रविवार, 30 जून 2013

सुनील जाधव की कविता


   

सच बोलने की सजा
 

 1-

देखा मैनें झूट का आकार

पर्वत की तरह

ऊँचा और ऊँचा और ऊँचा

उसकी परछाई से

ढका गया सच

तडफ रहा था

बेबस विवश लाचार

और मजबूर

सह रहा था

अपने सच होने के

सच से

जो सच होकर भी

सच होने की सजा भुगत रहा  था





2-

सच बोलने की सजा

अक्सर मिलती हैं

जबान काट कर

या बदनाम कर के

सच कहीं

भयानक तस्वीर कों

सबके सामने उजागर   कर दे

इसीलिए सच के जन्म दाता कों

दीवाना पागल

की उपाधि दी  जाती हैं

ताकि झूट का

काला बर्तन

सही सलामत रहे

  3-



सच

सच ही होता हैं

वह मरता नहीं

मारने से धमकाने से

बदनाम करने से

या जबान काट देने से

झूट का काला बर्तन

सच के अविरल

प्रवाह से फुट ही जाता हैं

और वह दिखाता हैं

कालापन विशाल आकार में

जन- जन में

घृणा भर देगा वह

जन के मन - मन में 





पता -   महाराणा प्रताप हाउसिंग सोसाइटी

          हनुमान गड कमान के सामने

           नांदेड महाराष्ट्र  05 भारत

     चलभाष  09405384672

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