रविवार, 20 जनवरी 2013

कविताएं-

उषा

विनीता कोटिया

चाँद छुपा तारे डूबे
आया उमंग का एक नया सवेरा
सज-धज अपनी लालिमा संग।
ज्यों ही सूर्य की पहली किरण
पड़ती उस अटके जल पर
जो रात भर वही पड़ा
वह लगता मोती जैसा
जाएगा सूरज की लाली के संग
दूर आसमान में
जैसे मेरी नजर पड़ी उस पर
लगाता ऐसा
किसी हरी चादर पर
गिर पड़ा इक मोती का दाना
निकल गया देखो पूरा सूरज
चाँद छुपा तारे डूबे ।

ये जिंदगी

दीपा विष्ट

बहती सरिता है जिंदगी
कभी खुशी तो कभी गम है जिंदगी
खुशहाली की बहार है जिंदगी
मुस्कराता हुआ पैगाम है जिंदगी
धरती पर बारिश की पहली फुहार है जिंदगी
उषा से होकर क्षितिज की ओर बढ़ती जिंदगी
वृक्षों की सांस से जन्म लेती हवा है जिंदगी
कभी धूप तो कभी छाँव है जिंदगी
हर चेहरे पर बिखरी मुस्कान है जिंदगी
संजोए रिश्तों की अटूट कड़ी है जिंदगी
समुद्र-सा बढ़ता प्रेम का सैलाब है जिंदगी
आखिर बहती सरिता है जिंदगी।


प्रस्तुति- अंकित चौहान संपादक उमंग
                  कक्षा-12
                  रा0इ0का0 देवलथल पिथौरागढ़

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कवि‍ताएं
    कुश्वंश

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  2. कविताओ में संभावना हैं ....आपका यह प्रयास भी अच्छा है

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  3. mere laptop par kavitayein nazar nahi aa rahin, kuch technical problem hai, badi kripa hogi, agar aap dubara chapein, taaki devnagiri mein padhi ja sake

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