1-
पुराने नोट बन गये खोट अब तो
कुर्ते की ज़ेब दे रही चोट अब तो
झूँठी देश-परिवेश की बातें सभी
ज़ेह़न में केवल बैठा वोट अब तो
कमाया है धन घपलों से जिन्होंने
हो रहे मुखर उनके होठ अब तो
नोट के बदले वोट लेने वाले सभी
मल रहे तेल कस रहे लंगोट अब तो
जो विरोधी थे कभी एक दूसरे के
सेक रहे एक ही तबे पर रोट अब तो
हस्र काले धन का देख-देख करके
'व्यग्र' भी हुआ है लोट-पोट अब तो
ममता सैनवाल की पेंटिंग
2-
बपौति समझ रखा है जिन्होंने इस ज़माने को
जाने लगा क्यूँ आदमी मेहनत से कमाने को
ठिठुरना धूँजना जिनकी मानो नियति बन चुका
मुफ़लिसी में है नहीं छत उनके सर छुपाने को
जिनकी हक़ीकत सारी सब लोग जानते हैं
उनके पास नहीं कुछ भी अपना बताने को
बहुत ठोकरें खाई है कंकरों से शिलाओं से
उसे अब ना रहा कोई यहाँ आज़माने को
पहनकर धर्म का चोला यहाँ बने सभी मौला
निकलते देखे हमने दूसरों के घर जलाने को
मैं ही नहीं हूँ 'व्यग्र' सारा जहां है आज
सब मुस्कराते हैं यहाँ केवल दिखाने को
संपर्क-
विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
कर्मचारी कॉलोनी,गंगापुर सिटी,
स.मा. (राज.)322201
मोबा0- 09549165579
मेल - vishwambharvyagra@gmail.com
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