चातुरमास
सोनल भट्ट कक्षा-12
हे ! चातुरमास तू हर वर्ष आना
मेरी धरती को उसका गहना देना
खेतों में झूमती फसलें लाना
कृषकों को उनकी मेहनत का फल देना।
देना तू हमको सब कुछ
परंतु कभी भी किसी को आपदा मत देना
किसी की बस्ती मत उजाड़ना
ना ही किसी को अपनों से बिछुड़ाना ।
हे ! चातुरमास तू ऐसे आना
सबके चेहरे में खुशियाँ लाना
ना किसी के घर तोड़ना
ना जमीन खिसकाना
ना किसी का परिवार लूटना
देना तो बस खुशियाँ देना।
हे!चातुरमास तू ऐसे आना
मानो जैसे बहार आई हो
आना तो बस खुशियाँ लाना
हे ! चातुरमास हर वर्ष आना।
सुबह-सवेरे
दीपक सिंह सामंत कक्षा-12
प्रातः अंबर होता सुनहरा निराला
धरती पर घटाओं ने ऐसा डेरा डाला
मानो हो गया है धरती के कण-2 में गीला
चारों ओर पवन का हो गया बसेरा।
हर पत्ती डाली झूम रही है
ऐसा लगता है जैसे हो समंदर का किनारा
मग्न हैं सभी इस सुनहरी पुरवाई में
झूम रहा हो जैसे जग सारा ।
पनघट आँखें खोल रहा हो
मानो जगमगाने को हो जग सारा
गगन अब बोल रहा हो
सूर्योदय होने को है
आया है एक नया सवेरा ।
प्रस्तुति. महेश चंद्र पुनेठा
very nice..
जवाब देंहटाएंAchchhi kavitaen...
जवाब देंहटाएंSonal aur Deepak aap dono ko badhayi.aur iske sath hi Punetha ji ko bhi badhyi ki unki najar aap dono par padi.dono kavitayein mujhe pasand aayi.khub jio.likho padho.
जवाब देंहटाएं.
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khemkaran 'soman'
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बहुत अच्छी कविताएँ
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