संवत की आग
पंखुरी सिन्हा
जलेंगे लकड़ी के ढेर
फिर से संवत पर
लपटें उठेंगी आसमान तक
छूटेंगी चिंगारियां
उड़ेंगी हवा में
हवा में होगा
ढ़ेर सारी टहनियों का चटकना
लोगों का बहकना
फाग का गीत होगा
विहाग, सुहाग का
नाचेंगे टोले के लड़के
और होगा हुड़दंग कल
रंगों का
रंगीन शोर होगा
पिचकारी और पानी का
और होउंगी नही मैं वहां
बचपन की सब होलियों के शहर में
एक बार फिर, रुक जाने का वही शहर है
वही भगोड़ा, भगा ले जाने वाला
वहीँ राजधानी की गलियों में अँटकी हूँ
अजब सवाल जवाबों में
किन्हीं सड़कों की खातिर
कि और हों राहें
फूलों के लिए
कि उन्हें मिलता रहे पानी
खाने पीने की एक बहुत मजहबी हो गयी लड़ाई में
उलझी, कि उनका खाना पीना
उसका तय होना हो
सहज ही आनंददायी
पर ऐसी मारकाट है
मानो एक दूसरे को
पकाकर खाने की नौबत
पीने के पानी
सांस लेने की हवा में
खिंची हुई है यह लड़ाई
हर किसी के हिस्से
आती है थोड़ी थोड़ी
हर त्यौहार पर लड़ी गयी है
थोड़ी सी यह लड़ाई
इस बार बस उतनीही
जितनी तय है
लगभग गफलत से
कुछ करके कम अपनी हिंसा
गुज़रे इस बार यह त्यौहार
और लड़कियां तो
नही ही निकलेंगी अपने घर से...........
पंखुरी सिन्हा
9968186375-सेल फ़ोन
आज तुझको रंग दूँगी
अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’
इन्द्रधनुषी रंग सारे
भर हिया में फाग प्रियवर !
आज तुझको रंग दूँगी,
कर दहन सारी कलुषता
होलिका की ज्वाल में
बन के दीवा खिल उठूँगी
आरती
की थाल में
दिवस के आठों पहर
संगीत मन का गान छेड़ो
मैं तुम्हारा संग दूँगी
इन्द्रधनुषी रंग सारे
भर हिया में फाग प्रियवर !
आज तुझको रंग दूँगी,
दुःख पगी सारी गगरिया
फोड़ दूँगी साँच रे !
छू ना पाये अंग तेरे
कोई कलुषित आँच रे !
तुझको पाने की तपस्या
जिस नयन की आस हो
कर उसे मैं भंग दूँगी
इन्द्रधनुषी रंग सारे
भर हिया में फाग प्रियवर
आज तुझको रंग दूँगी ।
अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’
मोबाईल न. 8826957462
mail- singh.amarpal101@gmail.com