बुधवार, 5 जून 2019

मिलाकर आये हो : अशोक बाबू माहौर


 
मध्य प्रदेश के मुरैना जिला में 10 जनवरी 1985 को जन्में अशोक बाबू माहौर का इधर रचनाकर्म लगातार जारी है। अब तक इनकी रचनाएं स्वर्गविभा, अनहदक्रति, साहित्यकुंज, हिंदीकुंज, साहित्यशिल्पी, पुरवाई, रचनाकार, पूर्वाभास, वेबदुनिया, अद्भुत इंडिया, वर्तमान अंकुर, जखीरा, काव्य रंगोली, साहित्य सुधा, करंट क्राइम, साहित्य धर्म आदि में प्रकाशित।
  
सम्मान : इ- पत्रिका अनहदक्रति की ओर से विशेष मान्यता सम्मान 2014-15  नवांकुर वार्षिकोत्सव साहित्य सम्मान  नवांकुर साहित्य सम्मान काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान मातृत्व ममता सम्मान आदि 
प्रकाशित पुस्तक :साझा पुस्तक
(1)नये पल्लव 3
(2)काव्यांकुर 6
(3)अनकहे एहसास



मिलाकर आये हो
 
उफ! गंदे नाखून
गंदगी से सने
मटमैले
क्यों तुम्हारे?
आँखें भी लाल
चेहरा झुर्रियों से भरा
कहाँ से आये हो तुम?
सच सच बताना
न कुछ छुपाना
इतना गंदगी का ढे़र
नाखूनों पर
सजाये क्यों घूम रहे हो?
आप कहो न कहो
मुझे पता है
आप संघर्ष कर
जोड़कर आये हो
राह से राह,
मिलाकर आये हो
भले मनुष्यों को
आपस में।


संपर्क :ग्राम कदमन का पुरा, तहसील अम्बाह,
जिला मुरैना (मप्र) 476111
मो-08802706980

मंगलवार, 21 मई 2019

अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’ की कविताएं




  दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान ,कादम्बनी,वागर्थ ,बया ,इरावती प्रतिलिपि डॉट कॉम , सिताबदियारा ,पुरवाई ,हमरंग आदि में  रचनाएँ प्रकाशित
2001  में  बालकन जी बारी संस्था  द्वारा राष्ट्रीय  युवा कवि पुरस्कार
2003   में बालकन जी बारी संस्था   द्वारा बाल -प्रतिभा सम्मान 
आकाशवाणी इलाहाबाद  से कविता , कहानी  प्रसारित
‘ परिनिर्णय ’  कविता शलभ  संस्था इलाहाबाद  द्वारा चयनित
अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’ की कविताएं

1-मेरी प्यारी साईकिल

मेरी प्यारी –प्यारी साईकिल
बिना तेल के ये चलती है
ना लेती भोजन ,पानी ये
जाने कैसे पलती है
सुबह शाम है सैर कराती
नयी –नयी ये डगर दिखाती
नहीं उगलती धुएं ये गंदे
ना करती आवाज़ ये भारी
इसके आगे पीछे बत्ती
ये जगमग –जगमग जलती है |

2-सूरज दादा
 
सूरज दादा चमक तुम्हारी
जग करती उजियारा
मगर अकेले क्यों रहते हो
संग ना कोई तारा
सुबह शाम के फेरे में
तुम भी हो जाते होगे बोर
दिनभर तुम्हे थकाता होगा
गाड़ी मोटर का भी शोर
इतनी चमक अकेले कैसे
तुम बिखराते रहते
पौधे, प्राणी, जीव -जंतु सब
राह तुम्हारी तकते
किरणों से चिट्ठी भिजवाना
लिखना राज़ चमक का
कैसे -कैसे क्या करना है
जिससे रहूँ दमकता
तेरे जैसा चमक सकूं मैं
जग को भी चमकाऊं
अम्बर में तुम, धरती पर मैं
तेरा साथ निभाऊं |


संपर्क सूत्र-
ग्राम- खेमीपुर, अशोकपुर , नवाबगंज जिला गोंडा , उत्तर - प्रदेश
मोबाईल न. 8826957462     mail-  singh.amarpal101@gmail.com

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं

  


 हिमाचल प्रदेश के सुदूर पहाड़ी गांव से कविताओं की अलख जगाए राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं किसी पहाड़ी झरने की तरह मंत्र मुग्ध कर देने के साथ आपको यथार्थ के धरातल सा वास्तविक आभास भी कराती हैं। कवि के कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। बिल्कुल पहाड़ी नदियों की तरह निश्चल और पवित्र हैं इनकी कविताएं। गांव , नदी , पहाड़  ,जंगल , घाटियां नया आयाम देती हैं इनकी कविताओं को ।
   

     बकौल राजीव कुमार त्रिगर्ती - गांव से हूं ,आज भी समय के साथ करवट बदलते गांव से ही वास्ता है। जीवन का वह हिस्सा जब हाथ लेखनी पकड़ने के लिए बेताब थाए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के माहौल में बीता। वाराणसी की खरपतवार और रासायनिक उर्वरक. रहित साहित्य की भूमि में कब कवित्व का बीज अंकुरित हुआ कुछ पता ही नहीं चला। भीतर के उद्गारों को अपने ढंग से व्यक्त कर पाने की हसरत से ज्यादा आत्मसंतुष्टि शायद ही कहीं होती हो। असल में पहाड़  ,जंगल , घाटियों , कलकलाती नदियां हैं तभी तो पहाड़ में प्रेम है। इनके होने से ही जीवन जटिल है तभी तो पहाड़ में पीड़ा है। यहां प्रेम और पीड़ा का सामांजस्य अनंत काल से सतत प्रवाहित है। प्रकृति के सानिध्य में सुख दुख के विविध रूपों को उभारना अच्छा लगता है। मेरे लिए यह बहुत है कि प्रकृति के सानिध्य में भीतर के उद्गारों को व्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका मिल गया है। भीतर के उद्गार को अपने ही शब्दों में व्यक्त करने के आनंद की पराकाष्ठा नहीं और यह आनंद ही मेरे लिए सर्वोपरि है। 
 
 राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं -
1- अपने पंखों पर

अब जब यह तय है कि
मेरे पॅंखों के पास
नहीं है वह उड़ान
जो मुझे पहुॅंचा देगी
तुम्हारी प्रेमसुधा तक
उधार के पंखों से उड़ना
मूर्खता है किसी भी युग में
तो मैं एकदम विपरीत
बहुत ऊपर चढ़ जाता हूॅं
एक पहाड़ की चोटी पर
आर या पार के बीच
करता हूॅं आखिरी कोशिश
पंखों की पूरी ताकता आजमाता हूॅं
तुम्हारी प्रेमसुधा की दिशा में
तीव्र गति से जाते पवन के झोंके में
ऑंखें मींचकर छोड़ देता हूॅं
खुद को उन्मुक्त
दिग्दिगन्त के महासमुद्र में।

2-तुम्हें देख लेने के बाद


तुम्हारे बारे में सोच लेने से ही
तैर जाती है मुस्कुराहट
पोर-पोर हो जाता है सुगन्धित
जैसे फूलों की वाटिका से
चली आती है वासन्ती हवा,

तुम्हारे बारे में सोच लेने से ही
बढ़ जाती है धड़कनों की गति
गर्मियों के मौसम में
हिमखंड के चूने से
हरहरा उठती है जैसे नदी,

तुम्हारे बारे में सोच लेने से ही
सिहर उठता हूॅं भीतर तक
जैसे कि चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब
पहाड़ की शीतल हवा में
लहराता झील के भीतर,

तुम्हारे बारे में सोच लेने से ही
प्राण हो जाते हैं हरे
जैसे पहाड़ की ढलान पर
बरसात के मौसम में
भीगे-भीगे धान के खेत,

ऐसे में तुम ही सोचो
क्या होता होगा
तुम्हें देख लेने के बाद!

संपर्क-

राजीव कुमार ‘‘त्रिगर्ती’’
गॉंव-लंघू, डाकघर-गॉंधीग्राम
तह0-बैजनाथ, जिला-कॉंगड़ा
हि0प्र0 176125
94181-93024

रविवार, 31 मार्च 2019

चन्द्र की कविताएं






 फेसबुक से हुई जान पहचान के इस असम के कवि की कविताएं


1-ये गेहूं के कटने का मौसम है

ये गेहूं के कटने का मौसम है..
इस मौसम में
देशी -परदेशी चिड़ियाएँ
उदास होती हुई
लौटेगीं
कपिली नदी के उस पार घने वन जंगलों में दूर कहीं
इस मौसम में
गेहूं के खेतों में झड़े हुए गेहूं के दानों को
पंडूक खूब खाएंगे
और फुर्र फुर्र उड़ जाएंगे बड़ी ही अफसोस के साथ
जब हम गेहूं को काट कर घर आंगन में ढोने लगेंगे
दाँने के लिए
इस मौसम में
गेहूं काटने के लिए
गांव जवार के सभी खेत मजदूर किसान
लोहारों के यहां
हंसुवे को पिटवाएंगे
धार दिलवाएंगे
ये गेहूं के कटने का मौसम है
इस मौसम में
हंसी खुशी मजदूरी मिलेगी खेत मजदूरों को
इस मौसम में
गेहूं के खेतों में बनिहारिन स्त्रियां
कटनी की लहरदार गीतें गाएंगी
तब झुरू झुरू बहेंगी
शीतल बयरिया भी
तब चिलकती धूप भी रूप को मुरझा देंगी
ये गेहूं के कटने का मौसम है दोस्तों !
इस मौसम में
चौआई हवाएँ भी खूब बहेंगी
और यह बहुत डर भी है
कि धूप तो तेज होगी ही
धूप में हम श्रमिकों की समूची देह जलेगी ही
लेकिन हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं
कि इस बार जले न गेहूं किसी का
न फंसे खेत में ही बारिश के चलते
न जमे खेत में ही गेहूं बारिश के चलते !!

 


2-"मोर बाबा कहते थे कि बाबू!"

मोर बाबा कहते थे कि बाबू
कहते थे कि बाबू!
ई दुनिया
ई जगतिया में
हम जेतना देखले -सुनले बानी
कि नेक - नेक अनेक आदमी
जल्दी जल्दी
जी के चुपचाप -चुपचाप
ढ़ह -ढ़ह के मर- मर जाला गांछ - विरिछ के जईसन -
आ बहुत चिरई -चुरूँगन के खातिर
विचार आ सनेह -प्यार के धार बरसा के गुजर जाला ,
गुजर जाला , एक दिन अचके में
आ बाऊर आदमी सैंकड़न बरिशों जी के भी
कुछू ना कर पावेला ...
और सुन बाबू!
कि मर जाला केहु भयावह रोग से
जइसे स्वामी विवेकानंद
कि मर जाला केहु ई दुनिया जगतिया के लोगन के बुरी चाल से
जइसे इसा मसीह
कि केहु मर जाला रे जेल औरी फांसी से
जइसे भगत सिंह
औरी बाबू !
हमनियों के भले माहापुरुख ना हईंजा
बाकिर ,
हमनियों के गरव से कहें के चाहीं
कि हमनियों के किसान -मजुर हईंजा दुनिया जगतिया के पेट पालेवाला
आ हमनियों के त
चुप्पे -चाप ढ़ह- ढ़ह के , मर -मर जाइल जाई
गांछ -विरीछ नियर ,
एक दिन अचके अनहरिया में मर - मर जाइल जाई -
चाहें कारजा के पहाड़ - पर्वत के नीचे चँपा के
चाहें हमनी के मिहनत के उचित दाम नाही मिलत बा ओहीसे
चाहें रोग -शोक चाहें सुखा चाहें बाढ़ आ महाँगाई डाईन के खतरनाख मार से
चाहें घामा में हल जोतते -
येही रे धरतिया पर लड़खड़ा के --!
चाहें मजबुरन सल्फास के जहर पूड़ीया खाके ..
मर मर जाइल जाई
रे मर मर जाइल जाई ..
बाकिर ,
हमनी के शहीद में गिनती ना होखी
हमनी के क़तहूँ मजार ना बनी
फूल ना चढी हमनी के लाश आ मजार पर
हमनी के मरला के बाद
माहापुरुख जईसन नाम ना होई
हमनी के मरला के बाद
ई देश के हजारन जोड़ी अंखिया ना रोई
हमनी के मरला के बाद
ई धारती के महान भगवान मर ज़ईंहें ऐ बाबू !!!!!!!


संपर्क -
खेरनी कछारी गांव
जिला -कार्बीआंगलांग असोम
मोबा0-09365909065

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

प्रेम नंदन की कविताएं-

  

जन्म:-25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर, उ0प्र0
शिक्षा:- एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0।   
लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक इधर-उधर ’भटकने‘ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन के साथ-साथ कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेख आदि का लेखन
प्रकाशनः-कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेख, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लाॅगों में प्रकाशन के अलावा अबतक दो कविता संग्रह प्रकाशित।

 प्रेम नंदन की कविताएं-


 1-आग, पानी और प्यास

जब लगती है उन्हें प्यास
वे लिखते हैं
खुरदुरे कागज के चिकने चेहरे पर
कुछ बूंद पानी
और धधकने लगती है आग !

इसी आग की आंच से
बुझा लेते हैं वे
अपनी हर तरह की प्यास!

आग और पानी को
कागज में बांधकर
जेब में रखना
सीखे कोई उनसे !


2-यही तो चाहते हैं वे

 
लड़ना था हमें
भय, भूख, और भ्रष्टाचार के खिलाफ
आम आदमी के पक्ष में !

तैयारी  इसी की
कर रहे थे हम एकजुट होकर
पर उन लोगों को
नहीं था मंजूर यह !

उन्होंने फेंके
कुछ ऐंठे हुए शब्द
हमारे आसपास
और लड़ने लगे हम
आपस में ही !

वे मुस्कुरा रहें हैं दूर खड़े होकर
और हम लड़ रहें हैं लगातार
एक दूसरे से
बिना यह समझे
कि यही तो चाहते हैं वे !


3-देश या वोट बैंक

 
दलित मतदाता
पिछड़ा मतदाता
अगड़ा मतदाता
अल्पसंख्यक मतदाता
बहुसंख्यक मतदाता,

क्या इस देश में
आदमी एक भी नहीं,
सभी मतदाता हैं
गोया यह देश नहीं,
एक वोट बैंक है!

सम्पर्क -उत्तरी शकुन नगर , सिविल लाइन्स , फतेहपुर,
उ0प्र0-212601। मोबा0-09336453835

गुरुवार, 31 जनवरी 2019

मैं कैद हूँ : अशोक बाबू माहौर





  मध्य प्रदेश के मुरैना जिला में 10 जनवरी 1985 को जन्में अशोक बाबू माहौर का इधर रचनाकर्म लगातार जारी है। अब तक इनकी रचनाएं स्वर्गविभा, अनहदक्रति, साहित्यकुंज, हिंदीकुंज, साहित्यशिल्पी, पुरवाई, रचनाकार, पूर्वाभास, वेबदुनिया, अद्भुत इंडिया, वर्तमान अंकुर, जखीरा, काव्य रंगोली, साहित्य सुधा, करंट क्राइम, साहित्य धर्म आदि में प्रकाशित।
  
सम्मान : इ- पत्रिका अनहदक्रति की ओर से विशेष मान्यता सम्मान 2014-15  नवांकुर वार्षिकोत्सव साहित्य सम्मान  नवांकुर साहित्य सम्मान काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान मातृत्व ममता सम्मान आदि 
प्रकाशित पुस्तक :साझा पुस्तक
(1)नये पल्लव 3
(2)काव्यांकुर 6
(3)अनकहे एहसास



अशोक बाबू माहौर की कविता

मैं कैद हूँ
 
मैं कैद हूँ
घर अपने,
दबा हूँ
सलाखों में
बातें कैसे करूँ तुमसे?
मैं आजाद नहीं
आजादी तलाश रहा हूँ।
शब्दों की श्रृंखला बुनकर
बैठा हूँ
खामोश,
मैं नाजुक हताश
गुमराह होता
हिसाब हूँ।
हाँ मैं कैद हूँ
सजा काट रहा हूँ
घर अपने
उत्पन्न होती पीड़ा की
ग्रह क्लेश की
यूँ ही
वैसे ही
जैसे अपराधी हूँ।

संपर्क :ग्राम कदमन का पुरा, तहसील अम्बाह
जिला मुरैना (मप्र) 476111 
मो-08802706980

शनिवार, 19 जनवरी 2019

प्रतिभा श्री की कविताएं



    प्रतापगढ़  में जन्मी प्रतिभा श्री ने अपना कर्मक्षेत्र आजमगढ़ चुना।  रसायनशास्त्र में परास्नातक के बाद एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका एवं विगत तीन वर्षों से लेखन कार्य मे सक्रिय । अदहन , सुबह सवेरे , जन सन्देश टाइम्स , स्त्रीकाल , अभिव्यक्ति के स्वर एवं गाथान्तर में लघुकथा व कविताएँ प्रकाशित । लघुकथा संग्रह अभिव्यक्ति के स्वर में  लघुकथाएं प्रकाशित

  जीवन की किसी भी गतिविधी में सौंदर्य की रचना तभी हो पाती है जब उसमें संतुलन हो। किसी भी तरह की क्षति सौंदर्य को नष्ट करती है । कविता में भी वही बात है। जिसने संतुलन को साध लिया वे ही अपना ऊंचा स्थान बनाने में सफल होते हैं। संतुलन को साधने में महारत हासिल करने वाली ऐसी ही एक युवा कवयित्री हैं जिन्होंने हाल के दिनों में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है । पुरुषों की निरंकुश पाश्विकता को इनकी कविताओं में बखूबी देखा जा सकता है। पुरवाई में स्वागत है युवा कवय़ित्री प्रतिभा श्री का उनकी कविताओं के साथ।

प्रतिभा श्री की कविताएं
 
1-और उस रात

अम्मा ने कहा
डरा कर गुड़िया
वह खिलखिला के हंस पड़ी !
बाबा ने कहा...
बबुनी डरा कर
उसने काल्पनिक मूँछो को ऐंठा
पिता की आंखों में देखा
किससे ?
पिता ने आँखे चुरा ली।
धप्प से....
पीठ पर धौल जमाई
बहुत देर तक हँसती रही।
पिता भी हँसे खूब ।
सब औरतों ने कहा ..
चुन्नी कस कर  बाँधा कर
उसने
उतार फेंकी

पड़ोसियों ने कहा
बहुत तेज है
इसकी हँसी
बहुत तेज है
इसकी चाल
खट् खट्
दौड़ती है
मोहल्के के
कैक्टस को
कांटे सा चुभती रहीं उसकी छातियाँ
फिर   ...,
एक पूरी रात...
उसके कलेजे की मछली
छटपटाती रही
और उस रात
लड़की ने
ना डरने की
एक बड़ी
कीमत चुकाई।


2-मैं कौन

अवनि पर आगमन के तत्क्षण
गर्भनाल  की गांठ पर
लिखा गया
शिलापट्ट
तुम्हारे नाम का
शिशुकाल से
मेरी यात्रा के अनगिनत पड़ावों पर
तत्पर किया गया
तुम्हारी सहधर्मिणी बनने को
उम्र की आधी कड़ियाँ टूटने तक
मैं ढालती रही स्वयं को
तुम्हारे निर्धारित साँचे में
मैं बनी
स्वयं के मन की नहीं
तुम्हारे मनमुताबिक

जो तुमको हो पसन्द वही बात करेंगे
तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे

तुम रंच मात्र ना बदले
मैं बदलती रही
मृगनयनी
चातकी
मोहिनी हुई
कुलटा
कलंकिनी
कलमुँही  कहाई
सौंदर्य ,
असौंदर्य के
सारे उपमान
समाहित हो मुझमें 
मेरी तलाश  में
भटकते घटाटोप अंधेरों में
थाम तुम्हारे यग्योपवीत का एक धागा
जहाँ हाथ को हाथ सुझाई न दे
करते चक्रण
तुम्हारी नाभि के चतुर्दिक
तुम्हारे
विशाल जगमगाते प्रासादों से
गुप्त अंधेरे कोटरों तक
मैं सहचरी से
अतिरंजित कामनाओं की पूर्ति हेतु वेश्या तक
स्वर्ग की अभीप्सा से नरक के द्वार तक
सोखती रही
तुम्हारी देह का कसैलापन
स्वयं को खोजा
मय में डूबी तुम्हारी आंखों में
हथेलियों के प्रकंपन में
दो देहों के मध्य
घटित विद्युत विध्वंश में
कि
किंचित नमक हो
और मुझे
अस्तित्व के स्वाद का भान हो
तुम्हारी तिक्तता से नष्ट होता गया  माधुर्य
तुम्हारी रिक्तता में समाहित हो
मैं शून्य हुई
मुझे ......!
मुझ तक पहुंचाने वाला पथ
कभी
मुझ तक ना आया ।
जल की खोज में भटकते
पथिक सी 
मेरी दौड़ रेत के मैदानों से
मृगमरीचिका तक
मेरे मालिक !
क्या मैं अभिशापित हूँ ?
तुम्हारी लिप्साओं की पूर्ति हेतु
मेरे उत्सर्ग को
कई युगों से
आज भी
खड़ी हूँ
तुम्हारी धर्मसभाओं में
वस्त्रहीन
और
तुम्हारा उत्तर है
मौन ।
संपर्क सूत्र-

E Mail-raseeditikat8179@gmail.com

रविवार, 30 दिसंबर 2018

राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं -




        हिमाचल प्रदेश के सुदूर पहाड़ी गांव से कविताओं की अलख जगाए राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं किसी पहाड़ी झरने की तरह मंत्र मुग्ध कर देने के साथ आपको यथार्थ के धरातल सा वास्तविक आभास भी कराती हैं। कवि के कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। बिल्कुल पहाड़ी नदियों की तरह निश्चल और पवित्र हैं इनकी कविताएं। गांव , नदी , पहाड़  ,जंगल , घाटियां नया आयाम देती हैं इनकी कविताओं को ।

   
     बकौल राजीव कुमार त्रिगर्ती - गांव से हूं ,आज भी समय के साथ करवट बदलते गांव से ही वास्ता है। जीवन का वह हिस्सा जब हाथ लेखनी पकड़ने के लिए बेताब थाए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के माहौल में बीता। वाराणसी की खरपतवार और रासायनिक उर्वरक. रहित साहित्य की भूमि में कब कवित्व का बीज अंकुरित हुआ कुछ पता ही नहीं चला। भीतर के उद्गारों को अपने ढंग से व्यक्त कर पाने की हसरत से ज्यादा आत्मसंतुष्टि शायद ही कहीं होती हो। असल में पहाड़  ,जंगल , घाटियों , कलकलाती नदियां हैं तभी तो पहाड़ में प्रेम है। इनके होने से ही जीवन जटिल है तभी तो पहाड़ में पीड़ा है। यहां प्रेम और पीड़ा का सामांजस्य अनंत काल से सतत प्रवाहित है। प्रकृति के सानिध्य में सुख दुख के विविध रूपों को उभारना अच्छा लगता है। मेरे लिए यह बहुत है कि प्रकृति के सानिध्य में भीतर के उद्गारों को व्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका मिल गया है। भीतर के उद्गार को अपने ही शब्दों में व्यक्त करने के आनंद की पराकाष्ठा नहीं और यह आनंद ही मेरे लिए सर्वोपरि है। 
 
 राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं -


1- ऐसे ही


जब रोने को आता हूं
तो लगता है हंसा दोगी तुम
कुछ हंसी भरा सुनाकर
गुदगुदी लगाकर
या यूॅं ही बेताब मुस्कुराकर
और मैं चुपचाप हॅंसने लगता हूं,

जब सोने को आता हूं
तो लगता है उत्पन्न कर दोगी 
एक दीर्घ निःश्वास के साथ
सारे शरीर में सिरहन
और जगा दोगी तुम
एक आत्मिक अनुभूति तक,

जब खोने को आता हूं
तो लगता है मिला दोगी तुम
अपने बहाने मुझसे मुझको
अपने होने के एहसास भर से
भर देती हो अस्तित्व की नींव
और मैं लौट आता हूं
किसी अज्ञात दलदल से
अपनी देह को बचाता हुआ

ऐसे ही रात बीत जाती है
दिन होने को आता है
दिल रोने को आता है
बार-बार सोने को आता है
सोये-सोये खोने को आता है
दिन भर में एक भी पल
कहॉं कुछ होने को आता है
तुम्हारे न होने पर।

2-एक-दूसरे के लिए हम


एक-दूसरे को जानने समझने के लिए
यह कितना जरूरी है कि
हम चलें कुछ कदम साथ-साथ
आयें एक-दूसरे के पास
और इस सामीप्य में समझें
एक-दूसरे के अन्तर्मन
या समझें एक-दूसरे को समझभर,

एक-दूसरे को जानने समझने के लिए
यह कितना जरूरी है कि
हम गर्मजोशी के साथ करें
एक-दूसरे का स्वागत
करें आपस में खुलकर बात
वक्त-बेवक्त जब भी करें मुलाकात
एक दूसरे की सहमति-असहमति को
सम्मान के साथ करें अंगीकार,

यदि हम साथ-साथ
कदम नहीं बढ़ा सकते
एक-दूसरे को अन्तस् की बात
नहीं बता सकते
तो कम से कम
जब भी हों हम आमने-सामने
तो अदब से एक-दूसरे के लिए
सिर तो झुका सकते हैं
एक-दूसरे की ओर
चॉंदी का वर्क चढ़ी
मुस्कान तो उड़ा सकते हैं
ऊबड़-खाबड़ जिन्दगी में
एक-दूसरे के बहाने ही सही
सुकून तो ला सकते हैं।


संपर्क-


राजीव कुमार ‘‘त्रिगर्ती’’
गॉंव-लंघू, डाकघर-गॉंधीग्राम
तह0-बैजनाथ, जिला-कॉंगड़ा
हि0प्र0 176125
94181-93024

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

जब भी मिल का सायरन बजता था : सुरेन्द्र कुमार




       04 अगस्त 1972 को अहमदपुर जिला सहारनपुर उ0प्र0 में जन्में सुरेन्द्र कुमार ने हाल के वर्षों में गजल विधा में एक अलग मुकाम हासिल किया है। आम आदमी की पीड़ा को बड़े सिद्दत से महसूस किया है और उसे अपनी गजलों में अद्भुत तरीके से पिराने की भरपूर कोशिश की है या इसको यूं कहे कि कवि ने जिस यथार्थ को जिया एवं भोगा है को अपनी गजलों में जिवंत कर दिया है।
      कवि इस दुर्दिन समय में भी आशा की किरण खोज लेता है चाहे उसे कितनी भी परेशानी क्यों न उठानी पडे। कवि की आंतरिक पीड़ा गजलों के माध्यम से आम पाठक के मन में गहरे तक पैठ कर रह-रह कर उद्वेलित व बेचैन करती है, जिसकी बानगी समझकर गया एक फकीर कोई  एवं जब भी मिल का सायरन बजता था  में बखूबी देखा जा सकता है। कवि ने सरल शब्दों में गझीन बिम्बों से गजलों की नई जमीन तैयार की है जिस पर आने वाले दिनों में गजलों की फसल लहलहलाने की सम्भावना और मजबूत हुई है। इनकी गजलों की एक-एक शब्दों और पंक्तियां की आवाजें बहुत दूर तक और बहुत दिनों तक गुंजती रहेंगी ऐसी उम्मीद है हमें। पुरवाई में स्वागत है युवा कवि सुरेन्द्र कुमार का ।

1-जब भी मिल का सायरन बजता था


जब भी मिल का सायरन बजता था
आंगन में पीपल का पत्ता झरता है

आखिर वो जंगल उजाड़ दिया जिसमें
मेरे मन का हिरन,कुलांचे भरता था

जिसके लिए मैं दर-दर भटकता था
वो दरीचा आंगन में खुलता था

मैंने उस राह पर चलना छोड़ दिया
जिसका हर मोड़ ,तबाही पर मुड़ता था

बरसों उस ग़ज़ल  की बहुत तारीफ़ हुई
जिसका हर शेर,ज़िदगी से जुड़ता था।


2- समझाकर गया एक फकीर कोई


समझाकर गया एक फकीर कोई
नहीं बेचना अपना जमीर कोई

ज़िन्दगी की भट्ठी में तपना पड़ता है
नहीं बदलती ,यूं ही,तकदीर कोई

न ठहरता,जब मन के पर लग गये हों
चाहे बांध ले, कितनी जंजीर कोई

तन पे झीनी चादर,मन बेबाक-सा
सदियों में पैदा होता , कबीर कोई

ढोता हूं पहाड़, ज़िदगी की शाम तक
अब कैसे करेगा काम, शरीर कोई।

सम्पर्क -
अहमदपुर जिला सहारनपुर उ0प्र0
मोबा0- 088658 52322

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

पवन चौहान की बाल कविताएं


 आज पुरवाई में पढ़े चर्चित युवा रचनाकार पवन चौहान की कविताएं

                                                                     3 जुलाई 1978
शिक्षा -       बी0 एस0 सी0(नाॅन -मैडिकल), एम0 एस0 सी0 (मैथ्स)
पेशा - स्कूल शिक्षक टी0 जी0 टी0 (नाॅन -मैडिकल)
लेखन की शुरूआत:- वैसे 2001 में मेरा फीचर दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ। यहीं से मेरे लेखन की शुरुआत भी हुई। इसके बाद तीन र्ष तक लिखा। फिर सात र्ष तक स्वास्थ्य खराब होने के कारण कुछ भी पढ़ और लिख न सका।
पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियां
वर्तमान साहित्य, कथाक्रम, विपाशा, विभोम स्वर, समहुत, शीराजा, साहित्य अमृत, अक्षर पर्व, हरिगंधा, जागरण सखी, मधुमती, मेरी सजनी, द संडे पोस्ट, अक्षर-खबर, शैल-सूत्र, जाहनवी, वीणा, कथा-समय, शुभ तारिका, सरोपमा, रु-ब-रु दुनिया, हिमप्रस्थ, युग मर्यादा, जगमग दीप ज्योति, जनप्रिय हिमाचल टूडे आदि।
बेब पत्रिकाएं- अभिव्यक्ति, प्रतिलिपि में कहानियां प्रकाशित।
पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएं
वागर्थ, वसुधा, विपाशा, बया, पाखी, कथाक्रम, जनपथ, युद्धरत आम आदमी, अक्षरपर्व, आकंठ, गाथांतर, कविता बिहान, यात्रा, अक्सर, रु-ब-रु दुनिया, हिमप्रस्थ, हिमभारती, हरिगंधा, रसरंग (दैनिक भास्कर), कौशिकी, अक्षर-खबर, शुभ तारिका, शब्द मंच, सरोपमा, पालिका समाचार, जगमग दीप ज्योति आदि।
बेब पत्रिका/ग्रुप - ई-पत्रिका इंडियारी और प्रतिलिपि आदि में कविताएं।
अनुवाद-कविताओं का तेलगु, नेपाली, पंजाबी में अनुवाद।
पत्रिकाओं में प्रकाशित बाल कहानियां
नंदन, बाल भारती, बालवाटिका, बालप्रहरी, बाल हंस, नन्हे सम्राट, बच्चों का देश, बालवाणी, बाल किलकारी, रीडर्स क्लब बुलेटिन, बालभूमि, बालभास्कर, देवपुत्र, रीजनल रिपोर्टर, बाल लेखनी, साहित्य अमृत, सोमसी, सरस्वती सुमन, बाल प्रभात, पुष्पवाटिका, अभिनव बालमन, अंतिम जन, दैनिक ट्रिब्यून, मध्यप्रदेश जनसंदेश (बाल रंग), समय सुरभि अनंत, आदि। 
बेब पत्रिकाएं-हस्ताक्षर, जय विजय पत्रिका आदि।
अनुवाद- बाल कहानी का उड़िया में अनुवाद।
विशेषः- 1.  र्ष 2015 में हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड की पांचवीं कक्षा की हिन्दी की पाठ्य पुस्तक और महाराष्ट्र के पाठ्यक्रम की सातवीं कक्षा में मेरी बाल कहानी (अनोखी होली) शामिल।
2. जम्मू-कश्मीर अकादमी की पत्रिका शीराजा’(हिन्दी) तथा हिमाचल प्रदेश की सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की पत्रिका हिमप्रस्थकी अब तक की प्रकाशन यात्रा में पहली बार निकलने वाले बाल साहित्य विशेषांक प्रकाशन में विशेष सहयोग।
3. भारत के विभिन्न राज्यों के बाल कहानीकारों की पुस्तक के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश की बाल कहानी का संपादन।


समाचार पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित फीचर व लेख 
अहा! जिंदगी, हंस, शुक्रवार, आऊटलुक, मंतव्य, साहित्य अमृत, लोकायत, सहारा-समय, बाखली, हिमप्रस्थ, आवारा मुसाफिर, प्रणाम पर्यटन, मेरी सजनी, ये है इंडिया, मातृवंदना, शब्द मंच, सरोपमा, नई दुनिया (तरंग), देशबन्धु (अवकाश), एब्सल्यूट इंडिया, दैनिक ट्रिब्यून (रविवारीय), दैनिक हरिभूमि (रविवारीय भारती), मध्यप्रदेश जनसंदेश, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, अजीत समाचार, पंजाब केसरी, नवभारत, प्रभात खबर, दिव्य-हिमाचल, आलोक फीचर्स (बिहार), गिरिराज (शिमला), शब्द-मंच आदि।
बिशेष:-1. महात्मा गांधी विश्वविद्यालय कोट्टयम, केरल के बी0 काॅम0 के पाठ्यक्रम में यात्रा संस्मरण शामिल।
2. र्ष 2014 में राष्ट्रीय सहारासमाचार पत्र की रविवारीय मैगजीन उमंगमें टूरनाम से पर्यटन पर नियमित स्तंभ लिखा।
इसके अलावा शिमला दूरदर्शन और शिमला आकाशवाणी से कहानी और कविता पाठ।
पुस्तकें:- (1) किनारे की चट्टान (कविता संग्रह), (2) भोलू भालू सुधर गया (बाल कहानी संग्रह)।
विभिन्न साझा संग्रह: (1) गुंजन सप्तक-4 (कविता संग्रह) (2) कविता अनवरत (कविता संग्रह), (3) ओस (हिमाचल के लघुकथाकारों का साझा संग्रह), (4) व्यंग्य के नव स्वर (व्यंग्य संग्रह)। 
संपादन- 
1) ‘दिव्यतामासिक पत्रिका तथा वेब पत्रिका हस्ताक्षरके बाल विशेषांकों का अतिथि संपादन।
2) ‘शैल सूत्र’ (नैनीताल) और नवरस मंजरीत्रैमासिक पत्रिकाओं में बाल साहित्य संपादन।
सम्मान:-फेगड़े का पेड़कविता को र्ष 2017 का प्रतिलिपि संपादकीय चयन कविता सम्मान, साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा (राजस्थान) द्वारा बाल कहानी के लिएहिन्दी साहित्य भूषणसम्मान, बाल साहित्य में र्ष 2017 का हिमतरु राज्य सम्मान’ (कुल्लू), ”शब्द-मंच“ (बिलासपुर, हि0 प्र0 ) द्वारा लेखन के लिए सम्मान, हिम साहित्य परिषद (मण्डी, हि0 प्र0) द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में मेरी लिखी पहली कहानी को 
पवन चौहान  की बाल कविताएं        
1- बच्चे

नटखट बच्चे प्यारे बच्चे
कितने सच्चे कितने अच्छे
बातों से अपनी सबको रिझाते
मस्ती में खेलते मजे से खाते
सबके दिलों में करते राज
कल की फिक्र न डर कोई आज
बात-बात में ये लड़ जाते
कुछ ही पलों में फिर मान जाते
नहीं जानते रंग भेद, जात-पात
मौज मनाते सबके साथ
तोतली बोली से सबको हंसाते
करते शरारत आते- जाते
कथा-कहानी चाव से सुनते
अपने-अपने सपने बुनते
आश्चर्य भरे इनके सवाल
करते अठखेलियां नित नये कमाल
कितने मासूम चंचल बच्चे
नटखट बच्चे प्यारे बच्चे
कितने सच्चे कितने अच्छे।



2- सुबह के मोती

निशा के अंधेरे में छुपकर
चुपके से गिरी घास पर
एक ने उसका झूला झुला
दूसरी बैठ गई पीठ पर
उगते सूरज की लाली से
जब काली चादर उठी थाल से
अनगिनत मोतियों से भरा था सागर 
नीले अंबर तले धरा पर
किरणों से श्रंृगार किया था
सतरंगी चुनर ओढ़ ली सर पर
सज संवर दुल्हन बनी
घर चली  अपने,  सूरज की डोली पर
मैंने छुना चाहा ओस को
डर कर गिर गई धरा पर
चकाचौंध कर दुनिया को
कुछ ही पल में  खत्म हुआ सफर
सूरज के घोड़े पर सवार सब
चली गईं फिर मिलने का वादा कर    
  
        
3-कम्प्यूटर

आओ बच्चो आओ
मेरे संग तुम मौज मनाओ
मैं दूंगा तुम सबको ज्ञान
एक बार जरा बटन दबाओ
तुम देखो मुझमें फिल्म या गीत
बना लो मुझको अपना मीत
कराऊंगा तुमको दुनिया भर की सैर
मेरी न किसी से दुश्मनी, न किसी से बैर
मुझमें चाहे खेलो खेल
दोस्तों को भेजो अच्छे-अच्छे, प्यारे ई-मेल
मुझसे रंग-बिरंगे चित्र बनाओ
दुनिया को तुम खूब सजाओ 
हर विषय का ले लो पुरा ज्ञान 
जब भी दिल करे, सुबह या शाम
मैं हूं हर जगह पर छाया
अब है मेरा जमाना आया
मैं विज्ञान की सर्वोत्तम देन
कर लो मुझसे कुछ भी गेन
दूंगा मैं हर सवाल का उत्तर
क्योंकि मैं हूं एक कम्प्यूटर।

संपर्क-
पवन चौहान 

गांव व डा0-महादेव

0-सुन्दर नगर ,मण्डी (हि0 प्र0)-175018

फोनः- 94185-82242, 98054-02242