सोमवार, 13 जुलाई 2015

पुस्तक समीक्षा-बर्फ़ सी गर्मी

                                  
                            
       इस निर्दयस्त समय में जहाँ स्वार्थ और लोलुपता की आंधी चल रही हो, जहाँ गलाकाट स्पर्धाएं चल रही हों, सिर्फ़ धन बटॊरने के लिए नित नए फ़ंडॆ ईजाद किए जा रहे हों, जहाँ आचार-विचार और परंपराओं की धज्जियां उडाई जा रही हों, जहाँ आदमी के संवेदना-जगत को क्षत-विक्षत करते हुए उसे खण्डहर में तब्दील किया जा रहा हो,जहाँ खुदगर्जी, फ़रेब और औपचारिकता ही आदमी की पहचान बनती जा रही हो, जहाँ आदमी के जीवन के शाश्वत मूल्यों की जमीन लगातार छॊटी होती जा रही हो. शब्द-रूप,रस तथा गंध के संवेदनों, भावभूमि के मूल्यवर्ती अहसासों और क्रिया-कलापॊं से वह लगातार अजनवी बनता जा रहा हो. ऎसे कठिन समय में  राज हीरामन का कथा-संग्रह बर्फ़ सी गर्मी का आना शुभ संकेत तो है ही,साथ ही यह आशा भी बंधती है कि वे विलुप्त होती जा रही मानवता को बचाने के लिए जद्दोजहद करते  देखे जा सकते है. उनकी कहानियों को पढकर राहत मिलती है. वे एक नयी चेतना और ऊर्जा के साथ उन तमाम तरह के मकडजालों को काट फ़ेंकने में समर्थ दिखाई देते हैं. उनकी लेखनी में एक प्रकार की विकलता और छटपटाहट स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.

            मारीशस में जन्में कवि-कथाकार से मेरी मुलाकात  उन्हीं के देश मारीशस में हुई थी. आपके अब तक दस कविता संग्रह, तीन कहानी संग्रह, एक साक्षात्कार संग्रह, एक आलेख संग्रह प्रकाशित हुए है. अनेकानेक सम्मानॊ से सम्मानित होने के अलावा आपने चार किताबों का संपादन भी किया है. वर्तमान में आप महात्मा गांधी संस्थान के सृजनात्मक एवं लेखन विभाग में रिमझिम तथा वसंत पत्रिका के वरिष्ठ उप-संपादक हैं

            बर्फ़ सी गर्मी  में दस कहानियां हैं. बर्फ़ सी गर्मी तथा लेट अस ब्रेक कहानियां विदेशी पृष्ठ-भूमि पर लिखी गई कहानियाँ हैं. माँ-दाई-माँ, घर वह बडा, मर गया पर जिंदा था, मानवाधिर, साहिल, प्रेरणा, खेत सुमन के हो गए और धनराज. इन कहानियों  के किरदार, किरदारों की दशा-मनोव्यथा,आदि कहानियों की अपनी जमीन  मारीशस की है. 

            बर्फ़ सी गर्मी शीर्षक चौंकाता है. सहज ही मन में प्रश्नाकुलता पैदा होती है कि भला बर्फ़ में गर्मी कैसे हो सकती है.?. लेकिन जैसे-जैसे आप कहानी के भीतर उतरते हैं, तो पता चल  जाता है कि आखिर वह गर्मी किस प्रकार की थी. 

            उत्तरी व्हेल्स के एक छॊटे से शहर की कहानी है यह. इसमें एक अविवाहित पात्रा है,जिसका नाम मारगारेट है. उसका एक भाई है, जिसका नाम आंद्रे है. वह जानलेवा बीमारी में  ग्रसित एक अस्पताल में भरती है. वह रोज उससे मिलने जाती है. आंद्रे के दो बेटे मारिस और जान रील हैं,जो कुछ ही दूरी पर मानचेस्टर शहर में रहते हैं. पर अपने पिता को न कभी  शामारैल लोल्ड होम केयर में देखने आए और ना ही अस्पताल में. उसकी एक बेटी भी है मारिया. मारिया इसी शहर के दूसरे छॊर पर रहती है,कभी-कभी अपने बाप को देखने और   पूछताछ करने आ जाती है.


            वह दिन भी शीघ्र ही आ जाता है जब आंद्रे की मृत्यु हो जाती है. खबर मिलते ही मोरिस   और जान अपनी-अपनी पत्नियों और दो-दो युवा पुत्रों और पुत्र वधुओं के साथ आ पहुंचते हैं. जैसा कि वहाँ ईसाई धर्म प्रचलित है. उस धर्म के मुताबिक उसकी अंत्येष्टि की जाती है. बनाये गए  गढ्ढे में शव को उतारकर मिट्टी डाली जाती है. मिट्टी तब तक डाली जाती है,जब तक जमीन को समतल नहीं बना दिया जाता. इसके बाद धन्यवाद भाषण देने का रिवाज है. मारगारेट आंग्रे के बेटॊं से दो शब्द अपने पिता के बारे में कहने का आग्रह करती है. लेकिन वे हिम्मत नहीं जुटा  पाते. कहते भी तो क्या कहते? कहने के लिए कुछ भी तो नहीं था दोनो के पास. क्या वे यह कहते कि अपने पिता के जिंदा रहते हुए उन्होंने कभी उसकी परवाह नहीं की और न ही कभी  उससे मिलने आए?

            दोनो को आगे न बढता देख, मारगारेट जान के बेटे आनथनी को आगे करती है. आनथनी विश्वविद्यालय में जेनेटिक इंजिनियरिंग का छात्र था. बोलने में माहिर, निर्भिक, और न हीं किसी प्रकार की कोई झिझक थी उसमें. शब्दों का भण्डार था उसके पास. काफ़ी कुछ कहते  हुए और अंत में सभी के प्रति धन्यवाद देते हुए उसने कहा-एक गया पर सबको इकठ्ठा कर   गया. यही हमारे जीवन की शुरुआत है. अतः मृत्यु के बाद भी जीवन है इसके बाद सभी  बारी-बारी से गले मिलते हैं. मिलने से एक ऊर्जा उत्पन्न होती है और मन पर बरसों-बरस से जमी बर्फ़ पिघल-पिघल  कर आँखों के माध्यम से आँसू बन कर बहने लगती है.

      लेट अस ब्रेक इस कहानी की पृष्ठभूमि इंग्लैण्ड की है. डानियल अरबों-खरबों का मालिक है. पति बदलने में माहिर सुजन उसके जीवन में आती है. पांच साल तक वैवाहिक जीवन बीता चुकने के बाद एक दिन वह डानियल से कहती है=लेट अस ब्रेक.और वह उसे छॊडकर चली जाती है. घर में बरसों से काम कर रही मेरी का अचानक उसके जीवन में प्रवेश हो जाता है. इंगलैण्ड में किस तरह जीवन जिया जाता है, उसको उजागर करती चलती है यह कहानी.

      माँ-दाई-माँ... एक खुद्दार महिला के इर्दगिर्द घूमती कहानी है यह. व्यस्ततम जीवन यापन कर रहे एक वकील,जिसकी पत्नी का देहान्त हो गया है. सारे संस्कारों को निपटा चुकने के बाद जब वकील साहब अपने घर में बरसों से काम कर रही दाई को साडियाँ और पैसे देना चाहते हैं, तो वह दसियों साडियों में से केवल एक साडी और नोटॊं के पुलंदे में से एक नोट निकाल कर यह कहते हुए चल देती है -नहीं साहब ! मैं इस सबके लिए बहुत छॊटी हूँ

      मनोविज्ञानिक तरीके से आगे बढती कहानी मर गया पर जिन्दा था,दुखों से भयाक्रांत हो उठने वाले माला और गुलशन किस तरह से बागी हो उठते हैं मानवाधिकार, रागिनी की कमनीय काया से प्रभावित अभयानंद उसे अपनी कम्पनी में बडॆ-बडॆ अवसर उपलब्ध करवाता है, लेकिन जब वह उसे छॊड देता है, तो सहसा रागिनी किस तरह उसके लिए प्रेरणा बन जाती है अपने नाटकीय अंदाज से बढती कहानी आपको बांधे रखती है. हरिदेव और सुमन के अद्भुत चरित्र को आप कहानीखेत सुमन के हो गए में देख सकते हैं. एक पेन्शनर बाप धनराज खुद भूखों मरने पर विवश है, जबकि उसकी बेटी उसके पैसों पर मजे उडाती है,मार्मिक कहानी बन पडी है. कलम के धनी हीरामनजी ने भाषागत मुहावरों और लोकोक्तियों के माध्यम से कहानियों को प्रभावशाली बनाने में कोई कसर नहीं छॊडी है.

            अंत में मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ  इंदौर के डा. राकेश त्रिपाठीजी को, जिन्होंने श्री राज हीरामनजी के अनुरोध पर मुझे यह कहानी संग्रह बर्फ़ सी जमी गर्मी और काव्य संग्रह नमि आँखें मेरीसमीक्षार्थ भिजवाईं.

            मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में आपके अनेकानेक संग्रह प्रकाशित होंगे. निश्चित ही आपकी साहित्यिक यात्रा मारीशस और भारत को जोडॆ रखने में सेतुकी भूमिका का निर्वहन करेगी.
            एक सार्थक कहानी संग्रह मुझ तक भिजवाने के लिए पुनः आपका हार्दिक आभार.


समीक्ष्य पुस्तक - ‘  बर्फ़ सी गर्मी
लेखक - राज हीरामन                                           
संपर्क -                                     
 गोवर्धन यादव       
 103, कावेरीनगर,छिन्दवाडा(म.प्र.)480001                      
  (संयोजक म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति)                       
  09424356400

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