सोमवार, 1 मई 2017

अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’ की कविताएं




       दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान ,कादम्बनी,वागर्थ ,बया ,इरावती प्रतिलिपि डॉट कॉम , सिताबदियारा ,पुरवाई ,हमरंग आदि में  रचनाएँ प्रकाशित
2001  में  बालकन जी बारी संस्था  द्वारा राष्ट्रीय  युवा कवि पुरस्कार
2003   में बालकन जी बारी संस्था   द्वारा बाल -प्रतिभा सम्मान 
आकाशवाणी इलाहाबाद  से कविता , कहानी  प्रसारित
‘ परिनिर्णय ’  कविता शलभ  संस्था इलाहाबाद  द्वारा चयनित


मजदूर दिवस पर प्रस्तुत है अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’ की कविताएं

                                                          चित्र गूगल से साभार

1-शायद..!

आओ ! कुछ पल यूँ भी गुजारें
किन्ही कर्मरत खुरदुरे  हाथों  को
बाँध हथेलियों में अपनी
उसके कुछ दर्द भुला दें
ठंढे चूल्हे की सहमती साँसों में
सुलगा दें , थोड़ी जीवन-बयार
साँझ, थके -हारे लौटते
खाली झोले से बाप के
प्रश्न करते मासूम चेहरों को दुलरा,
लें थोड़ा निहार 
बचा लें जलने से ,टूटने ,गलने से
आँखों की भट्ठियों में सिंकती
बनती – बिगड़ती , रोटियों की तस्वीर
देखा जिन आँखों ने स्वप्न में
या सुन रक्खी किसी की जुबानी 
बचाते हुए सूखती हलक का पानी
सोचते हैं सिर्फ,
कुछ स्वादों की ताबीर
उबलते दूध में
चावल और थोड़ी - सी चीनी डालने से
शायद ........
बन जाती है खीर |

2- मैं श्रम हूँ !

मैं श्रम हूँ
अनवरत चलतीं  मेरे हाथों की रेखाएं
बदलने को अनगिनत
जड़ हो चुकी परिभाषाएं
सही अर्थों में गिराते हुए पसीने की धार
दिख जाता हूँ मुस्कुराता, हाल - बेहाल
कहीं गोदान का होरी , कहीं हजारीपाल #
टूटता नही जो प्रकृति के कोप से
घिघियाता नही जो सुखों के लोप से
तलाश लेता हूँ बुझी राखों से
चिंगारियों की खेप
जीवन क्रम हूँ
मैं श्रम हूँ
पूजता हर मन ,सृष्टि का कन- कन
समिधा -सा परमार्थ में जल जाता हूँ
कुचला ,छला ,तोड़ा, बिखेरा मन द्वार
फिर भी उठ जाता हूँ बार - बार
लिए संभावनाएं अपार
सम्पूर्ण जगत का उठाये भार
मत समझना  भ्रम हूँ
मैं श्रम हूँ |
#
(सिटी ऑफ़ जॉय फिल्म का एक किरदार )
 3-कुल्हड़ 

सोख लेता अतिरिक्त पानी
गढ़ने को चाय का स्वाद
सोंधी फुहार लिए
होंठों पर झूमता
कुम्हार की चाक बैठ
ज़िन्दगी -सा घूमता
हर थाप पर संवारता
अपना स्वरुप
पंक्तियों में सजा खूब , गंठियाता धूप 
अग्निशिखा में बन कुंदन  रूप
आओ ! किसी दिन ढाबे पर बैठ
दूर तक उड़ेली हरीतिमा को
आँखों से पियें
बादलों की रुई भरकर हाँथों में ,
खेत निहारते माटी के लाल – सा
नंगे पाँवों धरती को छुएं 
आओ कभी कुल्हड़ में चाय पियें !
कुम्हार के श्रम को चूमते हुए
माटी की पावन सुगंध, जियें |


संपर्क-
अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’  
खेमीपुर, अशोकपुर , नवाबगंज 
गोंडा , उत्तर - प्रदेश
मोबाईल न. 8826957462     
mail-  singh.amarpal101@gmail.com

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