विनीता जोशी
उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में जन्मीं युवा कवयित्री विनीता जोशी के गीत कविताएँ, लघुकथाएँ और बाल कविताएँ, कहानी,
लेख, समीक्षा
आदि का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं
यथा कादम्बिनी, वागर्थ, पाखी,
गुंजन जनसत्ता ,अमर उजाला, दैनिक जागरण ,सहारा समय, शब्द सरोकार में प्रकाशन हो चुका
है। इन्होंने हिंदी साहित्य एवं अर्थशास्त्र में एम. ए. किया है।
अभी हाल में एक कविता संग्रह
चिड़िया चुग लो आसमान पार्वती प्रकाशन इन्दौर से प्रकाशित हुआ है जिसका पिछले दिनों भोपाल में नामवर जी ने विमोचन किया।
सम्मान- बाल साहित्य के लिए खतीमा में सम्मानित।
सम्प्रति- अध्यापन।
विनीता जोशी की दो लघु कविताएं-
एहसास
एक्वागार्ड के
पानी जैसा
क्यों बनाना चाहते हो
प्यार को
इसे बहने दो
पहाड़ी नदी की तरह
जिसमें एहसास हो।
मुझे
एक्वेरियम की
मछली
नहीं बनना
मुझे
नदी पार कर
सागर तक जाना है
और अनंत को पाना है।
सम्पर्क- तिवारी खोला पूर्वी पोखर खाली
अल्मोड़ा.263601;उत्तराखंड
दूरभाष 09411096830
behtarin kavitaen.....
जवाब देंहटाएंsunder kavitain.
जवाब देंहटाएंAchhi kavitaein .
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं पढवाने के लिये कवि व संपादक को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पुरवाई में पुरवाई की खुशबू और सोंधी गंध से सराबोर रचनाये पढ़ने को मिल रही हैं ,आपके साथ , पुरवाई के रचनाकारों को भी बधाई !
जवाब देंहटाएंविनीता दी की दोनों ही कवितायेँ बहुत खुबसूरत हैं,इसके लिए बधाई खूब-खूब.
जवाब देंहटाएंएक्वागार्ड के पानी की तरह का प्यार बनावटी होता है जिसमें कोई "एहसास" खोज पाना बहुत मुश्किल है. मेरी नजरों में प्यार एक ऐसी चीज है जिसे नदी के पानी की तरह बहते रहना चाहिए ताकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सके..तभी तो कवयित्री कहती है कि-
एक्वागार्ड के/पानी जैसा/क्यों बनाना चाहते हो प्यार को
इसे बहने दो/पहाड़ी नदी कि तरह/जिसमें एहसास हो.
इसलिए मुझे उनकी चिंता वाजिब/सही लगती है कि प्यार कही एक्वागार्ड के पानी जैसा न बन जाये या बना दिया जाये, अन्यथा नदी के पानी की तरह, एक्वागार्ड का पानी कहाँ-कहाँ तक पहुंचेगा? दूसरे शब्दों में कहीं भी नहीं या कुछ ही जगह.फिर नदियों के पानी में एक मिठास है.शुद्धता है.यहाँ एक बात ये भी कहना आवश्यक है कि नदियों की भयावह स्थिति को देखकर कवयित्री चिंतित है इसलिए वह सिर्फ पहाड़ की नदी की बात करती है...क्योकिं पहाड़ से निकलते ही नदियाँ,नदियाँ तो रहती हैं...लेकिन कुछ एहसास नहीं दे पातीं.
अब कवयित्री की दूसरी कविता "मुझे" की बात करते हैं.
ये कविता भी बहुत छोटी कविता है और दिल को छूने वाली है.एक व्यक्ति की चाह या इच्छा अनंत होती है और इस चाह के कारण ही वह अनंत को पाना चाहता है.हालांकि अनंत को कोई पा नहीं सकता लेकिन इस कविता में कवयित्री ने जो सपना देखा है,वह बहुत बड़ी बात है. इस कवयित्री के लिए या किसी भी व्यक्ति के लिए वह सपना पूरा करना ही अपने अनंत पाना है.इसलिए पहली जो जरुरी चीज है वो है सपने देखना अन्यथा एक्वेरियम की मछली बनकर ही रह जाने की नियति बन जाएगी.चाहे सोच से या कद,हद और पद से.
खेमकरण 'सोमन'
शोध छात्र,
पी.जी.कॉलेज रूद्रपुर,उत्तराखंड.
good
जवाब देंहटाएंविनीता दी की दोनों ही कवितायेँ खूबसूरत हैं.बधाई खूब- खूब.
जवाब देंहटाएंबात करते हैं उनकी पहली कविता "एहसास" की.मेरा व्यक्तिगत मानना है कि प्यार को हमेशा बहते रहना चाहिए क्योंकि जब तक व्यक्ति है तब तक प्यार है और कवयित्री को डर है या चिंता है कि प्यार कहीं एक्वागार्ड के पानी कि तरह न बन जाये या न बना दिया जाये.कवयित्री की चिंता इस रूप में है कि एक्वागार्ड के पानी की पहुँच आम लोगों तक नहीं है.फिर प्यार को वही महसूसता है जो इसे पाता है.दूसरे शब्दों में कहें तो जिसे प्यार मिलता है. ..इसके विपरीत आम लोगों तक यदि पहुँच है तो नदी के पानी की.ये पानी एक्वागार्ड के पानी की तरह महंगा या कुछ खास लोगों तक ही नहीं है, इसलिए कवयित्री का कहना कहना है-
एक्वागार्ड के/पानी जैसा/क्यों बनाना चाहते हो/प्यार को/
इसे बहने दो/पहाड़ी नदी की तरह/जिसमें कुछ एहसास हो.
कवयित्री नदियों की वर्तमान भयानक/प्रदूषित स्थिति देखकर इसलिए ही सिर्फ पहाड़ से निकलने वाली नदी की बात करती है.पहाड़ की नदी के पानी में एक शुद्धता होती है.पानी में मिठास होता है जिसमें कुछ एहसास होता है.इसलिए भी प्यार को पहाड़ी नदी के पानी की तरह बहते रहना चाहिए.बस...बहते रहना चाहिए.उसे एक्वागार्ड के पानी जैसा बनाने से बचाना जरुरी है.
अब बात करते हैं कवयित्री की दूसरी कविता "मुझे' की.ये कविता भी अच्छी और दिल को छूती हुई सी बनी है.कविता में कवयित्री सपने देखती है और एक्वेरियम (एक छोटे संसार) की मछली(अर्थात प्राणी) न बनकर नदी के पर विशाल समुद्र तक पहुंचना चाहती है और अनंत को पाना चाहती है. हालाँकि अनंत को कोई पा नहीं सकता.अनंत अनंत है.लेकिन कवयित्री जो सपना देख रही है,वही बहुत बड़ी बात है और सपना ही कुछ पाने का आधार/बुनियाद है.जिसने सपना नहीं देखा,उसने कुछ नहीं देखा.इसलिए कवयित्री या जब कोई व्यक्ति सपने देखता है,तो अपने सपने को पूरा करना ही उसके लिए अनंत पाने के सामान होता है अन्यथा सोच/समझ/विचार से जीवन भर एक्वेरियम की मछली बनने की नियति ही बनी रहेगी.ये एक व्यापक फलक की कविता है.
खेमकरण 'सोमन'
शोध छात्र,
पी.जी. कॉलेज रूद्रपुर,उत्तराखंड.