकाशन हो चुका है। इन्होंने हिंदी साहित्य एवं अर्थशास्त्र में   एम.. किया है।
अभी हाल में एक कविता संग्रह  चिड़िया चुग लो आसमान पार्वती प्रकाशन इन्दौर से प्रकाशित हुआ है जिसका पिछले दिनों भोपाल में नामवर जी ने विमोचन किया।
सम्मान- बाल साहित्य के लिए खतीमा में सम्मानित।
सम्प्रति- अध्यापन।

विनीता जोशी की दो लघु कविताएं-



















 
















एहसास

एक्वागार्ड के
पानी जैसा
क्यों बनाना चाहते हो
प्यार को
इसे बहने  दो
पहाड़ी नदी की तरह
जिसमें एहसास हो।

मुझे

एक्वेरियम की
मछली
नहीं बनना
मुझे
नदी पार कर
सागर तक जाना है
और अनंत को पाना है।

सम्पर्क-  तिवारी खोला पूर्वी पोखर खाली
         अल्मोड़ा.263601;उत्तराखंड
         दूरभाष 09411096830