गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

कविता क्या है-पूर्णिमा जायसवाल

 
      13 दिसम्बर 1994 को कटहर बुटहनी गोण्डा उ0प्र0 में जन्मी नवोदित कवयित्री पूर्णिमा जायसवाल ने बहुत सरल शब्दों में अपनी बात कहने की कोशिश की है।  कविता के बहाने हुए संवाद को बहुत ही बारीक धागों से बुनने की कोशिश की है। पुरवाई  में आज पढ़ते हैं पूर्णिमा जायसवाल की कविता- 
कविता क्या है

विभिन्न ध्वनियों की गूंज है कविता
मानव अंकुरण की बीज है कविता
नदियों पर भी बनी कविता
पहाड़ों पर भी बनी कविता
समुन्दर पर भी बनी कविता
दसो दिशाओं की गूंज है कविता
मानव हृदय की सूज बुझ है कविता
मेरे उर की वासी कविता
मेरी थी विश्वासी कविता
देखो कैसे बुनती चली गई
बहुत कुछ कहती चली गई
कवि हृदय की प्रेम है कविता
मां के पहल की लेख है कविता
पिता प्रेम की सोच है कविता
सहती कविता बर्दास्त करती कविता
जाने कहां कहां निवास करती कविता
मेरी अपनी ऐसी कविता
 
मां के मन की थी ममता मैं लिखू कविता
सुख दुख की थी निवासी कविता
मां की थी विश्वासी कविता
मेरी कविता में ऐसी झंकार नहीं है
जहाँ किसी अंग की पुकार नहीं है
उठती गिरती बलखाती कविता
अनेक मिश्रणों से मिलकर
देखो कैसे बन जाती कविता
कष्ट से नहीं घबराती कविता
हृदय पर चढ़ जाती कविता
भूख प्यास मिटाती कविता
सृष्टि की पूरी सार है कविता
मानव की व्यवहार है कविता
मन की बौछार है कविता
इस जग की तलवार है कविता
इतनी क्यों उदास है कविता
उसके उर की बात है कविता
मेरे कलम की धार है कविता
ऐसी मेरी कविता ।


सम्पर्क - पूर्णिमा जायसवाल
कटहर बुटहनी , लतमी उकरहवॉ
मकनापुर, गोण्डा उ0प्र0-271302
मोबा0-9794974220

रविवार, 23 सितंबर 2018

ईश्वर की अनुपस्थिति में एवं अन्य कविताएं :आरसी चौहान





 बहुत दिनों बाद उपस्थित हूं कुछ कविताओं के साथ 


1- ईश्वर की अनुपस्थिति में

ऐसी हो धरती
जहां भोरहरी किरणों सा मुलायम
और मां की ममता की तरह
पवित्र हों आदमी

उनके अकुलाए हाथ
बनाने में हों माहिर
खुशियों का मानचित्र

हवाओं को लपेट कर
रख सकें सिरहाने
ऐसा हुनर हो उनमें

जीवन के घाटों पर
बांट सके एक दूसरे का सुख दुख
और जुड़ा सकें एक ही छाया तले
ऐसी हो धरती
ईश्वर की अनुपस्थिति में ।





2-खूबसूरत धरती के बारे में

वे लिख रहे हैं सदियों से
और नहीं लिख पा रहे हैं
आदमी को आदमी

वे लिखना चाहते हैं
नदियों को नदियां
और नदियां हो जा रही हैं रेत

वे पहाड़ों के बारे में भी
चाहते हैं लिखना
उनमें उगे जंगलों
और झाड़ियों के बारे में भी
कि
देखते ही देखते बदल जा रहे हैं
आग के गोलों में पहाड़

पृथ्वी को लिखना चाहते हैं पृथ्वी
कि पृथ्वी घूमते हुए
रणभूमि में बदल जा रही है

बच्चे जिनपर अभी तक लिखी गयी हैं
बहुत सारी कविताएं
उन्हें फूलों की तरह मुस्कराते
हिरन की तरह उछलते कूदते
खरगोश के बालों की तरह मुलायम
बताया गया है

यहां तक कि
ये बच्चे तो
दो देशों को बांटने वाली सरहदों को भी 
नहीं जानते
बंदूक , बारुद और बमों से भी अनभिज्ञ
ये नहीं जानते
युद्ध में मारे गये अपने पिताओं
और उनके हन्ताओं को
छल कपट और ईर्ष्या द्वेष का गणित
तो बिल्कुल नहीं समझते
ये तितलियों की तरह उड़ना चाहते हैं
सपनों में परियों से बतियाना चाहते हैं

इनकी प्रार्थनाओं में
आदमी को देवता
नदियों को बलखाती हुई
पहाड़ों को आसमान चूमता हुआ
और पृथ्वी को लिखा है जननी
हम इनके भूगोल को कब समझ पायेंगे
और लिख पायेंगे एकदिन एक
खूबसूरत धरती के बारे में ?



 3- बहुत दिनों से



बहुत दिनों से लिखना चाहता हूं

एक कविता

स्कूल जाते बच्चों पर

जो दुनिया को फूल की तरह

खिलाना चाहते हैं

और इकट्ठा हों रहे हैं

तमाम तमाम स्कूलों में

हर सुबह

हरसिंगार के फूलों की तरह

स्कूलों के फेफड़ों में

भर रहें हैं ताजी हवा से महकते

और स्कूल हो रहे स्पंदित



एक और कविता लिखना चाहता हूं

किसानों के लिए

जिनके हल के फाल तोड़ रहे सन्नाटा

कठोर चट्टानों के

फड़फड़ाते पन्नों पर

दर्ज कर रहे बीजों के एक एक अक्षर

ओर पृथ्वी को रंग देना चाहते हैं

हरियाई फसलों से



एक कविता और लिखना चाहता हूं

सरहद पर जूझते जवानों के लिए

जिनका होना

हमारे देश का सुरक्षित होना है



पर जो बच्चे

अभी स्कूलों से लौटे नहीं हैं

जिन किसानों का कलेवा

उनके हलक के नीचे उतरा नहीं है

घर वापसी के लाख वादों के बावजूद

जो जवान अब कभी लौट नहीं सकते

उन पर कविताएं न लिख पाने के लिए

क्षमा चाहता हूं देशवासियों।


 संपर्क -आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़ उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com