अनवर सुहैल का समकालीन रचनाकारों में महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी
लेखनी को कविता, कहानी ,उपन्यास आदि विधाओं में एकाधिकार प्राप्त है। इस वर्ष इन्हें मध्य प्रदेश सरकार
का प्रतिष्ठित वागीश्वरी पुरस्कार भी प्रदान किया गया है। इनकी कहानी को पढ़ने के बाद
कई मिथक टूटते से नजर आ रहे हैं। तो प्रस्तुत है इनकी कहानी -लव-जिहाद जैसा कुछ नहीं...
रूखसाना से इस तरह मुलाकात होगी, मुझे मालूम न था.चाय लेकर जो युवती आई वह रूखसाना थी. जैसे ही हमारी नज़रें मिलीं...हम
बुत से बन गए. बिलकुल अवाक् सा मैं उसे देखता रहा. एकबारगी लगा कि खाला क्या सोचेंगी
कि उनके घर की स्त्री को मैं इस तरह चित्रलिखित सा क्यों देख रहा हूँ?खाला सामने बैठी हुई थीं.खाला ने मुझे इस तरह देखा तो बताने
लगीं--‘अच्छा तो तुम इसे जानते हो...ये रुखसाना है,
गुलजार की बीवी. अल्लाह
का फ़ज़ल है कि बड़ी खिदमतगार है. दिन-रात सभी की खिदमत करती है. तुम्हारे गाँव की
तो है ये. अपने इनायत मास्साब की लड़की.’’
मैं गणित में काफी कमज़ोर था, सो अब्बा मुझे गणित पढ़ने के लिए इनायत मास्साब के घर भेजा करते थे.मुझे गणित विषय
अच्छा नही लगता था लेकिन मेरी रूचि गणित के बहाने रुखसाना में ज्यादा थी.जब मैं उनके
घर पहुंचता तब दरवाज़ा रूखसाना ही खोलती और फुर्र से अंदर भाग जाती इस आवाज़ के साथ--‘अब्बू, पढने वाले आ गए!’
मेरे हिसाब से बच्चे उस शिक्षक की ज्यादा कद्र करते हैं और उससे
डरते भी हैं जिसके बारे में उनके बाल-मन में यकीन हो जाए कि ये शिक्षक विलक्षण ज्ञानी
है. कहीं से भी पूछो और कितना कठिन प्रश्न पूछो चुटकी बजाते हल कर दिया करते थे. मुझे
उनमे एक रोल-मॉडल दीखता...मैं भी बड़ा होकर उन्ही की तरह का ज्ञानी-शिक्षक बनने के ख़्वाब
देखने लगा था.ठीक इसके उलट बच्चे उन शिक्षकों का मज़ाक उड़ाते, जिनके बारे में जान जाते कि इस ढोल में बड़ी पोल है.उनमे हिंदी
के अध्यापक का नाम सबसे ऊपर था.वैसे भी विज्ञान के बच्चे हिंदी के शिक्षकों का मज़ाक
उड़ाया करते हैं.हिंदी के अध्यापक उर्फ़ जेपी सरन उर्फ़ उजड़े-चमन….
हम तो सोचा करते कि इनायत मास्साब खुद ही सवाल बना
लिया करते हैं.काहे कि अपनी देखी भाली किसी किताब में वैसे सवाल नही मिलते थे.इनायतमास्साब
मुझे पसंद करते थे क्योंकि मैं सवाल हल करने का वास्तव में प्रयास करता था. मेरी कापी
के पन्ने इस बात के गवाह हुआ करते.इनायत मास्साब के ट्यूशन ने गणित को मेरे लिए खेल
बना दिया था...
वे कहा करते...मैथेमेटिक्स एक ट्रिक होती है. जिसे महारत मिल
जाए उसकी बाधाएं दूर...जब मास्साब ट्यूशन पढ़ाते उस दरमियान एक बार रूखसाना पानी का
गिलास लेकर आती थी.वैसे भी किशोरावस्था में किसी को कोई भी लड़की अच्छी लग सकती थी.
लेकिन रूखसाना इसलिए भी अच्छी लगती थी कि उसे मैं काफी करीब से देख सकता था. वह दरवाज़ा
खोलती थी. अपने पिता के लिए पानी का गिलास लाती थी.
ईद के मौके पर मुझे भी सेवईयां मिल जातीं. उनके घर की शबे-बरात
के समय सूजी और चने की कतलियां तो बाकमाल हुआ
करतीं थीं, क्यूंकि उन कतलियों में रूखसाना का स्पर्श भी छुपा होता था.वह ज़माना ऐसे
ही इकतरफा इश्क या इश्क की कोशिशों का हुआ करता था.तब मोबाईल, फेसबुक या व्हाटसएप नहीं था. मिस-काल या साइलेंस मोड की सवारी
कर प्यार परवान नहीं चढ़ा करता था.चिट्ठियां लिखी जाएं तो पकड़े जाने का डर था.और यदि
लड़की चिट्ठी अपने पिता या भाई को दिखला दे या कि चिट्ठियां ओपन हो जाएं तो फिर शायद
कयामत हो जाए...ऐसे दुःस्वप्न की कल्पना से रोम-रोम सिहर उठे.
कुछ बद्तमीज़ लड़के
थे जो जाने कैसे पिटने की हद तक जलील होकर इश्क करते थे और राज़ खुलने पर खूब ठुंकते
भी थे.इस तरह मैं यह फ़ख्र से कह सकता हूं कि रूखसाना मेरा पहला इकतरफा प्यार थी.बड़ा
अजीब जमाना था. बात न चीत, सिर्फ देखा-दाखी से
ही सपनों में दखल मिल जाता.इस रुखसाना ने मेरे ख़्वाबों में बरसों डेरा डाला था.कभी
देखता कि पानी बरस रहा है,मैं छतरी लेकर घर लौट
रहा हूँ.रुखसाना किसी मकान के शेड पर बारिश रुकने का इंतज़ार कर रही है और फिर मुझे
देख मेरी ओर बढती है. मैं उसे इस तरह छतरी
ओढाता हूँ कि वह न भीगे... भले से मैं भीग जाऊं.
कभी ख़्वाब में वह मेरे घर आकर मेरी बहनों के साथ लुकाछिपी खेलती होती और मुझे घर में
देख अचानक अदृश्य हो जाती.आह,वो ख्वाबों के दिन...किताबों
के दिन...सवालों की रातें...जवाबों के दिन…वही मेरे सपनो
वाली रुखसाना इस रूप में मेरे सामने थी और मैं चित्र-लिखित…
कुछ साल बाद मैं बाहर
पढ़ने चला गया.अपने कस्बे में अब कम ही आ पाता था.मेरे ख्याल से जब मेरा तीसरा सेमेस्टर
चल रहा था तभी दोस्तों से पता चला था कि इनायत मास्साब की बेटी रूखसाना की कहीं शादी
हो गई है. शादी हो गई तो हो गई. मुझे क्या फर्क पड़ सकता था. मुझे तो शिक्षा पूर्ण
कर अच्छे प्लेसमेंट का प्रयास करना था. उसके बाद ही शादी के बारे में सोचता. घर से
कोई दबाव नहीं था. अब्बू चाहते हैं कि मैं अभी प्लेसमेंट के बारे में न सोचूं और पीजी
करूं. पीएचडी करूं. फिर किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर लग जाऊं.
मुझे अच्छी तरह मालुम था कि खाला के बेटे गुलज़ार भाई की शादी
तो बहुत पहले खाला की रिश्तेदारी में ही कहीं हुई थी. फिर गुलज़ार भाई के
पहले बच्चे को जन्म देने की बाद लम्बी बीमारी के
बाद वह चल बसी थी. गुलज़ार भाई उसके बाद
दुकानदारी और तबलीग जमात के
काम किया करते थे. एक बार हमारे शहर में गुलज़ार
भाई आये थे एक तबलीगी जमात के साथ. शायद
चिल्ला (चालीस दिन) का इबादती
सफ़र था. मैं जुमा की नमाज़ के लिए वक्त निकाल
ही लेता हूँ. जुमा के
जुमा मुसलमानी का नवीनीकरण करता रहता हूँ.मोहल्ले की मस्जिद में मासिक चन्दा भी देता हूँ.
मस्जिद के इमाम,सदर-सेक्रेटरी और अन्य नमाज़ी मुझे काफी अदब
से देखते हैं. मेरा आदर करते हैं.
विश्वविद्यालय में प्रोफेसर
होने के अलग फायदे हैं.समाज के हर तबके से
आदर मिलता है.
खैर...पत्नी के निधन
के बाद इंसान में ऐसी तब्दीली आती होगी ऐसा मैंने
सोचा था.मैंने गुलज़ार
भाई की बातें ध्यान से सुनी थीं और हस्बे- मामूल
उन्हें यही जवाब दिया--’इंशा-अल्लाह, पहली फुर्सत में एक
चिल्ला मैं भी काटूँगा...अभी नौकरी
नई है भाई साहेब…थोड़ी मुहलत दें!’
रुखसाना के शौहर के खिलाफ लड़की भगा ले जाने
का अपराध पंजीबद्ध हुआ.नगर के कई संगठन इस घटना से तिलमिलाए हुए थे. शुक्र है तब ’लव-जिहाद' शब्द उस कस्बे में
नही पहुंचा था. हाँ, कुछ सिरफिरे ज़रूर इस केस को हवा देना चाह
रहे थे. उनका मानना था कि मुसलमान लडकों में गर्मी ज्यादा होती है, तभी तो वे उंच-नीच नहीं देखते और ऐसी हरकतें कर बैठते हैं कि
उन लोगों की ठुकाई का मन करता है.
रुखसाना ने बताया कि ऐसे हालात बन गये थे कि यदि कोई भी पक्ष
थोडा सा भी तनता तो फिर उस आग में सब कुछ जल कर भस्म हो जाता.खुदा का शुक्र था कि दोनों
तरफ समझदार लोगों की संख्या अधिक थी. फिर भी कई दिनों तक दोनों पक्षों
में तनातनी बनी रही. दोनों समुदाय
के रसूखदार लोगों के बीच नगर में पंचायत हुई. अब सुनते हैं की वे लोग घर से भागकर सूरत चले
गये थे. युवक वहां किसी फैकट्री में काम करने लगा और दोनों सुकून से दाम्पत्य
जीवन गुज़ार रहे हैं.और जो भी हुआ हो उसके आगे...लेकिन रुखसाना अपने मायके वापस
आ गई.इनायत मास्साब ने रुखसाना के लिए आनन्-फानन रिश्ते खोजने लगे.
उसी समय गुलज़ार भाई की बीवी का इन्तेकाल हुआ
था. गुलज़ार भाई की पहली
बीवी से
पैदा संतान अब स्कूल जाने लगी है. लेकिन
उस समय तो खाला को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे
में मेरी अम्मी ने खाला से रुखसाना
प्रसंग पर बात की.
रुखसाना को देखने खाला
आई थीं और उन्होंने रुखसाना को गुलज़ार भाई के बारे में, अपनी मृतक बहु के बारे में और गुलज़ार भाई की नन्ही सी औलाद के बारे में साफ़-साफ़ बता दिया था.
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