पुरवाई
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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' की ग़ज़ल

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काग़ज की कश्ती तैराने का मन करता है आज फिर बर्षात में नहाने का मन करता है।   क्यूँ लगने लगा गंदा राह का पानी मुझको , वो बचपना फि...
शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' की ग़ज़लें

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1- पुराने नोट बन गये खोट अब तो कुर्ते की ज़ेब दे रही चोट अब तो झूँठी देश-परिवेश की बातें सभी   ज़ेह़न में केवल बैठा वोट अब तो...
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