सोमवार, 8 जुलाई 2013

पंखुरी सिन्हा की कविताएं






इनकी रचनाएं अब तक हंस, वागर्थ, पहल, नया ज्ञानोदय, कथादेश, कथाक्रम, वसुधा, साक्षात्कार, अभिव्यक्ति, जनज्वार, अक्षरौटी, युग ज़माना, बेला, समयमान, अनुनाद, सिताब दियारा, पहली बार, पुरवाई, लोकतंत्र दर्पण, सृजनगाथा, विचार मीमांसा, रविवार, सादर ब्लोगस्ते, हस्तक्षेप, दिव्य नर्मदा, शिक्षा धरम संस्कृति, उत्तर केसरी, इनफार्मेशन2 मीडिया, रंगकृति, हमज़बान, अपनी माटी, लिखो यहाँ वहां, बाबूजी का भारत मित्र आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
हिंदिनी, हाशिये पर, हहाकार, कलम की शान, समास, हिंदी चेतना, गुफ्तगू आदि ब्लौग्स वेब पत्रिकाओं में, कवितायेँ तथा कहानियां, प्रतीक्षित





प्रस्तुत है इनकी कुछ कविताएं -

1-आरोपित आवाज़ों की कहानी


सब नैसर्गिक नहीं है,

प्राकृतिक,

 चीखों में मेरी,

खुद से उपजी आवाजें नहीं हैं ये मेरी,

मेरी सोच नहीं है,

खुद खुद, नहीं पहुंची मैं,

इन ध्वनियों तक,

ध्वनियों तक, अपशब्दों तक,

पहले दिन की अफरातफरी में,

उस किसी और की मेरी थी,

उसके बाद की,

मेरी अपनी मेरी थी,

बताकर पहले दिन कि कमी थी,

कुछ आवाज़ में मेरी,

अंदाज़ में मेरी,

ज़िन्दगी जीने के आगाज़ में मेरी,

तर्क मेरा कटता था,

पर कैसे,

कसौटी पर उनके,

फिर का आलाप आया,

कि वह क्लास का अव्वल नंबर था,

फिर उस कैफेटेरिया की ऊपरी मंजिल से आती,

की सरगम में,

फिर हर कदम पर साथ चलते सेल फ़ोन की राजनीती में,

संगीत बिछाया गया,

जाल की तरह,

और डो रे मी फा सो ले टी की स्केल पर,

मेरी ज़िन्दगी संगीत बनकर,

छू मंतर हो गयी,

हवा हो गयी,
लिखी और तराशी जाने वाली औरों के द्वारा।








2-लैपटॉप की क्लिक



पकड़ते हुए एहसास का आखिरी कतरा,

महसूसने का सबकुछ,

सारी शिराएं, आपके होने का सबकुछ,

कि ठीक, ठीक क्या हुआ,

जब सुनी आपने बेहद भयानक खबर वह,

कि घटा है कहीं फिर भयानक हादसा कोई,

मारे गए हैं, निर्दोष, निहत्थे,

बेखबर लोग,

कहीं और,

जो कभी भी पास सकता है,

पर अभी नहीं,

अभी सिर्फ ख़बर है,

पढ़ी जा सकने वाली,

अपने लैपटॉप पर अब,

ये जानते कि मुमकिन है,

लोग, बेहद ताक़तवर लोग,

मुमकिन है, वही लोग,

कुछ वही लोग,

उनके लोग,

कुछ और लोग भी,

देख रहे हो,

आपको पढ़ते हुए खबर वह,

कितनी देर लगाई आपने,

पढने में ख़बर वह,

कितनी बार ऊपर नीचे की,

आपने रपट वह,

ठीक क्या हुआ,

उस दानवी वारदात को पढ़ते,

पढ़ते उस जघन्य कृत्य की बारीकियां,

लोमहर्षक बारीकियां,

जो डाल रहा है,

हम सबको खतरे में,

राहत ये कि ख़तरा कुछ दूर है।

इतना कसता जाता है,

शिकंजा किसी और का,

किसी नज़र रखने वाले का,

आपकी रोजमर्रे की ज़िन्दगी पर,

कि केवल राहत महसूस की आपने,

कुछ दूर तक,

खौफ उसके बाद,

खौफ तो कितना खौफ़?



संपर्क-39, मेरीवेल क्रेस्सेंट, कैलगरी, NE, AB,  कैनाडा, T2A2V5
ईमेल-sinhapankhuri412@yahoo.ca,

सेल फ़ोन- 403-921-3438


रविवार, 30 जून 2013

सुनील जाधव की कविता


   

सच बोलने की सजा
 

 1-

देखा मैनें झूट का आकार

पर्वत की तरह

ऊँचा और ऊँचा और ऊँचा

उसकी परछाई से

ढका गया सच

तडफ रहा था

बेबस विवश लाचार

और मजबूर

सह रहा था

अपने सच होने के

सच से

जो सच होकर भी

सच होने की सजा भुगत रहा  था





2-

सच बोलने की सजा

अक्सर मिलती हैं

जबान काट कर

या बदनाम कर के

सच कहीं

भयानक तस्वीर कों

सबके सामने उजागर   कर दे

इसीलिए सच के जन्म दाता कों

दीवाना पागल

की उपाधि दी  जाती हैं

ताकि झूट का

काला बर्तन

सही सलामत रहे

  3-



सच

सच ही होता हैं

वह मरता नहीं

मारने से धमकाने से

बदनाम करने से

या जबान काट देने से

झूट का काला बर्तन

सच के अविरल

प्रवाह से फुट ही जाता हैं

और वह दिखाता हैं

कालापन विशाल आकार में

जन- जन में

घृणा भर देगा वह

जन के मन - मन में 





पता -   महाराणा प्रताप हाउसिंग सोसाइटी

          हनुमान गड कमान के सामने

           नांदेड महाराष्ट्र  05 भारत

     चलभाष  09405384672