होली
कैलाश झा किंकर
होली आई झूमकर,
फगुनाहट के साथ
सारी खुशियाँ आ गईँ
सचमुच सबके हाथ।
सचमुच सबके हाथ
हुए हैँ लाल-गुलाबी
लगा रहे हैँ लोग
रंग खुश-रंग जवाबी।
कह किँकर कविराय
सजी मस्तोँ की टोली
मना रहे हैँ आज
चतुर्दिक होली-होली।
होली आई झूमकर,
फगुनाहट के साथ
सारी खुशियाँ आ गईँ
सचमुच सबके हाथ।
सचमुच सबके हाथ
हुए हैँ लाल-गुलाबी
लगा रहे हैँ लोग
रंग खुश-रंग जवाबी।
कह किँकर कविराय
सजी मस्तोँ की टोली
मना रहे हैँ आज
चतुर्दिक होली-होली।
वे सारे रंग
जो साँझ के वक्त फैले हुए थे
क्षितिज पर
मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में
तुम्हारे लिए
वर्षों से किताब के बीच में रखी हुई
गुलाब पंखुड़ी को भी निकाल लिया है
तुम्हारे कोमल गालों के गुलाल के लिए
तुम्हारे जाने के बाद से
मैंने किसी रंग को
अंग नही लगाया है
आज भी मुझ पर चड़ा हुआ है
तुम्हारा ही रंग
चाहो तो देख लो आकर एकबार
दरअसल ये रंग ही
अब मेरी पहचान बन चुकी है
तुम भी कहो कुछ
अपने रंग के बारे में ....
वाह ..चौहान जी , बहुत शुक्रिया ...होली मुबारक हो ....सादर
जवाब देंहटाएं-नित्यानंद गायेन
'होली और तुम्हारी याद' नित्यानंद गायन
जवाब देंहटाएंअवसर के अनुरूप सौंदर्य से ओतप्रोत कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति अंतर्मन को स्पर्श करने में पूर्ण-रूपेंण सक्षम है !
कवि हार्दिक बधाई के पात्र हैं !
निवेदक : हैरिसन
शुक्रिया सर .
हटाएंसादर
नित्यानंद गायेन
आपका
samyik poems. badhaee..
जवाब देंहटाएंAnil kumar
होली की हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई..
जवाब देंहटाएंतुम्हारे जाने के बाद से
जवाब देंहटाएंमैंने किसी रंग को
अंग नही लगाया है
आज भी मुझ पर चड़ा हुआ है
तुम्हारा ही रंग
चाहो तो देख लो आकर एकबार
दरअसल ये रंग ही
अब मेरी पहचान बन चुकी है
अति सुंन्दर
sunder abhivyakti....
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