रविवार, 10 फ़रवरी 2013

शिरोमणि महतो की कविताएं



हम झारखण्ड के युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं प्रकाशित कर रहे हैं। झारखण्ड में जीवन-यापन करते हुए वहाँ की जनपदीय सोच को अभिव्यक्त करना जोखिम भरा काम है, हमने शिरोमणि महतो की उन कविताओं को तरजीह दी है। जिसमें उनका जनपद, उनका परिवेष मुखर होता है। बेशक अपने परिवेश के शिरोमणि महतो अच्छे प्रवक्ता हैं। इस उत्तर आधुनिक समय में झारखण्ड और वहां की चिन्ताएं विश्व-पटल पर रखने का कौशल शिरोमणि महतो में है। वह बड़ी बारीकी से आस-पास विचरण करते समय की चुनौतियों को महसूस करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं कि ऐसे कठिन समय में एक लोकधर्मी कवि की क्या भूमिका होनी चाहिए?

अकाल


पिछले साल सूखाड़ था 
इस साल अकाल हो गया 
सूखाड़ की नींब पर
अकाल का खूँटा खड़ा होता है
घर में एक भी 
अनाज का बीटा नहीं
घड़े-हंड़े सब खाली-खाली
किसी में एक भी दाना नहीं
छप्पर से भूखे चूहे गिरते
और तडप कर दम तोड़ देते !
अकाल केवल अनाज का नहीं
पानी का भी अकाल है.... 
 कुँआ पोखर नदी नाले 
 सब के सब सूख गये 
 भूखे-प्यासे पशु पक्षी 
 भटक रहे इधर-उधर
और तड़प-तड़प दम तोड़ रहे.... 
 अकाल का मायने 
 ‘-काल’  
 फिर यह क्यों सिद्ध हो रहा
-महाकाल ! रूप रंग आकार 
 एक होने के बावजूद
कितना अलग होता है-
आदमी का मिजाज 
और उसका काम-काज !!

झगड़ा 

 सबके घरों में
अक्सर होता है-झगड़ा 
लोग भूल जाते  
लोहू का संबंध  
जन्मों का बंधन 
 झगड़े में अक्सर आदमी  
 अपना आपा खो बैठता है 
 तब कुछ भी नहीं होता
 उसके बस में  
 मुँह से बरबस 
  गालियाँ निकलने लगती हैं
  जैसे अंधड़ के आने पर 
  पेड़ के पत्ते झड़ने लगते हैं.
  झगड़ा से आदमी का 
  घर टूटता है  
 सर फूटता है 
 मन फटता है   
 और बंद होते हैं 
 आत्मा के द्वार

पता  : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144  मोबाईल  : 9931552982

रविवार, 20 जनवरी 2013

कविताएं-

उषा

विनीता कोटिया

चाँद छुपा तारे डूबे
आया उमंग का एक नया सवेरा
सज-धज अपनी लालिमा संग।
ज्यों ही सूर्य की पहली किरण
पड़ती उस अटके जल पर
जो रात भर वही पड़ा
वह लगता मोती जैसा
जाएगा सूरज की लाली के संग
दूर आसमान में
जैसे मेरी नजर पड़ी उस पर
लगाता ऐसा
किसी हरी चादर पर
गिर पड़ा इक मोती का दाना
निकल गया देखो पूरा सूरज
चाँद छुपा तारे डूबे ।

ये जिंदगी

दीपा विष्ट

बहती सरिता है जिंदगी
कभी खुशी तो कभी गम है जिंदगी
खुशहाली की बहार है जिंदगी
मुस्कराता हुआ पैगाम है जिंदगी
धरती पर बारिश की पहली फुहार है जिंदगी
उषा से होकर क्षितिज की ओर बढ़ती जिंदगी
वृक्षों की सांस से जन्म लेती हवा है जिंदगी
कभी धूप तो कभी छाँव है जिंदगी
हर चेहरे पर बिखरी मुस्कान है जिंदगी
संजोए रिश्तों की अटूट कड़ी है जिंदगी
समुद्र-सा बढ़ता प्रेम का सैलाब है जिंदगी
आखिर बहती सरिता है जिंदगी।


प्रस्तुति- अंकित चौहान संपादक उमंग
                  कक्षा-12
                  रा0इ0का0 देवलथल पिथौरागढ़

बुधवार, 2 जनवरी 2013

मुझे लिखने दो


















मुझे लिखने दो , कि
सूर्य चुरा लेता है
अपनी किरणें
और नहीं भेजता उन्हें
अवनितल पर
हवाएं नहीं लेती अब
ठंडी गर्म सांसे
इसलिए नहीं मिलती ताजगी
प्रभात में
अब नहीं मिलती
शीतलता पेड़ों तले
क्योंकि वे चुरा लिए हैं
अपनी गहन हरियाली
और लीन हो गये हैं
ठूंठ होने की साधना में
मेघ नहीं बरसते समय से
पी गये हैं
अपना  स्वच्छ जल
कभी -कभार बरस पड़ते हैं
मुंह चियारे धरती के सीने पर
सायनाइड -सा जल
कुम्हार रखता है
गीली मिट्टी,अपने चाक पर
चाक खा जाता है,सारी मिट्टी
नहीं मिल पाते बर्तन
दीपावली छठ पूजन के दिन
बच्चे नहीं बजा पाते भोंपा
लड़कियां नहीं खेल पाती हैं
चाकी - जांता का खेल
नदी सोख लेती है
अपना जल और
सुखा डालती है
लहलहाती फसल
मरियल फसल की मड़ायी में
लील लेते हैं,थ्रेसर
भूसा रखा जाताहै
सहेज कर
नाद चबा डालती है
पशुओं का सारा भूसा
गिन सकते हैं
अंकगणित के नियम से
बैलों की सारी हड्डियां
थाली हजम कर जाती है
परोसा हुआ भोजन
किसान तड़प जाता है
एक दाने के लिए
गृहिणी ठिठुर जाती है
अपने स्तन से चिपकाये
छुधमुंहे बच्चे के साथ , तब
जाड़े की कातिल गहन रात्री में
बच्चे के धंसे हुए गाल
पीठ से बातें करती हई अंतड़ियां
सूखे रेतों से भरी हुई आंखें
प्रतीक्षा करती हैं प्रभात में
क्षितिज के ऊपर चढ़ते
सूर्य की एकटक।

संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
        राजकीय इण्टर कालेज गौमुख,
                  टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121    
              मोबा0-08858229760 ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com