मंगलवार, 18 अगस्त 2015

पद्मनाभ गौतम की कविताएं






                             पद्मनाभ गौतम   
        कवि अपने आस पास के परिवेश से बखूबी परिचित है। यही वजह है कि कविताएं यथार्थ के धरातल पर मूर्त रूप लेती चली जाती हैं। और कविता का नया वितान रचते हुए जीवन के संघर्ष और सौंदर्य को एक साथ रेखांकित करती हैं। तो आज पढ़ते हैं पद्मनाभ गौतम की कुछ कविताएं।

1. बैकुण्ठपुर


मेरे प्रिय शहर,

रहना इतने अरसे तक दूर
 
कि भूल जाते तुम मुझे 

और मैं तुमको,

कि इस बीच देखी मैंने दुनिया
 
बहुत-बहुत खूबसूरत/ 

देखा तुमने बदल जाना 

एक पूरी पीढ़ी का

इस बीच बिताए दिन मैंने
 
लोहित, दिबांग, सियोम के तीर पर 

देखा उफनते रावी, सतलज, चनाब को
 
समंदर सी ब्रह्मपुत्र के सैलाब को

देखी कतारें चिनारों की 

चीड़ और दईहारों* की 

बर्फ से अटे पहाड़
 
और मीनाबाज़ार 

भूल-भुलैया ऐसी 

कि भूलना था मुनासिब 

कि भूल जाते तुम मुझे
 
भूल ही जाता मैं भी तुम्हें

मेरे प्यारे शहर

मुमकिन होता भूलना
 
अगर उलीच न जाता कोई 

यादों के झरोखे से 

मेरे चेहरे पर 

गेज का मटियाला पानी,

अधखुली आंखों में यदि उतर न आते 

कठगोड़ी के बौने पहाड़,

और सोनहत के शिव घाट पर 

हमारा मधुचन्द्र भी

अब भी ढांप लेती है मुझको
 
किसी चादर सा

झुमका बांध पर तैरती 

चांद की सुनहली छाया,

झुमका के कंपकपाते पानियों पर 

पसरता है जब चांद का रंग

आ जाते हैं सपनों में अकसर,

चेहरे,

एक रोज बिछड़े थे जो
 
गेज के नदी के घाट पर

और हंसता है खिलखिलाकर 

एक बच्चा
 
रामानुज स्कूल की मीनार से

भटक जाता हूं जब मैं 

चीड़ के गंधहीन जंगलों में,

सरई फूलों की मदमाती गंध 

देती है सदाएं चिरमिरी घाट से

मैं तुमसे मीलों दूर 

और तुम मुझसे 

फिर भी मेरे भीतर बसते हो तुम
 
ओ प्रिय शहर
 
और मेरी रगों से गुजरती है
 
तुम्हारी सड़कें

है परदेस की दुनिया 

तुमसे बहुत-बहुत सुन्दर,

और कुछ नहीं देने को 

दुनियावी तुम्हारे पास,

कि पूरे शहर भी नहीं तुम 

शहर के पैमाने पर,

फिर भी लौट कर आना है 

मुझको वापस एक दिन,

तुम्हारे पास

ओ हरे-नीले पानियों से लबरेज नदियों
 
माफ करना, कि बहुत खूबसूरत हो तुम
 
पर मेरा इश्क तो गेज है

सुनो, कि एक दिन बह जाना है 

मुझको भी सदा के लिए

गेज नदी के प्यार में
 
गेज नदी की धार में।


*दईहार=देवदार

2. पिता

जब तक थे पिता,
परे था कल्पनाओं से 
पिता की अनुपस्थिति में जीवन

पिता की उपस्थिति
तृप्ति नहीं थी इच्छाओं की
या सुरक्षा का आभास
कठिन नहीं होता तब काटना 
एक चैथाई सदी
पितृछाया से दूर

धूप विहीन पूस 
छांव विहीन जेठ
जल विहीन वर्षा
रंग-गंध हीन बसंत
इससे भी कहीं ऊपर था 
पिता के न होने का अर्थ

पिता की याद को धुंधलाते
लौट आए रंग भी त्यौहारों में
दीवाली के दियों में 
रौशन हुई बातियां

बस जीवन की डायरी में
एक चौथाई सदी से
रिक्त है एक स्थान
स्थान जो है पिता के
अंतिम वस्त्र सा श्वेत
स्थान जो भर नहीं पाता
किसी भी रंग की स्याही से

अब भी नहीं 
समझ पाता हूं,
कि क्या खोया हमने
पिता की अनुपस्थिति में
और कितना।
संपर्क-
पद्मनाभ गौतम
बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया
छत्तीसगढ़, पिन-497335
मो.-8170028306


शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

उमा शंकर मिश्र की कहानी : दिल और गम

स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी अग्रीम शुभ कामनाओं के साथ प्रस्तुत है कहानीकार उमा शंकर मिश्र की कहानी : दिल और गम


     कभी कभी गाँव की भटकती हुई पगडंडी भी विकास के रास्ते से जा मिलती है । कभी कभी निरर्थक विचार भी किसी आविष्कार का कारण बन जाते हैं।कभी कभी प्यार के दो पल भी मौत का दामन थाम लेते हैं। इस तरह की विचारधारा सुलेमान के मन मस्तिष्क के झंकृत कर रहा था।आज गाँव में विकास का चौपाल लगाया जा रहा था। सुबह से ही मीडिया और कुछ खरीदे हुए श्रोता गाँव में इधर उधर भटक रहे थे। जिन लोगों को विकास की रूप रेखा तक नहीं मालूम थी । यही आज नये नये कपड़े पहनकर चौपाल के आस पास मंडरा रहे थे।कंक्रीट के जंगलों से आये इन शहरी लोगों को गांव की हरियाली राश तो नहीं आ रही थी लेकिन 6 घंटे का कार्यक्रम करना तो था ही। इसी के लिए तो सरकार से 10 लाख रू0 मिले हैं कुछ कार्य तो दिखाना ही पड़ेगा।

     सरकारी ऑफिसर सूट पहने पहले भाषण देना प्रारम्भ कर दिया । श्रोता गण कम होने के कारण यह स्थानीय युवक से पूछ रहा था कि भीड़ कम क्यों है।उत्तर में गांव  की एक दो निर्धन महिलायें जो खाना खाने के लिए बुलायी गयी थी। उत्तर दिया स्कूल कालेजों की छुटटी यदि हो जाती तो भीड़ में कुछ इजाफा हो जाता ।पुलिस के कुछ कर्मचारी बैठे मुस्करा रहे थे। जितना विपक्ष को खतरा बताया गया था।वह कहीं भी दिख नहीं रहा था।मुख्य नेता जी दोपहर के 2 बजे पधारे बड़ी जोर शोर से नारे लग रहे थे किराये पर आने वाले कार्यकर्ता लिए हुए पैसे के बदले गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे थे।

     उधर प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका रंजना ने स्कूल न बन्द करने का ऐलान किया।परीक्षा सिर पर है और थोड़ी वाह वाही के लिए बच्चों का  भविष्य चौपट नहीं किया जायेगा।जूनियर हाई स्कूल के अध्यापकों ने हां में हां मिलाया और समर्थन कर दिया।किसी भी चुनाव या चौपाल के लिए शिक्षण संस्थाओं का दुरूप्योग नहीं होने दिया जायेगा।

     मुख्य नेताजी ने अपनी लिस्ट पढ़ा । इस गांव में 3 सरकारी कार्यालय है इस हम लोगों की सरकार ने बनाया है। भीड़ से आवाज आयी सब ढह गया है केवल ऊपर से आज ही चूना लगाया गया है । बिरला सीमेन्ट की बोरी में चूना था हम लोगों ने अपनी आंखो से देखा है नेताजी पेरशान हो गये । दो सरकारी स्कूल हम बनवाने जा रहे हैं। भीड़ से आवाज आयी  उसी स्कूल की बगल में कान्वेन्ट स्कूल चलेगा और वेतन सरकार से लेकर अध्यापक उस प्राइवेट स्कूल में मदद करेगें।यही होता आया है।अगल बगल जाकर देख लें कृपया । आवाज में साक्ष्य था,शक्ति थी,आभार था। अतः जिलाधिकारी जो बहुत देर से तमाशा देख रहे थे जांज का ऐलान किया । नेताजी अपने कार्यकर्ताओं को लेकर चल दिये इस देश के गांव का विकास इसलिए नहीं होता है कि लोग हर काम में अड़चने पैदा करते हैं।

    उधर सूलेमान रंजना की मदद से उच्च न्यायालय में एक रिट दाखिल कर दिया ।उच्च न्यायालय के एक बेन्च ने जांच करने का आदेश दे दिया। जिलाधिकारी का स्थानान्तरण तत्काल कर दिय गया। जांच निष्पक्ष कराने के लिए सरकार को निर्देश दे दिये गये। तथा उस नेता को जिसने गांव में चौपाल लगाया था। उस गांव की तरफ न जाने का निर्देश भी उस आदेश में ही था।

    निष्पक्ष जांच आरम्भ हुई कोर्ट के सख्त रूख के कारण जो नेता गांव में चौपाल लगाये थे। सब जांच के दायरे में आ गये थे। नये जिलाधिकारी इतना घुमावदार निकला कि जांच के परिधि को बढ़ान के लिए कुछ अच्छे नागरिकों से कोर्ट में सप्लीमेन्टरी दाखिल करा दिया। चारों तरफ हाहाकार मचा था। जांच में पिछले 10 साल से चौपाल लगाने में 10 लाख रू0 के दुरूपयोग को पकड़ा गया। जो सड़कें बनायी गयी थीं ।एक भी मौके पर मिली ही नहीं। पगडंडिया जैसे मुह चिढ़ा रही थी।

      मनरेगा में 1 करोड़ ,विधायकी का सारा पैसा,सांसद फंड का सारा धन भ्रष्टाचार की वेदी पर बलिदान किया गया था। जिलाधिकारी गांव के थे । अतः जांच में उनका सहयोग बेमिशाल था। ईमानदारी का जलवा जौ जमीर के सख्त रूख के कारण गुलाम बना हुआ था। आज खुशी का इजहार कर रहा था।

    बेईमानों का दिल जो ईमानदारी को गम दिया था।आज ही गम की परिभाषा को जाना पहचाना और अपने भाग्य को कोसते हुए पुलिस की गाड़ी में बैठ गये।सत्ता की लड़ाई में यह सब होता रहता है।नेताजी अपने आदमियों को समझ रहे थे।नये जिलाधिकारी ने अपने सात दिन के कार्यकाल में गांव की विकास को नजदीक से देखने के लिए दो दिन स्वंय चौपाल लगाने का निर्णय लिया आज
चौपाल के पहले दिन ही जमीन पर बिछी हुई पुरानी दरी पर लोग बैठे थे ।

     नाश्ता में गाँव के जंगली बेर ,कुछ नीबू ,कुछ पपीता आया था।उसे बड़े गाँव के अधिकारी खा रहे थे। उन्हें वह बहुत ही स्वादिष्ट और अच्छे लग रहे थे।दूर दूर तक कहीं जिन्दाबाद के नारे का नामोनिशान ही नहीं था।वातावरण ध्वनि प्रदूषण मुक्त था। पक्षियों की चहचहाहट सबको प्रसन्न कर रही थी दिल में आज गम नहीं था।
सम्पर्क:  उमा शंकर मिश्र
          ऑडिटर श्रम मन्त्रालय
          भारत सरकार
          वाराणसी मोबा0-8005303398

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

जब एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ : मिथिलेश कुमार राय


          

         24 अक्टूबर,1982 0 को बिहार राज्य के सुपौल जिले के छातापुर प्रखण्ड के लालपुर गांव में जन्म। हिंदी साहित्य में स्नातक। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं व वेब पत्रिकाओं में कविताएं व कहानियाँ प्रकाशित। वागर्थ व साहित्य अमृत की ओर से क्रमशः पद्य व गद्य लेखन के लिए पुरस्कृत। कहानी स्वरटोन पर द इंडियन पोस्ट ग्रेजुएट नाम से वृत्त-चित्र का निर्माण। कुछेक साल पत्रकारिता करने के बाद फिलवक्त ग्रामीण क्षेत्र में अध्यापन।
         
             समकालीन कविता के परिदृश्य में सैकड़ों नाम आवाजाही कर रहे हैं। वरिष्ठ पीढ़ी के बाद युवा पीढ़ी भी काफी हद तक साहित्यिक यात्रा के कई पड़ाव पार कर चुकी है। इनके एक दम पीछे युवतर एवं नवोदित कवि पीढ़ी समकालीन कविता की मशाल उठाए युवा पीढ़ी के दहलीज पर खड़ी है। ऐसे ही एक युवा कवि मिथिलेश कुमार राय हैं।

          ठेठ माटी की गंध लिए सादगी और संवेदनाओं से भरी कविताएं मिथिलेश कुमार राय को हिन्दी साहित्य में एक अलग पहचान दिलाती हैं। इनकी कविताओं की ठेठ देशी गमक ही है कि पाठक मन भौंरे की तरह रस पान करने के लिए अपने आप खींचा चला आता है। बिंबों में गुंथी हुई कविताओं की शब्द पंखुड़ियां जब एक-एक कर खुलती हैं तो भाषा की सादगी नये शिल्प में चमक उठती है। उनकी कविताएं जन सामान्य से सहज संवाद करती हुई आगे बढ़ती हैं जहां कोई छल नहीं , कोई जादू नहीं बस शुद्ध देशीपन के साथ अपनी जगह बना लेती हैं। संभावनाओं से भरे इस कवि की एक कविता जब एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ  को पोस्ट करते हुए तृप्ति का अनुभव कर रहा हूं। आप सुधीजनों के अमूल्य विचारों की प्रतीक्षा में।


     
जब एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ

मेरी उम्र अट्ठाईस साल है
और मैं कविताएं लिखता हूँ

अभी-अभी मैंने एक लंबे बालों वाली लड़की से कहा
कि मैं तुम्हें महसूसता रहता हूँ हमेशा
जवाब में उसने
अपनी आँखें नीची कर लीं
 और पैर के अंगूठे से पृथ्वी को
कुरेदते हुए कहा 

कि मैं भी तुम्हें महसूस करती रहती हूँ हमेशा


इसी बात पर मैं एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ
जिसे पढ़ते हुए लोगों का दिमाग सो जाए
और दिल को ही सारी प्राण-उर्जा मिलने लगे
लेकिन लड़की
जिसका भाई एक ऊँचे ओहदे पर है
और पिता शहर में रसूख रखता है
मुसकुराते-मुसकुराते डर जाती है
रह-रहकर उसकी आँखें
समय के पार देखने लगती हैं
जहाँ से आती हुई मायूसी
 उसके चेहरे को घेरकर 

विकृत कर देती है


तीन साल धूल फांकने के बाद
अभी-अभी मैंने दो टके की नौकरी पकड़ी है
खेतों के मेड़ पर गाते मेरे पिता
पीली पड़ चुकी फसल पर नजर पड़ते ही
गुनगुनाना भूल जाते हैं
और चेहरे को आसमान की ओर उठाकर
पता नहीं क्या देखने लगते हैं

बावजूद इसके
मैं एक प्रेम कविता लिखना चाहता हूँ
 जिसमें लंबे बालोंवाली लड़की की खिलखिलाहट की तरह
जीवन हो

लेकिन इस शहर की एक स्त्री
कल अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ
रेल की पटरी पर सो गईं

इस दिल दहला देनेवाली घटना की पड़ताल
अखबारवाले और जिनके दल की सरकार नहीं है अभी
उसने की तो पता चला 

कि स्त्री का पति
दौड़ने के काबिल नहीं था
वह घिसटकर चलता था
और उसके घर में चिड़िया को चुगाने के लिए
एक भी दाना नहीं था
दाने के बदले स्त्री को किसने क्या कहा
कि उसे गहरी नींद में जाने के अलावे 

कुछ सूझा ही नहीं


बावजूद इसके
मेरे मन में 

वह जो एक प्रेम कविता कुलबुला रही है
जो एक खिलते हुए फूल को देखकर आई थी
मैं उसे लिख लेना चाहता हूँ
लेकिन मुझे पता चलता है कि
इलाके के एक गाँव के खेत में
एक चौदह साल की बच्ची की
लाश मिली है
और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में चिकित्सक ने लिखा है 

कि मरने से पहले बच्ची के मुँह से
 हजार बार चीत्कार निकली थी


लंबे बालोंवाली लड़की कहती है 

कि वह प्रेम कविता
जिसे लिखने के लिए मैं
अधीर हूँ

मुझे बहुत इंतजार करना पड़ेगा
वह अपनी उदास आँखों से
यह भी कहती है कि
ऐसा भी हो सकता है 

कि तुम मर जाओ
और तब भी तुम्हारा इंतजार खत्म न हो


 रौशनी में सजा मुकर्रर होती थी

होने को तो बहुत कुछ था आसमान की तरह
जिसके होने या नहीं होने का 

कुछ भी मतलब नहीं निकलता था
लेकिन उजाला एक खतरनाक चेहरा लेकर आता था

उन दिनों मैं रौशनी से बचने के लिए
हाँ-वहाँ भागा फिरता था
रात आती थी तो थोड़ी राहत मिलती थी
और मैं चाहने लगा था 

कि रात को चाँद भी न निकले
और तारे भी अंधेरे में गुम हो जाए कहीं
अंधेरा ही एकमात्र सहारा था हमारा


असल में अपने अंदर 

एक फूल के खिलने से मैं प्रफुल्लित था
लेकिन उसके सुगंध को छुपाने के लिए 

मुझे मारा-मारा फिरना पड़ रहा था

खूंखार भेड़िये से पटे जंगल में
अघोषित रूप से 

फूल के नहीं खिलने का नियम था
यह सब को पता था
और सब भरसक जतन भी किया करते थे
लेकिन कोई जतन में असफल हो जाता था 

तो उसके लिए एक ही सजा मुकर्रर होती थी

ऐसे में मैं मारा-मारा फिरता था
और रात के आगोश में ही तनिक सकून पाता था

दिन का हिस्सा दरिंदों के पास था
और हम जो रात को मंत्र जपते थे
दुनिया के अमन-चैन के लिए
दिन उसकी सजा का समय होता था


यह शब्द नहीं लिखा जाता तो अच्छा होता

हमारे नथुने से भी टकराई थी
वह पवित्र गंध
हमने भी चाहा था
कि यह दुनिया 

एक उद्यान हो जाए


उम्र ही ऐसी थी कि हमारा ध्यान
लौट-लौटकर फूलों पर आ जाता था
और उसकी सुगंध से 

हम हमेशा सराबोर रहते थे

हम चाहते थे 

कि समूची पृथ्वी
 गुलाबी रंग में रंग जाए
और खिले हुए गुलाब की तरह
 सबका चेहरा दमकने लगे

 इसके लिए हमने
अपने हाथों को ऊपर उठाकर दुआ मांगी
और भरसक प्रयत्न किया 

कि आजू-बाजू के लोग भी 

हमसे सहमत होकर
फूलों की सुगंध को
दसों दिशाओं में फैलाने के लिए
हवा से मनुहार करें

लेकिन यह शब्द नहीं लिखा जाता तो अच्छा होता
कि हमारी प्रार्थनाएं बेअसर रहीं
हमारी उम्र फिसल गई
और अब हम 

अपने हाथों को ऊपर उठाकर 

सिर्फ हहाकार कर सकते हैं


 जैसे एक राजा होता था

एक लड़की उस तरह नहीं थी
जैसे एक राजा होता था
किसी किस्से में

वो अब भी कहीं न कहीं थी
मुसकुराती हुई
मेरी बंद आँखों के पार
या सांसों में

असल में गलती मेरी ही थी

मुझे एक साँप में तब्दील हो जाना चाहिए था
और अपनी चमकती हुई नई त्वचा के साथ
केंचुआ छोड़कर आगे बढ़ जाना चाहिए था

या समय रहते मुझे
एक वृक्ष में बदल जाना चाहिए था
अपने सारे पत्ते को विदाकर
मुझे फिर से हरा हो जाना चाहिए था
लेकिन मैं प्यार करने के हुनर सीखने में
अपना सारा हुनर गंवा बैठा था

संपर्क
मिथिलेश कुमार राय
ग्राम व पोस्ट- लालपुर  
वाया- सुरपत गंज
 जिला- सुपौल (बिहार) पिन-852 137    
फोन-9473050546, 9546906392
mithileshray82@gmail.com

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

कहानी : चक्रव्यूह

   

   युवा लेखक विक्रम सिंह की कहानी पढ़ने के बाद इनकी समकालीन कहानियों के प्रति एक ललक पैदा हो जायेगी। इनकी कहानी को पढ़ने के बाद आप निराश नहीं होंगे । ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। 

चक्रव्यूह : विक्रम सिंह  
          
विशाल काय बरगद का हरा भरा पेड़ है लेकिन रात की वजह से पेड़ और पत्ते काले नजर आ रहे हैं। रात चांदनी रात नहीं है। काली रात है। पेड़ के नीचे अंधेरा फैला है। पे़ड के नीचे एक शख्स काली जंजीरों से बंधा हुआ है। वह चिल्ला-चिल्ला कर मदद के लिए आवाज लगा रहा है। आने जाने वाली गाड़ियों की रोशनी उस पर पड़ती है। तब वह नजर आता है। एक शख्स उसे बचाने की कोशिश  करता है। मगर जैसे ही वह जंजीरों को छूता है। उसे जोर का करेंट लगता है। वह चाह कर भी उसकी मदद  नहीं कर पाता है। ’’भाई साहब आप को यह किस चीज की जंजीर बंधी है। जो मैं चाह कर भी आप की मदद  नहीं कर पा रहा हूं।’’ अंत तक वह जाने लगता है। जंजीर से बंधा आदमी उसे रो -रो कर नहीं जाने के लिए कहता है।उसकी नीद टूट जाती है। अच्छा हुआ जो यह सच ना हो स्वप्न था। कैसी जंजीर थी जिसे छुड़ाना ही मुश्किल था।
मोबाइल की घंटी बजने लगती है। वह मोबाइल उठा कर पहले स्क्रीन में नम्बर देखता है। क्योंकि उसे फालतू लोगों का फोन उठाना पसंद नहीं है।  अगर उठा भी ले तो समय नहीं है। बाद में बात करेंगे। यह कह कर फोन काट दिया करता है। मगर यह फोन काम का अर्थात उसके बॉस का है।
 ’’गोपी’’
जी गुडमार्निग सर ’’
’’गुडमार्निग’’ बड़े प्यार से बॉस कहता है।
’’ हॉ, सर कोई बात थी।’’
’’हॉ,बहुत जरूरी बात है।’’
’’जी सर बताईये।’’
’’तुम्हारे मुहल्ले के पास की कालोनी में कोई दास बाबू रिटायर हुए हैं। इसके पहले की और कोई कम्पनी का एजेन्ट उसके पास पहुंच जाये या वह बैंक में पैसे जमा करे। तुम हम लोगों की कम्पनी सुनहेरा ग्रुप के बारे में बता कर हमारी कम्पनी में पॉच आठ लाख रूपये का कम से कम ई.एम.आई कराओ।’’
’’जी सर में आज ही उनके पास जाता हूं।’’
 गोपी मोबाइल काट देता है।
मोबाइल काटते ही दोबारा मोबाइल की घंटी बजने लगती है। स्क्रीन में नम्बर को देखता है। उसके जानने वाले का ही नम्बर है। वह यह समझ रहा है। क्योंकि नम्बर सेव नहीं है। क्योंकि उसके जानने वाले बहुत हैं। और वह किस-किस के नम्बर सेव करेगा। उसके जानने वाले तो उसके ग्राहक हैं जिन लोगों ने उसके चिट फन्ड कम्पनी में पैसे फिक्स किये हैं। वह फोन रिसिव कर लेता है। उधर से आवाज आती है ’’गोपी भाई जगन्नाथ बोल रहा हूं।’’ 
’’हॉ बोलिए जगन्नाथ चाचा जी’’
’’बेटा जो मैंने पैसा जमा फिक्स किया था वह दो महीने बाद मचुरिटी खत्म हो रहा है।’’
’’हॉ तो आप को डबल मिल जाएगा कोई चिंता की बात नहीं है। दो महीना पहले से बात करने की क्या जरूरत है?’’
’’नहीं हम सोचे की एक बार बात कर लेते है।’’
’’ठीक है दो महीने बाद बात करियेगा।’’
गोपी के इस तरह करीब तीन सौ के करीब ग्राहक हैं। महीने दर महीने ,साल दर साल उसके ग्राहक बढ़ते जा रहे थे। मुहले से शुरू होकर धीरे-धीरे अब शहर के कई इलाके में उसके ग्राहक है। इतने ग्राहक बनाने में उसने बहुत कड़ी मेहनत की है। शुरू-शुरू में वह साईकल से घूम-घूम कर पान की गुमटी वालो से लेकर,बर्गर बेचने,गोलगप्पा बेचने के ठेली वालों के पास जाकर अपनी स्कीम समझाता था। जरूरत पड़ने पर वह एक दफा नहीं दस दफा जाता था। आखिर तक वह उन्हें मना लेता था। सही मायने में हर एक ठेली वाला भी कम समय में पैसे दोगुना करना चाहता था। फिर धीरे धीरे उसने बाइक खरीद ली और ठेले चाय-पान की दुकान वालों से उपर वह सरकारी नौकरी करने वालो के पास जाने लगा था। दरअसल कोलियरी में काम करने वाले जो पान सिगरेट की दुकान में बैठ कर गप मारते थे। वही पान-चाय गुमटी वाले उसके ग्राहक थे। गुमटी वाले ही उन सब से मिलाने लगे थे।’’साहब जी एक स्कीम है थोड़ा समझ लीजिए। बहुत फायदे मन्द है।’’ लेकिन सही मायने में उन सब को जैसे सब कुछ पता होता।


 शुरू-शुरू में एक ही  चीटफंड की कम्पनी अक्षरा शहर में आई थी। उस कम्पनी ने अपना ऑफिस शहर के बीचों बीच खोला था। उस वक्त शहर में कई बेरोजगार लड़के नौकरी के लिए घूम रहे थे। चारो तरफ से निराश हो वह घर बैठे थे। उसी वक्त चीटफन्ड कम्पनी में कुछ बेरोजगार लड़के कमीशन एजेन्ड के तौर में लग गये। देखते देखते लगभग सभी बेरोजगार ल़ड़के इस कम्पनी के ऐजेन्ट बन गये थे। सर्वप्रथम तो ऐसे एजन्टों ने अपने घर और रिश्तेदारों को ही अपना ग्राहक बनाया था। कम्पनी की पालिसी  यह थी। ऐसे गरीब व्यक्ति जो मोटी रकम फिक्स नहीं करा सकते थे। ऐसे गरीब व्यक्ति डेलीबेसिस अर्थात प्रतिदिन दस,बीस,तीस जिसकी जो सहूलियत हो  चालू खाता खोल पैसे जमा कर सकता था। फिर एजेन्टों ने ज्यादातर ऐसे गरीब लोगों को ग्राहक बनाना शुरू कर दिया था। देखते ही देखते हर गली, नुक्कड़, मुहल्ले के मजदूर ठेले वाले कम्पनी के ग्राहक बन गये थे। एजेन्ट अपने साइकिलों पर सवार हो शाम को प्रतिदिन ठेले गुमटी वालों से पैसे कलेक्ट करने निकल जाते ठेलेवाले,गुमटी वाले और मजदूर अपने दिन भर की कमाई से दस बीस जिसकी जैसी सहूलियत होती पैसे एजेन्टों के हाथ में थमा देते थे। एजेन्ट अगले दिन कम्पनी के आफिस में जमा कर देते थे। देखते ही देखते कई बेरोजगार ल़ड़कों के लिए अच्छी नौकरी की तरह हो गया था। क्योंकि हर एक को महीने में दस पंद्रह हजार की कमाई होने लगी थी। यह कमाई सीमित नहीं थी जिस एजेन्ट के जितने ग्राहक हांेगे वह उतना ज्यादा पैसे कमा सकता था। इस लालच की वजह से हर एक एजेन्ट सुबह से लेकर शाम तक ग्राहक बनाने के लिए घूमते रहते थे। सभी एजेन्ट के बीच में ही कम्पटिसन रहता था अर्थात वह एक दूसरे के अपना कम्पटिटर मानने लगे थे। ऐसा ही हाल कम्पनी के साथ भी हो गया था। 


शुरूआत में तो पूरे देश  भर में एक ही चीटफन्ड की कम्पनी अक्षरा थी। उसने लोगों के दिल में अपना विश्वास बना लिया था। देखते ही देखते कई चीटफन्ड कम्पनियॉ मार्केट में आ गई थीं। हर एक ने दूसरे एजेन्टों को ज्यादा कमीशन का लालच देकर अपनी कम्पनी का एजेन्ट बनाने लगे थे। गोपी भी पहले अक्षरा चीटफन्ड कम्पनी का एजेंन्ट बना था। गोपी ने सही मायने में अपनी इच्छा से चीटफन्ड कम्पनी में नहीं गया था। उस समय वह चारो तरह से मजबूर हो गया था। गोपी के पिता ट्रक डाइवर थे। अचानक उनके पैरों में दर्द शुरू हो गया था। कई डाक्टरों को दिखाने के बाद भी उनका दर्द सही नहीं हो रहा था। गोपी की मॉ किसी बडे़ अस्पताल में गोपी के पिता को दिखाना चाहती थी। मगर पहले ही वह लोगों से पैसे उधार ले चुकी थी। अब आखिर किससे मदद मांगती। उसने अपने जेवर सब कुछ बेच दिये थे। बड़े अस्पताल में गोपी के पिता को लेकर गई थी। वहां डाक्टरों ने एम.आर.आई करने के बाद यह बताया कि रीड की हड्डी बढ़ने की बजह से एक नस दब गई है। जिसके वजह से पैरों में दर्द हो रहा है। जल्द से जल्द आपरेशन करना पड़ेगा नहीं तो पेरेलाइसिस हो जायेगी।’’

गोपी की मॉ ने डाक्टर से आपरेशन का खर्च पूछ,’’आपरेशन में कितना खर्च आ जाएगा।’’
डाक्टरों ने एक लाख रूपये बता दिया था।
गोपी की मॉ को काटो तो जैसे खून नहीं। गोपी की मॉ की रात की नींद उड़ गई। दिन का चैन छिन गया। अगर गोपी के पापा को कुछ हो गया तो कैसे रोजी रोटी चलेगी। और फिर जितने भी व्याह के उसके जेवर थे सब बेच दिया था। गोपी के पापा का आपरेशन करवाया था। लेकन आपरेशन के बाद गोपी के पापा की हालत ऐसी रही ही नहीं की वह टेक चला पाते। क्योंकि पैरों में वह ताकत आपरेशन के बाद आई ही नहीं थी।

घर के सारे जेवर गोपी की मॉ बेच चुकी थी। घर के राशन पानी के लिए भी अब उनके पास कुछ नहीं था।
उस समय गोपी बी.एस.सी फस्ट ईएर में था। गोपी की मॉ ने गोपी से कहा,’’बेटा अब तू कहीं काम पर लग जा। क्योंकि अपने पापा की तो तुम हालत देख ही रहे हो।’’

यूं तो गोपी पढने लिखने में बहुत होशियार था। वह डॉक्टर बनना चाहता था। बारहवीं के बाद वह एम.बी.बी.एस के लिए एन्टरान्स एग्जाम देना चाहता था। मगर गोपी की मॉ ने गोपी को कहा ,’’देख बेटा डाक्टर ,इंजीनियर बनना यह सब बड़े घर के लोगों के लिए रह गया है। हम ठहरे गरीब घर के तुम तो देखते ही हो। तुम्हारे पापा ट्रक लेकर जाते हैं तो दस-पन्द्रह दिन तक घर नहीं आ पाते हैं। जब तक घर नहीं आते तब तक चिंता बनी रहती। बस मैं चाहती हूं तो किसी तरह पढ़ाई पूरी कर के नौकरी में लग जा।’’
गोपी ने उस दिन भी अपने सपनों को स्वाहा कर मॉ की बात मान ली थी। वह जान गया था। गरीब लोगों का कोई स्वप्न नहीं होता है। घर का चूल्हा सबसे पहले होता है। जो कभी नहीं बुझना चाहिए। गोपी ने मॉ की बात फिर मान ली।

नौकरी मिलना इतना आसान नहीं था। गोपी तमाम अपने आस पास की जूट मिल,सरिया की कम्पनी में काम मागने जाता। पहले पहल तो फैक्टरी के मेनेजर यह पूछते,’’ किस पार्टी की ओर से आये हो।’’
’’ किसी पार्टी से नहीं हूं।’’

देखो भाई यह बंगाल है। यहां या तो टीमसी या सीपीएम करने वालों की नौकरी होगी। ऐसे भी यह दोनों आपस में ल़ड़ जाते हैं। एक कहता है मेरे आदमी को लो, दूसरा कहता है मेरे आदमी को लो। अगर तुमको ले लिया तो साला दोनो पार्टी हंगामा मचा देगी।
गोपी फिर ठेकेदारों के पास गया। ठेकेदार ने गोपी से पूछा,’’क्या जानते हो?’’
’’जी बारहवीं साइन्स साइड से पास हूं।’’
’’नहीं, जानते क्या हो?’’
’’जी बारहवीं की है।’’गोपी ने दोबारा कहा
’’आबे जानते क्या हो। पेन्टर,कारपेन्टर,मैकेनिक,डाइवर क्या काम जानते हो?’’
’’सर जानता तो नहीं हूं। मगर सीख जाउंगा।’’
’’अबे हमने कोई स्कूल थोड़े खोल रखा है। जो तुमको सिखायेंगे।’’
’’सर मौका दीजिए कभी शिकायत नहीं आने देंगे।’’
’’देख हेल्पर में तुम्हें नहीं रख सकते। एकदम दुबला पतला शरीर है। काम बहुत भारी है। अगर कहीं मर मुरा गया तो साला हमारी तो ठेकेदारी चली जाएगी।’’
अब कहीं नौकरी मिल नहीं रही थी। वह निराश  हो गया। उसी वक्त किसी स्कूल के टीचर जो गोपी को अच्छी तरह जानता था। एक दिन गोपी को मिल गया। गोपी ने उसे अपने घर के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने गोपी को ट्यूशन पढ़ाने की कही।
गोपी ने मास्टर जी से कहा, ’’अगर सर आप कहीं मुझे ट्यूशन दिला देते तो।’’

मास्टर साहब ने ऐसे जगह उसे टयूशन दिला दिया जहॉ वह खुद नहीं जा सकता था। गोपी को अपने घर से करीब सात-आठ किलोमिटर दूरी पर ट्यूशन मिला था।
गोपी ने ट्यूशन पढाने के लिए अपने घर में पड़ी टूटी सी साइकिल निकाल कर उसकी मरम्मत कराई और चैन में अच्छी तरह तेल डलवा लिया था।

गोपी को तीन दिशा में तीन ट्यूशन मिले। तीनों ट्यूशन पढ़ाने के समय भी लगभग एक ही था। फिर उसी वक्त दो ट्यूशन छोड़कर एक को पढ़ाने लगा था। फिर वही एक ट्यूशन और मिल गई थी। अभी तीन दिन ही ट्यूशन पढ़ाया ही था कि चौथे दिन वह शाम को ट्यूशन पढ़ाने निकला ही था कि जोरों की बारिश  शुरू हो गई। गोपी के पास ना छाता था ना रैनकोट। वह एक पेड़ के निचे छीप गया। दो घंटे  तक लगातार बारिश  होती रही। पेड़ के नीचे भी वह लमसम भीग गया था। भीगा हुआ घर वापस आ गया।
अगले दिन उसे सर्दी जुकाम हो गया था। मगर वह शाम फिर भी ट्यूशन पढ़ाने निकल गया।

रास्ते में अचानक ही टायर पेन्चर हो गई। वह काफी दूर साईकल को पैदल लेकर गया फिर कहीं जाकर एक पेंचर की दुकान मिली। इन सब की वजह से समय ज्यादा हो गया। एक दिन ट्यूशन पढ़ाने गया तो ट्यूशन पढ़ाते समय गोपी को दो तीन बार छींक आ गई। बच्चे की मॉ ने गोपी से आकर कहा,’’भईया आप की तबियत ठीक नहीं है। आप आज आराम कर लीजिये कल पढ़ा दीजियेगा।’’
’’नहीं मैं ठीक हूं। हल्का सा सर्दी जुकाम है।’’
मैडम ने देखा गोपी मान नहीं रहा है। जी इससे बच्चे को वायरल इन्फैक्सन हो जायेगा। तबियत ठीक होने पर आईयेगा।
गोपी टयूश न पढ़ाने दूसरे घर चला गया। दूसरे घर गोपी जैसे ही बैठा था। कि मैडम आ गई ’’भईया आज आप इतने लेट आये हैं। रात के आठ बज रहे हैं।’’
’’नहीं आज आते वक्त मेरी साईकिल पेंचर हो गई थी। आमने सामने कोई पेन्चर वाला मिला नहीं। काफी दूर पैदल आने के बाद पेंचर वाला मिला था।’’
’’आप तो कल भी नहीं आये थे।’’
’’जी कल आते वक्त बारिश  शुरू हो गई थी। भींग गया था।’’
’’जी ऐसा है की आप रहने दें। हम कोई दूसरा ट्यूशन मास्टर देख लेंगे। क्योंकि आप के लिए इतनी दूर से  आकर ट्यूशन पढ़ाना सम्भव नहीं हो पायेगा।’’
गोपी घर वापस चला आया।

गोपी दोबारा उन दो ट्यूशन को पकड़ने गया। जिन्हें समय ना रहने के चलते ना बोल दिया था। किस्मत अच्छी थी कि ट्यूशन मिल गई।
गोपी के एक छात्र के पिता ,एक दिन ट्यूशन पढ़ाते समय गोपी के पास आकर बैठ गया। गोपी ने उसे नमस्कार किया। वह गोपी का हाल चाल पूछते हुए। उनके घर के बारे में पूछने लगे। गोपी ने घर मे मॉ पापा सबके बारे में बता दिया। फिर उसने पूछा,’’ ट्यूशन पढ़ाने के आलावा और क्या करते हो?’’
’’जी बस ट्यूशन ही पढाता हूं।’’

देखो सिर्फ ट्यूशन पढ़ाने से घर बार नहीं चलेगा। इससे तुम अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाओगे। फिर तुम्हारे पिता भी बीमार है। इंसान के जब खर्च बढ़ जाते हैं। तो खर्च से नहीं घबराना चाहिए। आमदनी बढ़ाने की सोचनी चाहिए। बील गेटस ने कहा है गरीब पैदा होना इंसान की गलती नहीं है। मगर गरीबी में मर जाना इंसान की गलती है।’’

गोपी बस उसकी बात सुन कर जी सर, जी सर करता गया।
वह एक बुक लेकर आये। ओर गोपी के सामने खोल कर रख दी । बुक का कवर काफी सुन्दर था। और अंदर के पेज भी चमकदार थे। गोपी बुक को गौर से देखने लगा।’’ मैं नौकरी करने के साथ-साथ इस संस्था से जुडा हुआ हूं। यह दरअसल चैन बिजनेस है। इस कम्पनी को ज्वाइन करने के लिए मात्र 23 सौ रूपये लगते हैं। और उसके बदले में कम्पनी कई सारे प्रोडक्ट देती है। जो आप को मार्केट में बेचना है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपने अंडर में जितने एजेन्ट बनायेंगे । तुम्हें उतना ज्यादा कमीशन मिलेगा। अब तुम्हारे अंदर के जितने एजेंट अपने एजेंट बनायेंगे। उनका भी पैसा तुम्हंे मिलेगा। इस तरह मार्केट में जितना काम तुम फैला लोगे उतना ज्यादा पैसे तुम कमाओगे।’’
गोपी ने पूरी बात गोर से सुनी। उसे कुछ-कुछ अच्छा भी लगा। मगर इस वक्त तो गोपी के पास जहर खाने के भी पैसे नहीं थे। कम्पनी ज्वाइन करना तो दूर की बात थी।
’’सर इस वक्त मेरी पोजीशन एकदम खराब है। अभी हम कम्पनी ज्वाइन नहीं कर पायेंगे।’’
’’ठीक है कोई बात नहीं तब तक तुम कम्पनी के प्रोडेक्ट को अपने मुहले में बेचना शुरू करो।’’
उसने गोपी को कम्पनी के टूथपेस्ट,ब्रेस,परफयूम,साबुन,तेल इत्यादि सामान झोले में भर कर पकड़ा दिया।
गोपी उस दिन सारे सामान झोले में ले कर घर आ गया। उस रात वह सारे सामान को झोले से निकाल कर देखने लगा। वह टूथपेस्ट के पैकट को देखने लगा। उसकी कीमत  दो सौ रूपये थी। गोपी सोचने लगा बड़े लोग तो सुबह-सुबह दो सौ रूपये दांतो में मल देते है। गोपी खुद गरीब था उसके सभी जानने वाले भी गरीब थे। किसी की भी औकात दो सौ रूपये की टूथपेस्ट से दॉत साफ करने की नहीं थी। वह सब तो सुबह-सुबह नीम के दंतवन खोज कर दांतो में रगड़ लेते हैं।

लेकिन गोपी फिर भी प्रोडेक्ट को बेचने की कोशिस करने लगा। वह अपने सभी जानने वाले ठेले चाय-पान दुकान वालों के पास गया। एक चाय दुकान वाले ने कहा,’’अभी यह तो बडे लोगों के लिए है। अब हम परफ्यूम ला कर क्या करेंगे। और अपना दांत तो दंतवने से ही ठीक रहता है। हम काहेला इतना मेहंगा टूटपेस्ट इस्तेमाल करेगा।’’ 

एक लड़का कमर में काला बैग लटकाये हुए आया और अपने बैग से रसीद कॉपी निकाल कहा,’’दे दीजियेगा।’’
ठेले वाले ने बीस रूपये देते हुए कहा,’’ थोड़ा यह प्रोडेक्ट देख लीजियेगा।’’ गोपी की तरफ मुंह कर कहा,’’गोपी इन्हें भी अपना प्रोडेक्ट दिखा दो।’’

गोपी ने जैसे ही एक साबुन का पैकेट निकाल कर दिखाने लगा। कि वह ल़ड़का मुंह विदका कर कहने लगा,’’ हई विदेशियॉ कुल हम सब भारतियन के उल्लू समझे ला। कहीं हमार साबुन से नहॉ ला फिर उकर पानी से गांड़ धो ला। उकर बाद उहे पानी के अपन पेड़ पौधा में डाल दा खाद के तरह काम करी।’’
ठेले वाला और आस-पास के लोग हंस पडे। गोपी का सिर शर्म से झुक गया। गोपी की तरफ मुंह कर के पूछा,’’आप इस कम्पनी में कितना पैसा इनबेस्ट किये हैं।’’
’’नहीं किसी ने बेचने के लिए कहा है।’’
’’तेा एक काम कर जाकर यह सारा सामान उसके कपार पर मार कर आ।तुम करते क्या हो?
’’जी काम की तलाश  में हूं।’’
’’तो तुम एक काम करो। अक्षरा कम्पनी ज्वाइन कर लो।’’
फिर गोपी को कम्पनी में काम करने के तौर तरीके बताता रहा। गोपी को यह काम अच्छा लगा। क्योंकि इसमें एक रूपये भी नहीं लगाना था। ना ही कोई प्रोडेक्ट बेचना था। बस लोगों से पैसे वसूलने थे और कम्पनी में जमा करने थे।

गोपी अक्षरा कम्पनी में एजेन्ट बन गया। देखते ही देखते उसने हर गुमटी वाले से लेकर ठेले वालों को अपना ग्राहक बना लिया था। अपने अन्डर तीस से भी ज्यादा एजेंन्ट बना लिये थे। गोपी ने अपनी कमाई से एक मोटर साईकिल खरीद ली। गोपी ने अपनी पुरानी साईकिल को पोछ पाछ कर रख ली। क्योंकि गोपी मानता था अच्छे दिन आने पर बुरे दिन को कभी नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि उसने अक्षरा कम्पनी के मालिक की कहानी यह सुनी थी। वह भी कभी साईकल से कलैक्शन करने जाते थे। लेकिन अरबपति बनने के बाद भी आज भी उस साईकल को सभाल कर रखा है।
एक दिन वह इसी तरह वह कलैक्शन के लिए निकला था। एक दुकान में से सुनहरा कम्पनी के मैनेजर से मुलाकात हो गई। गोपी को अपनी कम्पनी के बारे में बता उसे अपना आई कार्ड दे ऑफिस में आने के लिए कहा।  गोपी को उसकी बात पर कुछ वजन लगा।
गोपी उसके ऑफिस में एक दिन चला गया।  गोपी को चाय नाश्ता सामने परोस वह समझाने लगा।’’ गोपी जी आप को हमारी कम्पनी का नाम तो पता ही है। हमारी कम्पनी सिर्फ  फिक्स डिपोजिट करती है। एक हजार रूपये से फिक्स डिपोजिट शुरू होती है। दूसरा ईम.आ.ई भी करती है। ई.एम.आई पचास हजार से शुरू हो जाता है। एक लाख का सुनहरा कम्पनी एक हजार रूपये देती है। मार्केट में कोई भी इतना पैसा नहीं देती है। आप को इ.एम.आई में  आप को एक लाख का पॉच हजार रूपये मिलेगा। फिक्स में एक लाख का बीस हजार रूपये मिलेगा।’’

उसने और भी कई सारी बातें विस्तार से गोपी को बता दी थी। गोपी उस दिन के बाद से अक्षरा और सुनहेरा दोनों कम्पनी का एजेन्ट बन गया था। ठेलेवालों और कमजोर लोगों के पैसे वह अक्षरा में डालता उन्हीं लोगों के पास आने वाले नौकरी करने वालों के पैसे सुनहेरा में फिक्स करवाता था। चूंकि गोपी ने अक्षरा में काम कर अपना विश्वास लोगों में बना ही रखा था। इसलिये उसे सुनहरा में ग्राहक मिलने में कोई दिक्कत नहीं आई। मोटी रकम फिक्स और एम.आई. करवाने के लिए कुछ कोयला के दो नम्बर से लेकर लोहा के दो नम्बर कारोबार करने वालो के पास भी गया। क्योंकि उसे लगा दो नम्बर का काम करने वालों को पैसे को एक नम्बर बनाने का यह अच्छा साधन है। और इन दो नम्बर काम करने वालों के पास पैसे की कमी नहीं होती। 
वह कईयों से मिला सबने यह कहा,’’पैसा तो हम ही डबल कर देंगे। कहीं फिक्स करने की क्या जरूरत है।’’
’’साहब बात डबल की नहीं है। अगर आप अभी किसी बैंक में पैसा जमा करने जायेंगे तो पचास रकम के सवाल जबाब होंगे। कहां से पैसा आया। साला आधा तो टैक्स में चला जायेगा। चलिये सब बात छोड़िये काम में कुछ उच्च नीच हो गई तो कम से कम कुछ इ.एम. आई रहेगा तो पैसे आते रहेंगे। चलिए वह भी छोड़िये कुछ हमारे लिए ही जमा कर दीजिए।’’

 मगर बात बनी नहीं। मगर गोपी यह जानता था कि एक मुलाकात में काम नहीं होता है। सौ मुलाकात में एक काम होता है। गोपी का जब मन करता इन लोगों के पास चला जाता। करीब पच्चीस दफा जाने के बाद गोपी को एक ने लाख रूपये की इ.एम.आई दे दी। महीने बाद ही जब उसे  इ.एम.आई आना शुरू हो गया। कुछ लोगों को अच्छा लगा और कईयों ने इ.एम.आई करवा ली किसी ने पॉच लाख का,किसी ने छःलाख और किसी ने दस का ई.एम.आई करवा ली। और उसने अच्छी खासी कमीशन कमाई। 
  
 मोटर साईकिल निकाल कर गोपी आज फिर बास के फोन आने पर दास बाबू के घर निकल गया।
दास बाबू को अपनी कम्पनी के बारे में सब कुछ समझा दिया। दास बाबू को पैसे तो ई.एम.आई करना ही था।  उन्होने कहा,’’देखिए कुछ पैसा तो हम बैंक में कर दिये हैं। एक लाख आप की सुनहरा में कर देते हैं।’’
गोपी ने कहा,’’बैंक से तो ज्यादा पैसा देती है सुनहरा कम्पनी।’’
’’मगर विश्वास तो गर्वमेंट बैंक देती है।’’
’’अंकल मगर सुनहरा कम्पनी में तो कई लोगों ने पैसे जमा किये हैं। लोगों का कम्पनी में विश्वास  है।’’

दास बाबू मुस्कुराये और कहा,’’कोई कम्पनी के विश्वास  पर पैसे नहीं देता है। सब आप का चेहरा देख कर देते है। तुम पर सब विश्वास  करते हैं कि तुम किसी का पैसा गलत जगह नहीं फंसाओगे। मैं भी तुम्हारे विश्वास  पर एक लाख जमा कर रहा हूं। समझ जाओ एक लाख का जुआ खेल रहा हूं। फिर हर एक को ज्यादा पैसा कमाने की लालच होती है। मुझमे भी है पर अधिक लालच करना भी ठीक नहीं होता है।
’’भगवान करे की आप इस जुऐ में ज्यादा जीत पाये।’’
दास बाबू ने एक लाख रूपये का ई.एम.आई सुनहरा में करवा लिया।
मगर दास बाबू की एक बात ने उसे सोचने में मजबूर कर दिया। अब तक उसने जितने भी पैसे जमा करवाये हैं। सबने मेरे उपर विश्वास  किया है। मैं क्या इतना बड़ा आदमी हूं। ऐसा होता तो मैं खुद की कम्पनी नहीं खोल लेता। वह मन ही मन मुस्कुराया साला दास बाबू ने तो एकदम से खोपड़ी घुमा दी।
एक रात ग्यारह बजे उसके एक एजेन्ट का फोन आया।’’गोपी भाई सुनने में कुछ आया है।’’
’’क्या?’
’’कलकत्ता का हेड आफिस एक सप्ताह से खुला नहीं है।’’
’’हमारे इलाका का आफिस खुला है ना’’
’’गोपी भाई हेड आफिस का बंद होना यह साफ बता रहा है। कम्पनी बंद हो गई है।’’
’’अरे नहीं यार।’’
’’क्या पता कहीं यह भी बंद ना कर दे।’’
’’कुछ नहीं होगा तुम सो जाओ।’’

कहते हैं कि एक दिन अचानक हर न्यूज चैनल में ब्रेकिंग न्यूज की खबर दिखाई जाने लगी। सुनहरा चीटफंड कम्पनी बीस हजार करोड़ का पैसा लेकर फरार। सुनहरा कम्पनी के बिल्डिंग के दरवाजे में ताला लटका हुआ दिखाया जा रहा था। बिल्डिंग के बाहर करीब हजारों की संख्या में लोगों को दिखा रहे थे। एक संवाददाता हाथों में माइक लिए कह रहा था,’’करीब करोडों रूपयो का घोटाला कर चीटफंड कम्पनी सुनहरा फरार हो चुकी है। आप देख सकते हैं हजारों की सख्या में लोग यहा खड़े हैं। जिन्होंने सुनहरा कम्पनी में अपने पैसे फिक्स किये थे। हर एक के ऑखो में आंसू हैं। दिल में दर्द है। चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा है।’’मैं राकेश  तीवारी केमरा मेन राजू के साथ, आज तक।

गोपी किसी को कम्पनी की स्कीम समझा रहा था। कि उसका मोबाइल घनघनाने लगा। ’’बोल यार क्या हुआ?’’
’’गोपी भाई बहुत बुरी खबर है।’’
’’ क्यों क्या हुआ है?’’
’’न्यूज चेनल में  खबर आ रही है कि सुनहरा कम्पनी लोगों का पैसा लेकर फरार हो गई है।’’
’’क्या कह रहे हो?’’

मैंने तो घर से निकल कर मुम्बई की ट्रेन पकड़ ली है। अब वही मौसा जी के पास रह कर किसी कम्पनी मे काम करूंगा।’’
’’तू भी अपने घर से निकल जा वरना लोग तुझे भी खोजते हुए तेरे घर आ रहे होंगे। कई एजेन्टों को पब्लिक पीट रही है।’’
गोपी ने झट अपनी बाईक स्टार्ट की और वहां से अपने लोकल ऑफिस की तरफ भागा उसने दूर से देखा आफिस के बाहर कई लोगों की भीड़ लगी है। वह नहीं देख पाया की आफिस में ताला लगा हुआ है या नहीं। वहॉ से बाईक निकाल वह भाग खड़ा हुआ।
गोपी के घर के बाहर कई लोगों की भीड़ लगी हुई थी। गोपी की मॉ दरवाजे के पास बैठी लोगों से कह रही थी। ’’देखिये गोपी तो वहॉ काम करता था। अगर आप लोग अपना पैसा लेने आये हैं। तो घर का जो भी सामान है ले जाकर बेच कर पैसा ले लीजिए।
गोपी अपने घर की तरफ आया तो यंहॉ भी उसे दूर से ही भी़ड देखा। उसे समझ नहीं आया की वह कहां जाये। वह शहर से दूर भागाने लगा। 

बाइक पर सवार वह भागता जा रहा है। बाइक चलाता-चलाता उसकी कमर में दर्द आ गया। रास्ते में एक जंलग में अपनी बाईक को लेकर चला गया। एक पेड़ के नीचे बाईक खड़ी कर उस पेड के निचे बैठ गया। थकान के चलते उसे वहीं पर नीद आ गई।
जब उसकी ऑख खुली तो अंधेरा छा चुका था। वह आसमान के ऊपर सिर उठा कर देखता है। वह बरगद के विशालकाय पेड़ के निचे बैठा है। उसे ऐसा महसूस होने लगता है। वह चारो तरफ से जंजीरों से जकड चुका है। येसी जंजीरें हैं। जिसे कोई नहीं खोल सकता है। उसे अपना स्वप्न सच होता नजर आ रहा था।
अगले दिन की सुबह पेड़ पर गोपी की लाश  लटक रही थी। पेड़ के पास कई लोगों की भीड़ लगी हुई थी। अब जितने मुंह उतनी ही बातें । कुछ लोगों का कहना था,गोपी ने लोगों के डर से आत्म हत्या कर ली है। कुछ का कहना था, जिनके चीटफंड में पैसे फंसे थे उन लोगों ने गोपी को मौत के घाट उतार दिया है। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना था कि गोपी को चोरों ने पैसो की खातिर मार दिया है।  
 
पुलीस तहकिकात में लगी थी कि गोपी की हत्या हुई थी या गोपी ने आत्म हत्या की थी।और आखिर इसकी मौत का जिम्मेदार कौन है?                                                                                                                                                                                                                                                      
परीकथा 2015 के नवलेखन अंक से साभार   

सम्प्रति- मुंजाल शोवा लि.कम्पनी में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत

सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर,न्यू शिवालिकनगर,हरिव्दार,उत्तराखण्ड,249407
मोबा0- 9012275039