सोमवार, 16 मार्च 2020

दुःख की गली में रौशनी : राजेंद्र ओझा


  लघुकथा

         करीब पांच मिनट  साथ रहे हम। एक नाटक देख कर मैं लौट रहा था घर की तरफ। सदर बाजार के अंबादेवी मंदिर तिराहे पर एक बुजुर्ग ने मुझे रोककर आगे छोडने का अनुरोध किया । पैर रखने के लिए  फुट स्टेप खोलता देख उन्होंने कहा - बेटा, एक तरफ  ही बैठ पाऊँगा मैं। 
        ठीक है, कह, बैठने का कहा मैंने।
         उन्होंने मुझे टिल्लू चौक तक छोडने का निवेदन किया।
   उन्होंने मुझसे पूछा- आप कहाँ जा रहे हैं। 
    मैंने कहा - कुशालपुर। 
     तब तो  बेटा मुझे पंकज उद्यान के पास छोड देना- बुजुर्ग ने कहा।
   अंबा देवी मंदिर से पंकज उद्यान तक के इस लगभग पांच मिनट के रास्ते में दुःख शब्द रूप  से लेकर आंसू रूप तक बहते रहा।इस भीगने में सूखना कहीं नहीं था।
    बुजुर्ग का नाम तो मुझे  याद नहीं  लेकिन सरनेम तो 'बजाज' ही बताया था उन्होंने । जहाँ छोडा था उसके पास ही बंधवापारा में वे रहते थे।
   घर तक छोड देता हूँ- मैंने कहा।
  नहीं बेटा, यहाँ एक बहन जी के घर से टिफ़िन लूंगा और फिर घर पैदल ही चले जाऊंगा।
   करीब 70-75 वर्ष के बजाज जी अपने भाई के यहाँ गये थे और लौटते में  गलती से अंबादेवी मंदिर के पास उतर गये।
   उनके परिवार के बाबत  जानने की चाह में मैंने उनसे जब बात की तो दुःख, जो अभी तक बंधा था बहने लगा। यह बहना एक बाढ की तरह था, जिसमें सुख की इच्छा की कई-कई एकड जमीन डूब गयी थी।
   बडा बेटा इन्कम टैक्स का वकील था। ठीक चलता था उसका काम। अचानक ही उसकी तबियत खराब हो गई और डाक्टर पहुंचता उसके पहले ही वह चल बसा। बहु साथ देने को तैयार नहीं थी। खाना भी नहीं बनाती थी। रात दो - तीन बजे तक फोन से बात करती रहती थी किसी से। पूछता था तो गुस्सा हो जाती थी। बोलती, तेरे को क्या है इससे। सोये रह चुपचाप।  इस बूढ़े पर हाथ भी उठा दिया उसने तो। हार कर उसको जाने का बोल दिया। चली गई वो।   छोटा बेटा लाखे नगर की एक दूकान मे काम करता है। प्राइवेट।  थक जाता है बेचारा, उसको कैसे बोलूं खाना बनाने का।   गरीब  को कौन पूछता है बेटा। तुमने यहाँ तक छोड दिया। धन्यवाद बेटा, भगवान भला करे तुम्हारा। वे रो रहे थे। जीवन में हार से उपजा रोना था यह। निराशा और दुर्बलता का रोना था यह। कहीं तो रूकना चाहिए यह रोना।
      रोते रोते ही वे गली मे आगे बढ गये।  गली में अंधेरा था। मैंने हेड लाइट से गली को रौशन किया। सम्हल कर चलते बजाज जी इस उजाले मे कुछ तेज चलने लगे।
    ऐसी ही किसी रौशनी को वहीं ठहर जाना चाहिए। 


संपर्क -
राजेंद्र ओझा 
बंजारी मंदिर के पास 
पहाड़ी तालाब के सामने 
कुशालपुर 
रायपुर (छत्तीसगढ)
492001
मो.नं. 09575467733
         08770391717

  

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