यहां हम भी हां मे हां बस मिलाते रहे ,
उसकी औकात नहीं की बदजुबानी करे
बस हमी कुछ उसका हौसला बढ़ाते रहे ,
समंदर को क्या नाव चले या डूब जाए
वो पार हुए बस जो पतवार चलाते रहे,
उससे जियादा कौन खुश नसीब होगा
रोज़ जो मा - बाप की दुआएं पाते रहे ,
क्यूँ अब पुराने जख्मों को याद करते हो
तुम भी गीत गाओ हम भी गुनगुनाते रहें ,
शाख से गिरे पत्तों की वो क्यूँ फिक्र करे
जब उसी शाख में खूब नए पत्ते आते रहे ,
ये दुनिया है बहुत संभल कर चलना बच्चे
हिम्मत से डटे रहना, पैर न लड़खड़ाते रहे ,
दुश्मनी चाह कर भी हमसे न कर सका वो
जब भी मिले उससे हम बस मुस्कुराते रहे,
रात आयी, घर गया, चाँद रूठ के दुबका
हंस कर हम भी तारों का साथ निभाते रहे,
वो बुरा कहे या अच्छा ये उनका अंदाज़ है
अपनी तबीयत के हम दोस्त बनाते रहे ,
यकीनन एक दिन खूब हरियाली आएगी
हर दिन घर के पास एक बीज बोते रहे ,
उसे गुरूर है - रुपया है, गाड़ी है, नौकर है,
सब के सब यहां से खाली हाथ जाते रहे,
उसे गर्दन पकड़ कर पुलिस ले गयी है
शाम घर आया तो पड़ोसी बताते रहे ,
हश्र सब का यहीं एक सा होता है " नीर
"
बुरे कर्म लाख हम किसी से छुपाते रहें ।
बुरे कर्म लाख हम किसी से छुपाते रहें ।
स्थायी पता - गांव व पोस्ट - त्योरासी, परसपुर, जिला - गोंडा , उत्तर प्रदेश, पिन - 271504
वर्तमान पता
- रियाद सिटी, सऊदी अरब
मोबाइल - +96657243939
यथार्थ के धरातल पर लिखी कविताएं बधाई...
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