बुधवार, 11 जून 2014

पूनम शुक्ला की कहानी - मेमोरेबल मोमेन्ट्स


                                                                                 पूनम शुक्ला
                                 मेमोरेबल मोमेन्ट्स


दूसरे पीरियड की घंटी बजते ही मैडम प्रीती कक्षा की ओर बढ़ रही थीं । आज उनके चेहरे पर कल जैसी हल्की मुस्कान नजर नहीं आ रही थी । चेहरे पर गंभीरता का संकेत कुछ भीतर समेटे हुए था । जरूर कुछ नया होने वाला था ।उनके हाथों में कुछ बच्चों की चैक की हुई कापियाँ थीं पर साथ में एक बंडल जैसा भी कुछ था । वैसे तो प्रीति मैडम का व्यक्तित्व शानदार है ,देखनें में गंभीर ,बादामी रंगत,सलीके से कटे हुए कंधों तक काले बाल,बोलती आँखें,लंबाई पाँच फुट सात इंच ,स्कूल वालों नें उन्हें बहुत सोच समझ कर अपने स्कूल की शिक्षिका के रूप में चुना है । वो बच्चों को किसी भी काम के लिए जल्दी ही राजी कर लेती हैं । प्राइवेट स्कूल की नौकरी में सबसे पहले ये गुण होना सबसे ज्यादा जरूरी है । जो भी कर्मचारी बच्चों को सबसे अधिक मोटिवेट करता है बेस्ट टीचर का एवार्ड भी उसी की झोली में गिरता है । प्रीती मैडम इन सब कार्यों में दक्ष हैं। उनके सामने अच्छे - अच्छे पढ़े लिखे धुरंधर गच्चा खा जाते हैं । जब उन्होंने ये स्कूल ज्वाइन किया था वो बस बी०ए० पास थीं । बी०एड० की डिग्री तो उन्होंने चार साल बाद पत्राचार द्वारा प्राप्त की थी । पर उनके सामने एम०ए० एम०एड० व पी०एच०डी० किए हुए कर्मचारी धूमिल पड़ जाते हैं । अच्छे शिक्षक स्कूल के पीछे की छुपी हुई राजनीति समझने में असफल हो जाते हैं और साल दो साल में ही कहीं और ठिकाना ढ़ूँढ़ने लगते हैं या फिर उन्हें ठिकाना ढ़ूँढ़ने पर मजबूर कर दिया जाता है ।पिछले ही हफ्ते की तो बात है । डा० सिंह पी० एच० डी० इन इकोनोमिक्स ,ये स्कूल छोड़ कर दूसरे स्कूल जा चुके हैं । यहाँ पुराने टीचर्स नयों को टिकने का मौका ही नहीं देते भले ही वो कितने ही एक्टिव व नौलेजेबल क्यों न हों। पिछला स्कूल छोड़कर अभी एक साल पहले ही तो आए थे । यहाँ सैलरी ठीक थी । पिछले स्कूल में तो स्कूल वाले सैलरी एकाउंट में डालते थे और आधी सैलरी कैश के रूप में वापस माँग लेते थे । पूछने पर कहते थे कि स्कूल घाटे में चल रहा है , एकाउंट्स मैंटेन करना पड़ता है । क्या करें मजबूरी है । इस स्कूल में कम से कम ये दिक्कत नहीं थी पर यहाँ की पौलिटिक्स कुछ और ही थी जो डा० सिंह समझ नहीं पाए । मजबूरन उन्हें ये स्कूल भी छोड़ना पड़ा । स्टाफ रूम में दस लोगों के सामने प्रीती मैडम ने हँसते हुए कहा था कि प्राइवेट स्कूल की नौकरी में ऊँची -ऊँची डिग्रियों व ऊँचे ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है । यहाँ तो बस दो ही स्किल्स चाहिए । पहला बच्चों पर कंट्रोल और दूसरा हाउ टू मोटिवेट देम ।
स्कूल के कोरिडोर में अपनी मनपसंद गति से चलती हुई प्रीती मैडम बहुत शानदार नजर आती हैं । उनका वार्डरोब एक से एक शानदार साड़ियों से भरा पड़ा है । वार्डरोब में हर प्रांत और हर वैराइटी की साड़ियाँ हैं जो समय - समय पर विभिन्न कर्मचारियों द्वारा लाई गई हैं । कक्षा छठीं...... सातवीं .......और ये रही आठवीं...... । कक्षा आठवीं में ही मैडम का दूसरा पीरियड है । प्रीती मैडम के कक्षा में घुसते ही सभी बच्चे एक साथ बोल पड़ते हैं -
गुड मौर्निंग मैम
गुड मार्निंग चिल्ड्रैन - मध्यम आवाज में प्रीती मैडम भी नई सुबह की खुशनुमा तरंगों को बटोरने का प्रयास करती हैं ।कापियों को एक तरफ रखते हुए सबसे पहले उनके हाथ बंडल ही खोल रहे हैं । एकाएक अनुराग सबकी चुप्पी तोड़ता है -

"वाट इस दिस मैम , इस इट अ न्यू सर्कुलर ?"

"यस माई चिल्ड्रन ! एनुअन फंक्शन इज़ कमिंग । कम अनुराग एंड डिस्ट्रिब्यूट दिस सर्कुलर एमांग स्टूडेन्ट्स
" ।

चुपचाप बैठे बच्चों के चेहरे एकाएक खिल उठते हैं । सभी के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ पड़ती है । वाह एनुअल फंक्शन ! कितना मज़ा आएगा । इस फंक्शन का तो सभी बच्चों को इंतजार रहता है कोई डांस में भाग लेना चाहता है कोई कव्वाली में ,कोई नाटक में तो कोई गायन में । अनुराग नें फटाफट सर्कुलर बाँटने शुरू कर दिए हैं । वो कक्षा का बड़ा ही शालीन व मेधावी छात्र है इसलिए ऐसे छोटे - मोटे कार्यों में टीचर्स उसे ही याद करते हैं और वो भी बड़ी तल्लीनता के साथ अपना कार्य करता है । अनुराग के पिता की एक स्टेशनरी की दुकान है और माँ गृहणी । समय मिलने पर माँ भी कभी-कभी दुकान पर आकर हाथ बँटाती हैं । अनुराग अपने माता - पिता की आँखों का तारा है । माता - पिता अपने सारे सपने अनुराग की आँखों से ही देखते हैं इसलिए अनुराग का दाखिला शहर के एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में कराया है ।पर ये क्या ? सर्कुलर पढ़ते ही बच्चों के खिले चेहरे  एकाएक उदास व मुरझाए फूलों में कैसे बदल लगे हैं ।खुशी की लहरें तो बस अभी उछली ही थीं कि सागर ने उसे फिर से अपने भीतर कैसे लील लिया । सर्कुलर में ग्यारह सौ रुपए लाने की बात लिखी गई है । जो भी बच्चा एनुअल फंक्शन में भाग लेगा चाहता है उसे ग्यारह सौ रुपए पहले जमा करने पड़ेंगे तभी वो भाग लेने के काबिल है वर्ना नहीं ऐसा कुछ संदेश अभिभावकों तक पहुँचाने के लिए खास सर्कुलर बनाया गया है ।सभी बच्चों के भाव बदल जाते हैं और वो एक दूसरे का मुँह देखने लगते हैं । धीरे- धीरे उनके बीच खुसुर - पुसुर शुरू हो जाती है । बच्चे तरह-तरह से हाथों और चेहरों के भाव से दूर बैठे बच्चों से बातें करने लगते हैं । आखिर टीना से रहा नही जाता और वो बोल ही पड़ती है -

-" मैम इलेवन हंड्रैड ! दिस इज टू मच मैम । ग्यारह सौ तो बहुत ही ज्यादा हैं , पिछली बार तो पाँच सौ ही लिए थे । इतना तो मेरे पेरेन्ट्स देने को तैयार भी नहीं होगे मैम । "

तभी सारे बच्चे एकसाथ टीना के साथ हो लेते हैं और सभी एकसाथ कहते हैं -
"हाँ मैम ! ये तो बहुत ज्यादा है ,इतना हमलोग नहीं दे पाएँगे मैम ।"

टीना आखिर कक्षा आठवीं की छात्रा है और साथ में इतनी सारी आवाज़ें भी कक्षा आठवीं की ही हैं । कक्षा आठवीं में बच्चों को इतनी समझ तो हो ही गई है कि ये एक बड़ी रकम है और घर में इसे नकारा जा सकता है। हाँ ये मामला छोटे बच्चों की समझ से अभी बाहर है जिन्हें रुपए प्लेइंग कार्ड की तरह लगते हैं। उन्हें तो बड़ी आराम से समझाया जा सकता है -

" इलेवन हंड्रैड , ओनली इलेवन हंड्रैड ,सिर्फ ग्यारह सौ ही तो हैं । "

पर ये कक्षा आठवीं है । बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे हैं । इनके मस्तिष्क और शरीर दोनों में बदलाव आ रहे हैं । इनका अधखिला शरीर धीरे -धीरे एक -एक कर पंखुड़ियाँ खोल रहा है । इनके मस्तिष्क में स्थित ज्ञान की कोशिकाएँ धीरे- धीरे प्रकाशमान हो रही हैं । ये बच्चे अब घर बाहर की परिस्थितियों को धीरे-धीरे निरख रहे हैं , परख रहे हैं । अनुराग तो कभी- कभी अपनी पिता की दुकान का जायजा भी ले आता है । कुछ बच्चे तो अब घर की खरीददारी में भी हाथ बँटाते हैं । इस जीविका के लिए धन की आवश्यकता है और ग्यारह सौ एक बड़ी रकम है इतना तो इन्हें समझ आ ही गया है ।

पर प्रीती मैडम इन कामों में दक्ष हैं । उन्हें पता है बच्चों को कैसे मोटिवेट करना है । कैसे बच्चों के दिमाग को पलटना है ताकि वो किसी भी तरह इतनी रकम अपने अभिभावकों से माँगकर सामने रख दें । पिछली बार भी बच्चों को लंबी टूर पर ले जाना था ,रकम ज्यादा थी । कक्षा में बस दो बच्चे ही जाने को तैयार हुए थे । प्रीती नें ऐस-एेसे दाँव खेले कि बीस बच्चे मोटीवेट हो गए । रकम अच्छी इकट्ठी हुई और हिल स्टेशन का जोरदार टूर रहा । हर मीटिंग में प्रिंसिपल साहिबा यही तो कहती हैं  -

 "यू आर टीचर्स ,यू नो हाउ टू मोटिवेट चिल्ड्रेन"।

मोटी रकम देखकर पेरेन्टस तो ना नुकूर करते ही हैं पर अगर बच्चों को मोटिवेट कर दिया जाए तो वो अपने माँ बाप से पैसे निकलवा ही लेते हैं । पर इस बार के एनुअल फंक्शन का उछाल कुछ ज्यादा ही है । सीधे पाँच सौ से ग्यारह सौ । बच्चों ने तो सुनते ही नकार दिया है । दिन भर बच्चों में ये सर्कुलर एक चर्चा का विषय बना हुआ है । जब भी उन्हें वक्त मिलता है बढ़ी रकम पर ही बातें होने लगती हैं । एनुअल फंक्शन में कौन भाग नहीं लेना चाहता पर फिर भी उनकी आँखों की चमक धूमिल पड़ गई है । खैर जैसे-तैसे दिन खत्म हो गया है और अब प्रीती मैडम को अगले दिन का इंतजार है ।
                        घर में सभी स्टूडेन्ट्स अपना-अपना सर्कुलर अपने माता-पिता को दिखाते हैं । अनुराग के पिता का तो सर्कुलर पढ़ते ही दिमाग गरम है -

"क्या ग्यारह सौ ! ये स्कूल वाले हैं या लुटेरे । एडमीशन के समय सत्तर हजार किसी तरह जुटा कर दिए थे । तीन महीने की फीस बारह हजार से ऊपर जाती है । इसके बावजूद भी ये लोग फंक्शन  के लिए अलग से पैसे माँगते हैं ? क्या इनको माँगने में शर्म भी नहीं आती है । "

अनुराग भी जानता है कि दुकान से आई एक अच्छी रकम तो स्कूल की फीस भरने में ही चली जाती है । किताबें ,कापियाँ व ड्रैस भी कितनी महँगी पड़ती हैं । ऊपर से स्कूल वाले छोटे- मोटे टेस्ट के लिए भी जब न तब फीस का सर्कुलर पकड़ा देते हैं और अब यह ग्यारह सौ ! इसे देना तो नामुमकिन है ।

मोना के पापा ने तो सर्कुलर पढ़ते ही उसे फाड़ कर फेंक दिया है-

"कोई जरूरत नहीं है ऐसे फंक्शन में भाग लेने की । पिछली बार तुमने क्या किया था ?बस दो मिनट का रोल था ।"

मोना का मुँह मुरझाया फूल सा लटक गया है । इस बार मोना नें डांस में पार्टिसिपेट करने का सोचा था । पिछली बार उसे एक योद्धा बना दिया गया था । युद्ध में लड़ना था और मर जाना था । पापा ने किसी तरह पाँच सौ रुपए दे दिए थे । पर इस बार तो ग्यारह सौ ...........

टीना के पापा और मम्मी दोनों काम करते हैं तब जाकर घर का खर्च  चल पाता है। एक की कमाई तो मकान का किराया और बच्चों की फीस भरने में ही चली जाती है । दूसरे की कमाई से घर खर्च चलता है ।

" आखिर कहाँ पढ़ाएँ बच्चों को ? सरकारी स्कूलों में तो पढ़ाई ही नहीं होती । बड़े-बड़े सरकारी कर्मचारी भी प्राइवेट स्कूलों की तरफ ही भागते दिखते हैं । यहाँ तक कि सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों के बच्चे भी महँगे प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ते हैं ।" टीना के पापा ने कहा

"हाँ सही कहा आपने । ये जो बगल में सुनीता मैडम रहती हैं न राजकीय इंटर कलेज में पढ़ाती हैं पर इनका बेटा भी प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ता है । अभी कुछ दिनों पहले ही सोसाइटी के एक कार्यक्रम में मिली थीं । मैंने पूछा कि रोज का इंटर कालेज आना-जाना , काफी व्यस्तता बनी रहती होगी । तो पता है मैडम ने क्या कहा "टीना की मम्मी ने टीना के पापा से पूछा

 क्या ?

"उन्होंने कहा कि हाँ बस जो मेहनत है आने-जाने में ही है । वर्ना वहाँ दिन भर बहुत आराम है । कभी कभार एक दो क्लास ले लेती हूँ ,बस । घर से अच्छा तो स्कूल में ही है । जिस दिन घर में रहती हूँ , काम कर-कर के थक जाती हूँ । "

"वाह ! ये तो बड़ी बढ़िया नौकरी है । उनका कालेज कहाँ है ? "

"अरे पिछली बार हम वहीं तो वोट देने गए थे । देखा नहीं था आपने । कालेज की इमारत कैसी जर्जर हालत में थी । "

"हाँ याद आया , मैडम कह रही थीं कि ये सामने के चार - पाँच कमरे ही काम के हैं । पीछे के तो कभी भी गिर पड़ें , ऐसी हालत में हैं । फंड सैंक्शन हो गया है । कंस्ट्रक्शन जल्दी शुरू होना है । लेकिन कोई दिक्कत नहीं है । इतना बड़ा मैदान है । दसों बड़े- बड़े पेड़ हैं । इन्हीं के नीचे हमलोग क्लास ले लेते हैं । अधिक्तर बच्चे तो बस खेलने ही आते हैं । यहीं मैदान में क्रिकेट , फुटबाल खेलते हैं और घर चले जाते हैं ।"

"याद है टीना को वहीं प्यास लग गई थी । पानी के लिए परेशान कर रही थी तब आपने ही पानी के लिए पूछा था । मैडम ने बताया था कि पार्क के कोने में पानी की टंकी तो है पर पानी की सफाई की कोई गारंटी नहीं है । वो अपना पानी का बोतल घर से ही लाती हैं ।"

"ऐसी हालत है सरकारी स्कूलों की और प्राइवेट वाले हैं कि जीने ही नहीं देते । आखिर आम आदमी जाए तो कहाँ जाए  ?"

"सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढ़ना अगर कंपल्सरी कर दिया जाए तब तमाशा देखने लायक होगा । डी० एम०,डी०एस०पी० के साथ जब सब बड़े-बड़े अफसरों की गाड़ियाँ सरकारी स्कूल और कालेजों के रास्ते नापेंगी तभी बदलाव संभव है ।"

अन्य बच्चो के घर में भी कुछ ऐसा ही माहौल है । कुछ सरकारी स्कूलों को कोस रहे हैं तो कुछ प्राइवेट स्कूलों को । कुछ अर्थव्यवस्था को कोस रहे हैं तो कुछ अर्थ पर कुंडली मारे अल्पसंख्यकों को ।
रवि और करण बड़े बाप के बेटे हैं । रवि के पिता की खुद की एक कंपनी है और करण के पापा रियल इस्टेट के मालिक हैं । जब से यहाँ बड़ी- बड़ी कंपनियों नें आकर अपने झंडे गाड़ने शुरू कर दिए हैं ,जमीन वालों की तो मौज हो गई है । उनकी एक- एक हाथ जमीन सोने के भाव बिक रही है और वो ऐश के साथ ठर्रे मुँह लगाए बैठे हैं । पूरी कक्षा में बस इन्हीं दोनो के माता-पिता ने सर्कुलर देखकर कुछ नहीं कहा है और रुपए अपने बच्चों के हाथ में थमा दिए हैं । करण देखने में काला और मोटा है । चलता है तो हाथी का बच्चा लगता है । रवि को पढ़ने-लिखने से कोई मतलब नहीं है । अक्सर कैन्टीन में चार बच्चों को ट्रीट देना उसका शौक है । कक्षा में कभी सवालों का जवाब भी नहीं देता और रीडिंग भी बड़ी गंदी करता है ।
                 आज फिर सभी बच्चे विद्यालय पहुँच चुके हैं । दूसरे पीरियड की घंटी बजती है और फिर प्रीती मैडम कक्षा आठवीं की ओर अपनी मनपसंद गति से बढ़ती हैं । कक्षा में पहुँचते ही सबसे पहले कल बँटे सर्कुलर पर ही चर्चा होती है पर पूरी कक्षा में ग्यारह सौ लाने वाले बस दो ही छात्र हैं - रवि और करण ।

रवि और करण का नाम एनुअन फंक्शन में भाग लेने वाले बच्चों की लिस्ट में सबसे पहले लिख दिया जाता है । मैडम बड़े प्यार से पूछती हैं "बेटा करण तुम किस एक्टिविटी में भाग लोगे "। करण मोटा हाथी के बच्चे जैसा है पर वो डांस में भाग लेने की इच्छा जाहिर करता है । मैडम मुस्कुराते हुए उसका नाम डांस में लिख देती हैं । रवि जिसे ठीक से बोलना भी नहीं आता नाटक में भाग लेना चाहता है पर मैडम उसकी भी इच्छा पूरी करती हैं । अब मैडम की मोटीवेशनल क्लास शुरू होती है -

" सी हाऊ दीज़ टू चिल्ड्रैन वांन्ट्स टू पार्टिसिपेट इन फंक्शन । बच्चों देखो यहाँ तुम्हें कितना सीखने को मिलेगा । ग्यारह सौ क्या है ? इट इज नथिंग । ये एनुअल फंक्शन है । साल में बस एक ही बार तो आता है । कम एन्ड इन्जाय द फंक्शन । अपने पेरेन्ट्स को समझाओ । आपकी खुशी के आगे ग्यारह सौ कुछ नहीं है । ओनली इन इलेवन हंड्रैड यू आर गेटिंग मेमोरेबल मोमेंन्ट्स .................."

आधा पीरियड मोटीवेशनल क्लास ही ले लेती है ।आज सबकी नजर रवि और करण पर ही है जिन्होंने एनुअल फंक्शन की फीस का भुगतान कर दिया है । आज फिर बच्चों में फीस ही चर्चा का विषय बनी हुई है । कुछ बच्चे मोटिवेट हो गए हैं कुछ अभी भी खिलाफ हैं । बच्चे अपने घरों में फिर चर्चा करते हैं । जो बच्चे मोटिवेट हो चुके हैं अपने पेरेन्ट्स को मोटिवेट करने का भरपूर प्रयास करते हैं पर तीन ही सफल हो पाते हैं ।

अगले दिन फिर प्रीती मैडम की कक्षा में एनुअल फंक्शन में भाग लेने वालें बच्चों की लिस्ट में ये तीन नाम जुड़ जाते हैं । अनुराग के चेहरे पर उदासी है । वो फंक्शन में भाग लेना चाहता है पर इन दिनों उसके घर में फाइनेन्शियल कंडीशन ठीक नहीं है ऐसा उसके पापा ने बताया है । प्रीती मैम की मोटिवेशनल क्लास फिर शुरू होती है ।

"देखो ! इन पाँच बच्चों को देखो । इनको फंक्शन में भाग लेने की कितनी ललक है । सी दे आर सो एक्टिव । दे आर गोइंग टू लर्न समथिंग न्यू ,दे आर गोइंग टू इन्जाय द फंक्शन .................."

आज की कक्षा में फीस देने वाले पाँच बच्चों को हीरो बना दिया गया है । एक्टिव और स्मार्ट बना दिया गया है । बाकी बच्चे उन्हें कनखियों से निहार रहे है । ओह ! ये खिलते फूल , जिनकी पंखुड़ियों नें अभी - अभी खिलना ही सीखा था क्या यूँ उदासीनता के काँटों के बीच होंगे ये किसने सोचा था । जिनके मस्तिष्क के भीतर ज्ञान की कोशिकाएँ जगने लगी थीं अब वही अपने पेरेन्ट्स को मोटिवेट करने का तरीका खोज रहे थे,घर में कम पैसों को कोस रहे थे क्या कभी इनके माता- पिता ये जान भी पाएँगे । आज फिर दो चार बच्चे अपने पेरेन्ट्स को मोटिवेट करने में सफलता प्राप्त कर ही लेंगे और कल उनका नाम भी लिस्ट में चढ़ जाएगा । यूँ ही दो चार दिनों में माता-पिता अपना पेट काट कर अपने बच्चों के लिए मैमोरेबल मोमेन्ट्स खरीदने के लिए राजी हो जाएँगे और लिस्ट बढ़ती चली जाएगी । पर फिर भी कक्षा में कुछ ऐसे बच्चे हैं जिनके माता-पिता पेट काट कर भी फीस भरने में सक्षम नहीं हैं । उनमें से एक अनुराग भी है । पढ़ने में अव्वल , स्मार्ट ,एक्टिव, डिसिप्लिंड जो आज चाह कर भी एनुअल फंक्शन की लिस्ट में अपना नाम जोड़ने में अक्षम है । आज आठवीं कक्षा में ही बच्चों को  पैसों की ताकत समझ में आ गई है । पिछले महीने ही तो कैरियर काउंसलिग की एक कंपनी स्कूल में आई थी । कक्षा दसवीं ग्यारहवीं के छात्रों से पूछा गया कि वो आगे चलकर क्या बनना चाहते हैं । पंचानबे परसेन्ट बच्चों नें कहा कि वो जीवन में खूब पैसा कमाना चाहते हैं । वो ऐसा कोई भी काम करने को तैयार हैं जिस फील्ड में खूब पैसा हो । अब न तो कोई देश की सेवा करना चाहता है न समाज की न साहित्य की । यहाँ तक कि कोई टीचर भी बनना नहीं चाहता । कुछ वर्षों पहले तो अधिक्तर लड़कियों की पहली पसंद टीचर बनना ही होती थी पर अब ? अब वो फैशन डिजाइनर बनना चाहती हैं ,मौडल बनना चाहती हैं ,मिस इंडिया बनना चाहती हैं । इस फील्ड में ग्लैमर है और ढ़ेर सारा पैसा । सिर्फ पैसा पैसा पैसा ............... । आखिर ये दृष्टिकोंण इनमें आया कहाँ से । हाँ मोटा करण पैसों के बल पर ही तो डांस करेगा । रवि जो ठीक से बोल नहीं पाता नाटक में भाग भी लेगा । मोना के माता - पिता भी किसी तरह तैयार हो गए हैं । उनकी बच्ची इस बार डांस में भाग लेना चाहती थी । पिछली बार बहुत छोटा रोल मिला था । मोना को तो नृत्य करना आता है । वो अच्छा परफार्म कर सकती है पर मोटा करण ?
                           दस दिनों से एनुअल फंक्शन की प्रैक्टिस चल रही थी और आज फंक्शन का दिन भी आ गया है । चारों तरफ की सजावट कमाल की है । खूबसूरत रंगोली और रंग - बिरंगे फूलों के गमलों से एन्ट्री गेट सजा दिया गया है । स्टेज पर जबर्जस्त लाइटनिंग सिस्टम लगाई गई है । बिल्कुल टी० वी० में होने वाले शो की तरह । बड़े - बड़े पाँच टी० वी० स्क्रीन्स पूरे मैदान में लगे हुए हैं । एक दो संबोधनों के बाद एनुअल रिपोर्ट और फिर डांस की भी शुरुआत हो गई है । डाँस क्या बस बच्चों की भीड़ जुटा दी गई है । जितनी ज्यादा भीड़ उतने ग्यारह सौ । रंगबिरंगे चटकीले चमकीले कपड़ों में बच्चों को सजा दिया गया है । सबके हाथों में चमकीले प्राप्स हैं । उन्हें बस प्राप्स हिलाने हैं और थोड़ा बहुत इधर- उधर घूमना है । बगल से फाग मशीन फाग छोड़ रही है। रह रह कर सफेद बादल स्टेज पर उठते हैं बच्चों के आधे स्टेप्स तो ऐसे ही ढ़क जाते हैं । रही सही कसर उनके आगे बजते पार्टी क्रैकर्स कर देते हैं । रंग बिरंगी चमकीली पन्नियाँ पूरे स्टेज पर उड़ रही हैं और आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं । उपर से तेज म्यूज़िक और जबरजस्त लाइट्स । इस भीड़ में तो पहचानना भी मुश्किल है कौन मोटा करण है और कौन टीना । कौन डांस कर पा रहा है कौन नहीं । डांस में कोई स्टेप है भी या नहीं । थोड़ी देर में डांस खत्म हो जाता है । अब एक नाटक होना है । तभी एक महिला अपने पति से बोलती है -
"जानते हैं , मैं स्कूल में बहुत अच्छी एक्टिंग करती थी। एक महीने पहले से ही तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं । सारे डायलाग्स याद करने पड़ते थे । फिर हमारे शिक्षक डायलाग डिलिवरी सिखाते थे । चेहरे पर ऐसे भाव होने चाहिए , तो आवाज यहाँ ऊँची तो यहाँ मध्यम होनी चाहिए । हमलोग बहुत मेहनत करते थे । मुझे कक्षा ग्यारहवीं में तो बेस्ट एक्टिंग का एवार्ड भी मिला था । इन बच्चों को देखकर मुझे अपना बचपन याद आ रहा है । "
"अच्छा तो नाटक शुरू होने ही वाला है ,अपना बचपन भी देख लो " पति ने कहा

कुछ ही समय में मंचन भी शुरू हो जाता है पर यह क्या ? अब तो न बच्चों को डायलाग याद करने की जरूरत है न ही बोलने का तरीका सीखने की । पूरा नाटक पहले से ही रिकार्डेड है । बस बच्चे सजे - धजे स्टेज पर आते हैं और रिकार्डेड डायलाग पर थोड़ा बहुत हाथ हिलाते हैं , मुँह चलाते हैं और चले जाते हैं । रवि जिसे बोलना भी नहीं आता वो भी बड़ी अच्छी एक्टिंग कर रहा है । तभी एक महिला कहती है -

"बच्चे यहाँ कुछ सीखते थोड़े ही हैं । अब ऐसे क्या बच्चे एक्टिंग सीखेंगे । ये तो बस ऐसे ही है । सिखाना है तो फिर कहीं बाहर नाम लिखवाना पड़ता है। यहाँ सिर्फ ताम- झाम ज्यादा है ।"

"क्या करें बच्चों की जिद्द के आगे झुकना पड़ता है । बच्चे मानते ही नहीं । बताओ इसी के ग्यारह सौ लिए हैं । इस बार तो मैंने मना कर दिया था ..... पर अब क्या कहूँ ... " दूसरी महिला कहती है ।

हाँ इन्होंने ये मोमेन्ट्स खरीदे हैं । आज ये मैमोरेबल मोमेन्ट्स इन्होंने अपने बच्चों के लिए ग्यारह सौ रुपयों में खरीदे हैं पर यहाँ अनुराग जैसे भी कुछ बच्चे हैं जो इन मोमेन्ट्स में शामिल नहीं हैं । ये तो बस मायूस चेहरे लिए सूनी निगाहों से अपने मेमोरेबल मोमेन्ट्स को खुद से दूर जाते हुए देखेंगे .....बस देखेंगे .............।


शनिवार, 24 मई 2014

किसने सोचा था-बिजेन्द्र सिंह






          2 अक्टूबर1995 को टिहरी गढ़वाल के खासपट्टी पौड़ीखाल के बाँसा की खुलेटी(गौमुख) नामक गांव में दलित परिवार में जन्में बिजेन्द्र सिंह ने राज्य स्तर पर खेल के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया है।स्कूल में हमेशा पढ़ाई में प्रथम  आने पर सम्मानित भी हुए हैं। प्रवाह ,भाविसा और पुरवाई पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित वर्तमान में श्री गुरूराम राय पब्लिक स्कूल देहरादून में अध्ययनरत। आप सुधीजनों के विचारों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।







बिजेन्द्र सिंह की कविता



किसने सोचा था कि
जो हाथ कल तक
दूसरे को बधाइयां देते
मिल रहे थे
वो एक दूसरे को
काटने के लिए तैयार हैं


जो लोग कल तक
एक दूसरे को गले लगाकर
खुशी मना रहे थे
वे एक दूसर का
गला काटने के बाद भी
दुखी थे

आखिर ऐसा क्या हुआ कि
इंसानियत को पीछे छोड़
ये लोग धरम को भगवान मान बैठे हैं
और दुश्मन बन बैठे हैं
उन तमाम लोगों के
जिन्हें शायद ये
पहचानते भी होंगे

आखिर क्यों
हल्के मनमुटाव पर भी
जला बैठते हैं कहीं घर
और उजड़ जाता है
तमाम इंसानियत का बसेरा

आखिर कब समझेंगे ये लोग
कि सालों से चलती रही
इन हिंसाओं से कोई लाभ नहीं हुआ
हुआ है तो सिर्फ
इंसानियत का नाश

अब वक्त गया है
समझने का
एक दूसरे का दुख दर्द बांटने का
नहीं तो वह दिन दूर नहीं
जब इंसानियत लोगों को
छू तक नहीं पायेगी

संपर्क. खासपट्टी पौड़ीखाल के बाँसा की खुलेटी(गौमुख)
       टिहरी गढ़वाल
       Mo-8171244006 

शुक्रवार, 9 मई 2014

कर गुजरना है कुछ ग़र :उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"



उमेश चन्द्र पन्त

कर गुजरना है कुछ ग़रतो जुनूं” पैदा कर
हक को लड़ना हैरगों में खूं” पैदा कर
वतन की चमक को जो बढ़ाये
तेरी आँखों में ऐसा नूर” पैदा कर  
वतन पे कुरबां होना शान हैमाना
तू बस अरमां” पैदा कर
शम्सीर” बख़ुदा मिलेगी तुझे तू
तू हाथों में जान” पैदा कर
अहले वतन को जरूरत है तेरी
तू हाँ कहने का ईमान” पैदा कर  
सीसा नहींहौसला-ए-पत्थर है उनका
तू साँसों में बस आंच” पैदा कर 
फ़तह मिलकर रहेगी तुझे  
हौसला पैदा कर
रौंद न पाएंगे तुझे चाह कर भी वे
कुछ ऐसा मंज़र” राहों में पैदा कर
होंगे "ख़ाक" वे, सामने जो आयेंगे
तू सीने में बस, "आग" पैदा कर..



मेरे हमसफ़र आ

तुझे ले के चलूँ

इन फिज़ाओं मै कहीं....


इन हवाओ क साथ 
तुझे कहीं उड़ा के ले के चलूँ

मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ

हुस्न की वादियों मैं


चाहत के समंदर मैं


बहाता ले चलूँ


मेरे हमसफ़र आ


तुझे दूर ले क चलूँ

तुझे एहसास दिलाऊं....


तुझे ये बताऊँ.....के तू मेरा है....


तू आया जब से..


मेरे जिन्दगी मैं नया सवेरा है

मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ

पर्वतों के पार..


एक घाटी मैं


जो है वादे-वफ़ा से सरोबार


मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ....

गुरुवार, 1 मई 2014

‘सूरज के बीज’ में जीवन के कई रंग




आज मई दिवस पर प्रस्तुत है काव्य संग्रह ‘सूरज के बीज’ की समीक्षा




             हिन्दी कविता में पूनम शुक्ला ने अपनी पहचान बना ली है इधर वे लगातार लिख रही हैं और अच्छी बात यह है कि छप भी रही है पूनम शुक्ला की कविताएँ हमारे जीवन और समाज की अक्कासी करती हुई एक बड़ी और विशाल दुनिया से हमारा नाता जोड़ती हैं उनकी कविताओं में प्रेम भी है,जीवन के स्याह- सफ़ेद रिश्ते भी हैं और एक महिला के सुख दुख भी हैं हालांकि वे स्त्री विमर्श को नारों की तरह इस्तेमाल नहीं करतीं,फिर भी वे महिलाओं की उस पीड़ा को बहुत ही शिद्दत के साथ अपनी कविताओं में उतारती हैं जो कहीं कहीं उनके जीवन को प्रभावित करती हैं उनके उस रंग को उनके पहले संग्रह "सूरज के बीज" में भी देखा जा सकता है "सूरज के बीज " का प्रकाशन हाल ही में हुआ है और अपने इस पहले काव्य संग्रह में पूनम शुक्ला जीवन के उन स्याह सफेद रंगों को हमारे सामने रखती हैं ।फ्लैप पर कवि मित्र श्याम निर्मम नें सही ही लिखा है कि पूनम शुक्ला नें कविता लिखना किसी पाठशाला में नहीं सीखी है बल्कि जीवन की पाठशाला नें उन्हें जो सिखाया पढ़ाया पूनम शुक्ला ने उसे अपनी कविताओं में पिरोकर पाठकों के सामने पेश किया
 
                         पूनम शुक्ला भाषा के स्तर पर प्रयोग करती हैं,नए बिंब रचती हैं और नए मुहावरे भी गढ़ती हैं संग्रह की कविताओं में इसे देखा समझा जा सकता है उनकी कविताओं में महिला की पीड़ा तो है ही,प्रकृति के रंग भी शिद्दत से बिखरे दिखाई पड़ते हैं कुछ कविताओं में वो खुद से भी मुख़ातिब हैं लेकिन ये खुद से मुख़ातिब होना दरअसल उस स्त्री से मुखातिब होना है जो अक्सर भीड़ में खुद को अकेली और असहाय खड़ा पाती है

 
                 'पहचानों' शीर्षक कविता में वे बहुत ही सहजता के साथ सवाल करती हैं- ' क्या आंसुओं से लिपटी/ उस आवाज़ को/ सुन सके हो तुम,/ नारी के आंसुओं की आवाज़ / जिनमें ममता छिपी है/और आदर्श भी/जिनमें विनम्रता है असीम/ और सहज कोमलता भी ' बहुत ही सहजता से वे ऐसे सवाल बार-बार अपनी कविताओं में उठाती हैं औरत और मर्द के सवालों से वे बार- बार जूझती हैं एक दूसरी कविता में वे कहती हैं ' फिर कहीं/ औरत झुकी है/ फिर कहीं/ इज्जत लुटी है/ आज दो हैं / कल चार होंगे / रोज ही औरत/ पिटी है ' समाज में औरत की आज जो स्थिति है पूनम शुक्ला उसे साफ़गोई से कविताओं के ज़रिए हमारे सामने रखती हैं संग्रह में और भी ऐसी कविताएँ हैं जो जीवन के कड़वे और तल्ख़ हक़ीक़त को बहुत ही शिद्दत के साथ बयां करती हैं लेकिन संग्रह में इससे इतर मूड की भी कविताएँ भी हैं,जिनमें प्रकृति के कई- कई रंग दिखाई देते हैं ये कविताएँ उम्मीद की हैं,विश्वास की हैं और जीवन की हैं

फ़ज़ल इमाम मल्लिक
उप संपादक जनसत्ता दिल्ली
संपादक सनद पत्रिका

 


                          पूनम शुक्ला

 सूरज के बीज ( काव्य संग्रह ) : कवयित्री : पूनम शुक्ला,प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन, - 28, लातपत नगर,साहिबाबाद, गाजियाबाद ( उत्तर प्रदेश ) मूल्य : एक सौ पचास रुपए