कविता
एक छोटी सी चिड़िया थी,
किसी आंगन की चहचहाती गुड़िया थी
सपनों का ताना बाना बुनती थी,
अरमानों का तिनका लकर
अलग अलग रंगो से
अपना प्यारा घोंसला सजाती थी
न जाने कब वो इक दिन
एक शिकारी का शिकार बन जाए
आँखो में आंसू छिपाए
दिल में अरमान दबाए
शिकारी से प्राण बचाकर
बस इतना कह कर रह गयी
कि मेरे मन की बात मेरे मन में रह गयी
न जाने अब किसका शिकार बनूं
यह डरा हुआ अरमान अपने दिल में छुपाए
यह सोचती हुई कि
अब कैसे अपने प्राण बचाएं
इतना सोच उड़ती हुई
कि एक अजनबी से मिल जाएं
सोच,जो कर सके मदद उसकी
शिकारी उसके प्राण बचाए
मन ही मन मुस्कराती हुई
सोचती हुई कि बच गए प्राण उसके
अचानक टूट गया सपना उसका
देख के वह बहुत घबरायी
कि मेरे मन की बात मेरे मन में रह गयी।
संपर्क -
आयुषी उनियाल
कक्षा 8 रा 0 इ0 का0 गौमुख
टिहरी
गढ़वाल ,
उत्तराखण्ड 249121
सहज व गंभीर कविता..बधाई……
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