पहाड़ का सौंदर्य
अल्मोड़े से कसारदेवी की ओर
बढ़ चली थी गाड़ी
चारों ओर फैली हरियाली
कोमल-कोमल चातुरमासी घास
बॉज-बुरूंश-चीड़-देवदार के
विस्तृत वन-कानन
कभी पड़ रही थी जिनमें
बरखा की बूदें झमझम
कभी ढक लेता जिनको
मॉ की ऑचल सा कुहारा चमचम
कहीं मिल जाते थे
अल्मोड़े से कसारदेवी की ओर
बढ़ चली थी गाड़ी
चारों ओर फैली हरियाली
कोमल-कोमल चातुरमासी घास
बॉज-बुरूंश-चीड़-देवदार के
विस्तृत वन-कानन
कभी पड़ रही थी जिनमें
बरखा की बूदें झमझम
कभी ढक लेता जिनको
मॉ की ऑचल सा कुहारा चमचम
कहीं मिल जाते थे
जंगल जाती महिलाओं के दल
हिलमिल
कहीं घंटी बजाते बैलों के झुंड
टुनटुन
दूर कहीं अचानक बादलों के बीच
दिख जाते
लुकाछिपी करते से
हिमाच्छादित पर्वत शिखर
कच्ची-पक्की सड़कों में हिचकोले खाते
देख यह दृष्यालेख
गदगद थे
कवि केशव तिवारी और आलोचक जीवन सिंह
बच्चों सी
चमक रही थी उनकी ऑखें
होठों में थिरकन
हवा चलते हुए झील के जल सी
जैसे कहना चाह रहे हों कुछ
और कह भी नहीं पा रहे हों।
कवि-आलोचक द्वय के भीतर
झर रहा था सौंदर्य का अद्भुद झरना
पास जिसके
भीग रहे थे हम फुहारों में
एक बार फिर
हम भी ठहरकर देख रहे थे
पहाड़ के सौंदर्य को
कुछ ऐसा ही था यह अनुभव
जैसे किसी और को प्रेम में पड़े देख
याद हो आता है अपना प्रेम भी
गदगद थे वो
गदगद थे हम
गदगद लगता था पहाड़ भी ।
पत्नी जो ठहरी तुम्हारी
हाथ बॅटाना तो हुआ नहीं तुमसे कभी
पुरुष होने की इज्जत में बट्टा जो लग जाता ।
हिलमिल
कहीं घंटी बजाते बैलों के झुंड
टुनटुन
दूर कहीं अचानक बादलों के बीच
दिख जाते
लुकाछिपी करते से
हिमाच्छादित पर्वत शिखर
कच्ची-पक्की सड़कों में हिचकोले खाते
देख यह दृष्यालेख
गदगद थे
कवि केशव तिवारी और आलोचक जीवन सिंह
बच्चों सी
चमक रही थी उनकी ऑखें
होठों में थिरकन
हवा चलते हुए झील के जल सी
जैसे कहना चाह रहे हों कुछ
और कह भी नहीं पा रहे हों।
कवि-आलोचक द्वय के भीतर
झर रहा था सौंदर्य का अद्भुद झरना
पास जिसके
भीग रहे थे हम फुहारों में
एक बार फिर
हम भी ठहरकर देख रहे थे
पहाड़ के सौंदर्य को
कुछ ऐसा ही था यह अनुभव
जैसे किसी और को प्रेम में पड़े देख
याद हो आता है अपना प्रेम भी
गदगद थे वो
गदगद थे हम
गदगद लगता था पहाड़ भी ।
पत्नी जो ठहरी तुम्हारी
हाथ बॅटाना तो हुआ नहीं तुमसे कभी
पुरुष होने की इज्जत में बट्टा जो लग जाता ।
सारा काम निबटाकर
आराम को आती हॅू जब बिस्तर में
कुलबुलाने लगती हैं इच्छाएं तुम्हारी
हर रात ।
आराम को आती हॅू जब बिस्तर में
कुलबुलाने लगती हैं इच्छाएं तुम्हारी
हर रात ।
जुर्रत भी महसूस नहीं करते
जानने की मेरी इच्छा
जैसे कोई शिकारी ।
करो भी क्यों
पत्नी जो ठहरी तुम्हारी
ढोल बजाकर जो लाए हो घर इसीलिए।
जानने की मेरी इच्छा
जैसे कोई शिकारी ।
करो भी क्यों
पत्नी जो ठहरी तुम्हारी
ढोल बजाकर जो लाए हो घर इसीलिए।
रौंद डालते हो मेरे शरीर को
जैसे बिगड़ा सॉड़ किसी खेत को
मेरी चित्कार भी
नहीं देती सुनाई तुम्हें
तुम चाहते हो तुम्हारे बहशीपन में भी
महसूस करू मैं आनंद ।
जैसे बिगड़ा सॉड़ किसी खेत को
मेरी चित्कार भी
नहीं देती सुनाई तुम्हें
तुम चाहते हो तुम्हारे बहशीपन में भी
महसूस करू मैं आनंद ।
सब कुछ चाहिए तुम्हें
नहीं मिल पाए जो उसी में हंगामा ।
नहीं मिल पाए जो उसी में हंगामा ।
और
मेरा मन रखने को भी
नहीं कर सकते तुम कभी
मेरी झूठी तारीफ तक ।
मेरा मन रखने को भी
नहीं कर सकते तुम कभी
मेरी झूठी तारीफ तक ।
पता नहीं क्यों तुम्हें अब
मुझमें दिखाई नहीं देते कोई गुण ।
मुझमें दिखाई नहीं देते कोई गुण ।
कभी तो तुम्हें
मुझमें दिखाई देगा कुछ अच्छा
खटती रहती हॅू
इस चाह में दिन-रात ।
मुझमें दिखाई देगा कुछ अच्छा
खटती रहती हॅू
इस चाह में दिन-रात ।
अपने को
बड़ा ही दिखाते रहते हो
हर हमेशा
और
मुझे मतिमूढ़
चाहे तुमसे होता न हो
एक तिनका भी टेड़ा।
मैं बिछती रही जितनी
तुम पसरते गए उतने ।
बड़ा ही दिखाते रहते हो
हर हमेशा
और
मुझे मतिमूढ़
चाहे तुमसे होता न हो
एक तिनका भी टेड़ा।
मैं बिछती रही जितनी
तुम पसरते गए उतने ।
कहते रहे समय-समय पर-
’’मैं कितना प्यार करता हॅू तुम्हें
नहीं जानती तुम‘‘
और
मैं भूलाती रही सब कुछ
और
तुम चलाते रहे सब कुछ ।
’’मैं कितना प्यार करता हॅू तुम्हें
नहीं जानती तुम‘‘
और
मैं भूलाती रही सब कुछ
और
तुम चलाते रहे सब कुछ ।
संपर्क- जोशी भवन ,निकट लीड बैंक चिमस्यानौला
पिथौरागढ़ 262501 मो0-9411707470
हमेशा की तरह बेहतरीन ...बधाई मित्र आपको
जवाब देंहटाएंमैं बिछती रही जितनी
जवाब देंहटाएंतुम पसरते गए उतने ।
कहते रहे समय-समय पर-
’’मैं कितना प्यार करता हॅू तुम्हें
नहीं जानती तुम‘‘
और
मैं भूलाती रही सब कुछ
और
तुम चलाते रहे सब कुछ ।
बेहतरीन ...बधाई.........
दोनों कविताएं बेहतरीन...बधाई...
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसा ही था यह अनुभव
जवाब देंहटाएंजैसे किसी और को प्रेम में पड़े देख
याद हो आता है अपना प्रेम भी
गदगद थे वो
गदगद थे हम
गदगद लगता था पहाड़ भी ।
.....सच्ची अनुभूति......दोनों कविताएं बहुत अच्छी हैं। प्रक़ति और औरत....दोनों को खूब महसूसा है आपने। बधाई...
महेश जी की कवितायेँ नई पीढ़ी (मुझ जैसे ) के लिए प्रेरणा स्रोत हैं
जवाब देंहटाएं