आपसे वादा किया था मैंने कि आगे हम आपको जल्द ही केशव तिवारी ,विजय सिंह, भरत प्रसाद ,महेश चन्द्र पुनेठा, हरीश चन्द्र पाण्डे ,शंकरानंद, संतोष कुमार चतुर्वेदी, रेखा चमोली, शैलेष गुप्त वीर,विनीता जोशी, यश मालवीय , कपिलेश भोज,नित्यानंद गायेन, कृष्णकांत, प्रेम नन्दन एवं अन्य समकालीन रचनाकारों की रचनाओं से रुबरु कराते रहेंगे।इसी कड़ी में आज प्रस्तुत है अग्रज विजय सिंह की कविताएं जो अपनी माटी की सोंधी महक के साथ उपस्थित हैं।
जंगल की हँसी
जंगल के सन्नाटे
में
पत्तियां गुपचुप-गुपचुप
बतियाती हैं
पत्तियों को सुनना
है
तो
आप को वृक्ष
होना होगा
जंगल की हँसी
में
चमक है
इस चमक को
छूने के लिए
जंगल में गाती-फुदकती
चिड़ियों को देखना
होगा
जंगल के स्वभाव
से
मैं परिचित हूँ
इसकी चुप्पी से
नहीं डरता
मैं जंगल में
साँस लेता हूँ
इसके सन्नाटे में
बुनता हूँ अपना
समय
मेरा समय
जंगल की तरह
उर्वर है।
रोज छूता हूँ जंगल
हरा-भरा जंगल
रोज छूता हूँ
और पहुंचता हूं
अपने गांव
महुए के पेड़
में कब आते
हैं फूल
लाख किस पेड़
से रिसता है
ओर किस पेड़
की पत्तियों में
छुप कर
लाल चींटियां बनाती हैं
अपना घर
बोड़ा पकने के
लिए
मिट्टी नम
कब होती है
सरई और सागौन
के पेड़
को कब छूती
है जंगली हवा
पण्डकी किस पेड़
की डाली से
गाती है मुण्ड
बेरा का गीत
आम और टार
कब पकते हैं
जंगल में
सरई पत्तों के लिए
गांव की औरतें
कब निकलती है
रान की और
धामना सांप कब
फुंफकारता है
जंगल में
सल्फी के सुरूर
में कब डूबता
है
गांव का गांव
सोनमती की हंसी
और लखमू की
टंगिया में
कब आता है
धार
मैं जानता हूं।
0 बोड़ा जमीन के
नीचे उगने वाला
छोटा कंद जिसे
बस्तर वासी चाव
से सब्जी के
रूप में प्रयोग
करते हैं
0 मुण्ड बेरा दोपहर
का समय
जंगल जी उठता है
मुहंआ पेड़ के
नीचे
आदिवासिन लड़कियों
की हंसी में
है
जंगल
जंगल अब भी
जंगल है यहां
आदिवासिन लड़कियां
जानती हैं
टुकनी मुंड में
उठाये
जब भी
आदिवासिन लड़कियां
गांव-खेड़ा से
बाहर
निकलती है
तब
जंगल का जंगल
जी उठता है
उनके स्वागत में।
तिरिया जंगल
तिरिया का जंगल
अभिषप्त नहीं है
सन्नाटे के लिए
काली मकड़ी जानती
है
और बुनती है
तिरिया जंगल में
अपना घर
तिरिया के जंगल
में
लाल चीटियां
पत्तियों की मुस्कान
में
रचती है अपना
संसार
ओर टुकुर-टुकुर
देखती है
बाहर की दुनिया
को
कभी-कभी
बांस की झुरमुट
से
गुर्राता है
तिरिया जंगल का
बाघ
और
तिरिया का जंगल
हंस पड़ता है
अक्सर चैत-बैषाख
की दुपहरी में
आसमान का लाल
सूरज
तिरिया के जंगल
में आग उगलता
है
और पंडकी चिड़िया
सागौन की डाल
से गाती है
गाना
जिसे गांव की
स्त्रियां सुनती हैं
यह वह समय
है
जब गांव की
स्त्रियां
मुंड में टुकनी
उठाये
वनोपज के लिए
तिरिया जंगल की
ओर निकलती है
गांव की स्त्रियों
की पदचाप सुन
तिरिया जंगल के
तेंदु फल पक
कर गिरते है
टप-टप धरती
में
आम और चार
पककर करते है
स्त्रियों के पास
आने का इंतजार
गांव की स्त्रियां
धूप-धूप , छांव-छांव
पेड़-पेड
भरी दोपहरी
में बेखौफ होकर
घूमती है
तिरिया के जंगल
में
गांव की स्त्रियां
तिरिया के जंगल
को जानती है
तिरिया का जंगल
गांव की स्त्रियों
को पहचानता है
और जानता है
यह वह समय
है
जब तिरिया का जंगल
गांव की स्त्रियों
की हंसी में
खिलखिलाता-झूमता है
सरई पत्तों, आम,चार
और तेंदू से
भरी टुकनी मुण्ड
में उठाए
जब लौटती है गांव
की स्त्रियां अपने
घर
तब तिरिया जंगल
एकदम चुप हो
जाता है
तिरिया जंगल की
यह चुप्पी
आप को डरा
सकती है।
जीवंत कवितायेँ , मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस जनकवि से मिलने का अवसर मिला ....
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं पढ़वाने के लिए बधाई स्वीकारें चौहान साहब और कवि महोदय भी।
जवाब देंहटाएंachhi kavitayen
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, जंगल की सजीव मंगल यात्रा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, जंगल की सजीव मंगल यात्रा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, जंगल की सजीव मंगल यात्रा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, जंगल की सजीव मंगल यात्रा
जवाब देंहटाएं