मंगलवार, 19 नवंबर 2013

जनपथ के युवा कविता विशेषांक में प्रकाशित मेरी कुछ कविताएं





संक्षिप्त परिचय
आरसी चौहान ( जन्म - 08 मार्च 1979 चरौवॉ,  बलिया,  उ0 प्र0 ) 
शिक्षा- परास्नातक-भूगोल एवं हिन्दी साहित्य, पी0 जी0 डिप्लोमा-पत्रकारिता, बी00, नेट-भूगोल 
सृजन विधा-गीत,  कविताएं, लेख एवं समीक्षा आदि  
प्रसारण-आकाशवाणी इलाहाबाद, गोरखपुर एवं नजीबाबाद से
  
प्रकाशन-                                                                                        नया ज्ञानोदय, वागर्थ, कादम्बिनी, अभिनव कदम,इतिहास बोध,कृतिओर,जनपथ,कौशिकी,गुफ्तगू, तख्तोताज, अन्वेषी, हिन्दुस्तान, आज, दैनिक जागरण,अमृत प्रभात, यूनाईटेड भारत, गांडीव, डेली न्यूज एक्टिविस्ट, एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं तथा बेब पत्रिकाओं में
अन्य- 1-उत्तराखण्ड के विद्यालयी पाठ्य पुस्तकों की कक्षा-सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान में लेखन कार्य 
ड्राप आउट बच्चों के लिए , राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की पाठ्य पुस्तकों की कक्षा- छठी , सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान का लेखन संपादन  पुरवाई  पत्रिका का संपादन              
आरसी चौहान की कविताएं

1-बेर का पेड़

मेरा बचपन
खरगोश के बाल की तरह
नहीं रहा मुलायम
ही कछुवे की पीठ की तरह
कठोर ही

हाँ मेरा बचपन
जरूर गुजरा है
मुर्दहिया, भीटा और
मोती बाबा की बारी में
बीनते हुए महुआ, आम
और जामुन

दादी बताती थीं
इन बागीचों में
ठाढ़ दोपहरिया में
घूमते हैं भूत-प्रेत
भेष बदल-बदल
और पकड़ने पर
छोड़ते नहीं महिनों

कथा किंवदंतियों से गुजरते
आखिर पहुँच ही जाते हम
खेत-खलिहान लाँघते बागीचे
दादी की बातों को करते अनसुना

आज स्मृतियों के कैनवास पर
अचानक उभर आया है
एक बेर का पेड़
जिसके नीचे गुजरा है
मेरे बचपन का कुछ अंश
स्कूल की छुट्टी के बाद
पेड के नीचे
टकटकी लगाये नेपते रहते
किसी बेर के गिरने की या
चलाते अंधाधुंध ढेला, लबदा

कहीं का ढेला
कहीं का बेर
फिर लूटने का उपक्रम
यहाँ बेर मारने वाला नहीं
बल्कि लूटने वाला होता विजयी
कई बार तो होश ही नहीं रहता
कि सिर पर
कितने बेर गिरे
या किधर से लगे
ढेला या लबदा

आज कविता में ही
बता रहा हूँ कि मुझे एक बार
लगा था ढेला सिर पर टन्न-सा
और उग आया था गुमड़
या बन गया था ढेला-सा दूसरा
बेर के खट्टे-मीठे फल के आगे
सब फीका रहा भाई
यह बात आज तक
माँ-बाप को नहीं बताई
हाँ, वे इस कविता को
पढ़ने के बाद ही
जान पायेंगे कि बचपन में
लगा था बेर के चक्कर में
मुझे एक ढेला
खट्टा, चटपटा और
पता नहीं कैसा-कैसा
और अब यह कि
हमारे बच्चों को तो
ढेला लगने पर भी
नहीं मिलता बेर
जबसे फैला लिया है बाजार
बहेलिया वाली कबूतरी जाल
जमीन से आसमान तक एकछत्र।


2-पहाड़

हम ऐसे ही थोडे बने हैं पहाड़
हमने जाने कितने हिमयुग देखे
कितने ज्वालामुखी
और कितने झेले भूकम्
जाने कितने-कितने
युगों चरणों से
गुजरे हैं हमारे पुरखे
हमारे कई पुरखे
अरावली की तरह
पड़े हैं मरणासन्न तो
उनकी संतानें
हिमालय की तरह खड़ी हैं
हाथ में विश्व की सबसे ऊँची
चोटी का झण्डा उठाये।

बारिश के बाद
नहाये हुए बच्चों की तरह
लगने वाले पहाड़
खून पसीना एक कर
बहाये हैं निर्मल पवित्र नदियाँ
जिनकी कल-कल ध्वनि
की सुर ताल से
झंकृत है भू-लोक, स्वर्ग
एक साथ।

अब सोचता हूँ
अपने पुरखों के अतीत
अपने वर्तमान की
किसी छोटी चूक को कि
कहाँ विला गये हैं
सितारों की तरह दिखने वाले
पहाड़ी गाँव
जिनकी ढहती इमारतों
खण्डहरों में बाजार
अपना नुकीला पंजा धंसाए
इतरा रहा है शहर में
और इधर पहाड़ी गाँवों के
खून की लकीर
कोमल घास में
फैल रही है लगातार

 





3-लोगों की नजर में
 
तुमने मुझे पेड़ कहा
पेड़ बना
टहनी कहा
टहनी बना
पत्तियां कहा
पत्तियां बना
फूल कहा
फूल बना
तुमने कहा
कांटा बनने के लिए
कांटा भी बना
जबसे लोगों की नजर में
बना हूँ कांटा
नहीं बन पा रहा हूँ अब
लोगों की नजर में
फूल पत्ती टहनी और पेड़  ।

 


 


संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121                                                                                                                   मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

लघु कथाएं- फुटकर ,सह शिक्षा



लघु कथाएं-


1. अमरपाल सिंह आयुष्कर

  













जन्म : मार्च १९८० ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज जिला गोंडा ,उत्तर - प्रदेश            
दैनिक जागरण, हिदुस्तान ,कादम्बनी,आदि में रचनाएँ प्रकाशित
बालिका -जन्म गीत पुस्तक प्रकाशित
२००१  मैं बालकन जी बारी संस्था  द्वारा रास्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार 
२००३ बालकन जी बारी -युवा प्रतिभा सम्मान
 आकाशवाणी अल्लाहाबाद से कार्यक्रम प्रकाशित
परिनिर्णयकविता शलभ  संस्था अल्लाहबाद द्वारा प्रकाशित
सम्प्रति -प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक हिंदी (केंद्रीय विद्यालय rangapahar, दीमापुर नागालैंड


फुटकर 
 
ट्रेन  तेज़  रफ़्तार से भागी जा रही थी  मैं पत्रिका के  पन्ने पलट-पलट  कर थक चुका था   दोपहर  हो चली थी, मेरी भूख  भी एक्सप्रेस रफ़्तार पकड़ रही थी ,ट्रेन एक संभ्रांत  स्टेशन पर रुकी ,और मेरे पांव  उस दुकान पर  ,दिमागी मोल भाव , सकुचाते -सकुचाते हाथ जेब तक जाकर लौट आये " पैक कर दूं भाई साहब 'बीस रूपये के तो हैं.....? मेरी नकारात्मक मुद्रा देखकर ,मुह खोल हँसता लिफाफा संत हो गया सस्ते  स्टेशन का इंतज़ार करती मेरी भूख ट्रेन की रफ़्तार में शामिल  होने लगी लोगों  को भूख नाचती होगी ,पर आज में भूख को नचा रहा था तभी मेरी  नज़र ट्रेन में गर्मागर्म समोसे बेंच रहे लड़के पर पड़ी ,मेरे हाथ में पड़े दस के नोट ने फडफडा के कहा -दो समोसे देना लड़के ने निरीहता से कहा -फुटकर नहीं है साब ....खुल्ला खुल्ला समझे " नोट ने टूटने के लिए संभ्रांत चेहरों की तरफ गुजारिश की ,सभी चेहरे मुस्करा कर करते गये खन -खन करती हथेली लिए वो फटेहाल लड़की मेरे कम्पार्टमेंट में दाखिल हुई ,उसने मेरे आगे हाथ फैलाया. मैंने संभ्रांत अदा के साथ सर हिलाया लड़की के हाथ में ढेरों फुटकर .....धीरे से बुलाया ...दस का नोट बढ़ाते हुए फुसफुसाया ....फुटकर ? वह सकपकाई .....हाँ ! हाँ ... है बाबूजी ! एक .....दुई ...पांच.... पूरा साढ़े नौ ....अठन्नी कम  बिना एक पल रुके मैं बोल पड़ा .......'जरा अगल-बगल वालों से मांगकर दस पूरा कर दे '
वह ईमानदारी से अठन्नी मांगने में जुट गई मेरी नजर उसकी हथेली पर टिकी थी . कि कब  अठन्नी गिरे और मैं समोसे लूं


 संपर्क-

अमरपाल सिंह आयुष्कर
ग्राम- खेमीपुर,नवाबगंज
 जिला- गोंडा ,उत्तर  प्रदेश
 मोबा0- 09402732653



2-डा0 राजेन्द्र प्रसाद यादव
जन्म -15 जनवरी 1975
शिक्षा -एम00 प्राचीन इतिहास, पी0 एच0 डी0 ,बी0 एड0,आयुर्वेद रत्न,सर्टिफिकेट कोर्स इन योगा
प्रकाशन-विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में
सम्प्रति-सहायक अध्यापक

सह शिक्षा

इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण हो जाने के बाद रमा के पिता महेश ने रमा को स्नातक कक्षा में प्रवेश दिलाने हेतु विचार करना शुरू किया।लेकिन इस कार्य के संबंघ में उनके मन में द्वन्द्वात्मक स्थिति उत्पन्न हो गई। द्वन्द्व इस बात का था किवह अपनी पुत्री का प्रवेश किसी महिला कालेज में करवायें या सह शिक्षा के कालेज में।
इस बात का निर्णय करने के लिएवह अपने मित्र राजेश रंजन के पास गये।रातेश रंजन की सलाह स्पष्ट थी।उन्होंने कहा महेश जील ड़कियों के व्यक्तित्व का जिस प्रकार का विकास सह शिक्षा वाले कालेज में हो सकता है वैसा विकास महिला कालेज में नहीं हो सकता।इसका कारण यह है कि लड़कियां सह शिक्षा वाले कालेज में लड़कों से बहुत कुछ  सीखती हैं।लड़कों के आत्मविश्वास,साहस एवं संघर्ष करने की क्षमता से परिचित होकर लड़कियां अपना बेहतर विकास कर सकती हैं।यही नहीं समाज में स्त्री पुरूषों के संबंधकिस प्रकार से समाज के उत्थान के लिए बेहतर ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं।इसका बीजारोपड़ तो सह शिक्षा वाले कालेज में बेहतर रूप से हो सकता है।
राजेश रंजन की इन सारी बातों संतुष्ट होकर रमा के पिता ने उसका प्रवेश एक सह शिक्षा वाले कालेज में दिलवा दिया।

संपर्क-पहिया बुजुर्ग,बांसेपुर डड़वा अतरौलिया आजमगढ़ 0 प्र0 223223
मोबा0-09198841245