शनिवार, 15 दिसंबर 2018

जब भी मिल का सायरन बजता था : सुरेन्द्र कुमार




       04 अगस्त 1972 को अहमदपुर जिला सहारनपुर उ0प्र0 में जन्में सुरेन्द्र कुमार ने हाल के वर्षों में गजल विधा में एक अलग मुकाम हासिल किया है। आम आदमी की पीड़ा को बड़े सिद्दत से महसूस किया है और उसे अपनी गजलों में अद्भुत तरीके से पिराने की भरपूर कोशिश की है या इसको यूं कहे कि कवि ने जिस यथार्थ को जिया एवं भोगा है को अपनी गजलों में जिवंत कर दिया है।
      कवि इस दुर्दिन समय में भी आशा की किरण खोज लेता है चाहे उसे कितनी भी परेशानी क्यों न उठानी पडे। कवि की आंतरिक पीड़ा गजलों के माध्यम से आम पाठक के मन में गहरे तक पैठ कर रह-रह कर उद्वेलित व बेचैन करती है, जिसकी बानगी समझकर गया एक फकीर कोई  एवं जब भी मिल का सायरन बजता था  में बखूबी देखा जा सकता है। कवि ने सरल शब्दों में गझीन बिम्बों से गजलों की नई जमीन तैयार की है जिस पर आने वाले दिनों में गजलों की फसल लहलहलाने की सम्भावना और मजबूत हुई है। इनकी गजलों की एक-एक शब्दों और पंक्तियां की आवाजें बहुत दूर तक और बहुत दिनों तक गुंजती रहेंगी ऐसी उम्मीद है हमें। पुरवाई में स्वागत है युवा कवि सुरेन्द्र कुमार का ।

1-जब भी मिल का सायरन बजता था


जब भी मिल का सायरन बजता था
आंगन में पीपल का पत्ता झरता है

आखिर वो जंगल उजाड़ दिया जिसमें
मेरे मन का हिरन,कुलांचे भरता था

जिसके लिए मैं दर-दर भटकता था
वो दरीचा आंगन में खुलता था

मैंने उस राह पर चलना छोड़ दिया
जिसका हर मोड़ ,तबाही पर मुड़ता था

बरसों उस ग़ज़ल  की बहुत तारीफ़ हुई
जिसका हर शेर,ज़िदगी से जुड़ता था।


2- समझाकर गया एक फकीर कोई


समझाकर गया एक फकीर कोई
नहीं बेचना अपना जमीर कोई

ज़िन्दगी की भट्ठी में तपना पड़ता है
नहीं बदलती ,यूं ही,तकदीर कोई

न ठहरता,जब मन के पर लग गये हों
चाहे बांध ले, कितनी जंजीर कोई

तन पे झीनी चादर,मन बेबाक-सा
सदियों में पैदा होता , कबीर कोई

ढोता हूं पहाड़, ज़िदगी की शाम तक
अब कैसे करेगा काम, शरीर कोई।

सम्पर्क -
अहमदपुर जिला सहारनपुर उ0प्र0
मोबा0- 088658 52322

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