बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

प्रेम नंदन की दो कविताएं-

                                 

जन्म:-25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर, उ0प्र0 

 शिक्षा:- एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0।    
लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक इधर-उधर ’भटकने‘ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन के साथ-साथ कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेख आदि का लेखन
प्रकाशनः-कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेख, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लाॅगों में प्रकाश
के अलावा अबतक दो कविता संग्रह प्रकाशित।

 प्रेम नंदन की दो कविताएं-

1-निर्जीव होते गांव

हंसिये चीखते हैं

खुरपियाँ चिल्लाती हैं

फावड़े रो रहे हैं ।

हल, जुआ, पाटा,

कुचले जा रहे हैं

ट्रैक्टरों, कल्टीवेटरों के नीचे ।


धकेले जा रहे हैं गाय-बैल ,

भैंस-भैसें कसाई-घरों में ।

मूली , गाजर , धनिया, टमाटर ,

गोभी ,आलू, प्याज, लहसुन ,

दूध ,दही, मक्खन, घी ,

भागे जा रहे हैं

मुँह-अँधेरे ही शहर की ओर

और  किसानों के बच्चे

ताक रहे हैं इन्हें ललचाई नजरों से !


खेतों पर काम करने में

अपमान समझने वाली

खेतिहरों की पूरी नौजवान पीढ़ी

खच्चरों की तरह पिसती है

रात-दिन शहरों में

गालियों की चाबुक सहते हुए ।


गाँव की जिंदगी

नीलाम होती जा रही हैं

शहर के हाथों ;

और धीरे- धीरे ...

निर्जीव होते जा रहे हैं गाँव !


2-बाजार

बाजार भरा है

खचाखच सामानों से

मन भरा है

उन सबको खरीदने के

अरमानों से

एक को खरीदता

दूसरी छूट जाती

दूसरे को खरीदता

तीसरे की कमी खलती


इस तरह

खत्म हो जाते हैं

पास के सारे पैसे

घर भर जाते लबालब सामानों से

पर, मन के किसी कोने में

कुण्डली मारे बैठा

अतृप्ति का कीड़ा

प्यासा है अब भी।


अजीब-सा रीतापन

कचोटता रहता मन को

खरीदकर लाई गई सभी इच्छाएँ

लगने लगती तुच्छ,


अगली सुबह फिर जा पहुँचता

बाजार

फिर खरीदता

अपनी कल की छूटी हुई इच्छाएं

पर, फिर भी रह जातीं

कुछ अधूरी वस्तुएॅ

जिन्हें नहीं खरीद पाता ।


अधूरी इच्छाओं की अतृप्ति

नहीं भोगने देती

पहले से खरीदी हुई

किसी भी वस्तु का सुख !


सम्पर्क -उत्तरी शकुन नगर , सिविल लाइन्स , फतेहपुर,
उ0प्र0-212601। दूरभाषः-09336453835

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

कविता क्या है-पूर्णिमा जायसवाल

 
      13 दिसम्बर 1994 को कटहर बुटहनी गोण्डा उ0प्र0 में जन्मी नवोदित कवयित्री पूर्णिमा जायसवाल ने बहुत सरल शब्दों में अपनी बात कहने की कोशिश की है।  कविता के बहाने हुए संवाद को बहुत ही बारीक धागों से बुनने की कोशिश की है। पुरवाई  में आज पढ़ते हैं पूर्णिमा जायसवाल की कविता- 
कविता क्या है

विभिन्न ध्वनियों की गूंज है कविता
मानव अंकुरण की बीज है कविता
नदियों पर भी बनी कविता
पहाड़ों पर भी बनी कविता
समुन्दर पर भी बनी कविता
दसो दिशाओं की गूंज है कविता
मानव हृदय की सूज बुझ है कविता
मेरे उर की वासी कविता
मेरी थी विश्वासी कविता
देखो कैसे बुनती चली गई
बहुत कुछ कहती चली गई
कवि हृदय की प्रेम है कविता
मां के पहल की लेख है कविता
पिता प्रेम की सोच है कविता
सहती कविता बर्दास्त करती कविता
जाने कहां कहां निवास करती कविता
मेरी अपनी ऐसी कविता
 
मां के मन की थी ममता मैं लिखू कविता
सुख दुख की थी निवासी कविता
मां की थी विश्वासी कविता
मेरी कविता में ऐसी झंकार नहीं है
जहाँ किसी अंग की पुकार नहीं है
उठती गिरती बलखाती कविता
अनेक मिश्रणों से मिलकर
देखो कैसे बन जाती कविता
कष्ट से नहीं घबराती कविता
हृदय पर चढ़ जाती कविता
भूख प्यास मिटाती कविता
सृष्टि की पूरी सार है कविता
मानव की व्यवहार है कविता
मन की बौछार है कविता
इस जग की तलवार है कविता
इतनी क्यों उदास है कविता
उसके उर की बात है कविता
मेरे कलम की धार है कविता
ऐसी मेरी कविता ।


सम्पर्क - पूर्णिमा जायसवाल
कटहर बुटहनी , लतमी उकरहवॉ
मकनापुर, गोण्डा उ0प्र0-271302
मोबा0-9794974220