श्री सुशांत सुप्रिय हिन्दी,
पंजाबी
और अंग्रेज़ी में लिखते हैं. हत्यारे
, हे राम , दलदल इनके
कुछ कथा संग्रह हैं, अयोध्या से गुजरात तक और इस रूट की
सभी लाइनें व्यस्त हैं इनके काव्य
संकलन. इनकी कई कहानियाँ और कविताएँ विभिन्न भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं. अनेक कहानियाँ कई राज्यों
के स्कूलों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं,
कविताएँ
पूणे विश्व-विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल हैं और विभिन्न
विश्वविद्यालयों के शोधार्थी इनकी
कहानियों पर शोध कर रहे हैं. भाषा
विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा इनकी रचनाएँ पुरस्कृत की गई हैं. कमलेश्वर-कथाबिंब कहानी
प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार
दो वर्ष प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किये गए.
कहानी : बदबू - सुशांत सुप्रिय
रेल-यात्राओं का भी अपना ही मज़ा
है । एक ही डिब्बे में पूरे भारत की सैर
हो जाती है । ' आमार सोनार बांग्ला ' वाले बाबू
मोशाय से लेकर ' बल्ले-बल्ले '
वाले
सरदारजी तक , ' वणक्कम् ' वाले तमिल भाई से लेकर ' केम
छो ' वाले गुजराती सेठ
तक -- सभी से रेलगाड़ी के उसी डिब्बे में मुलाक़ात हो जाती है । यहाँ तरह-तरह के लोग मिल जाते हैं । विचित्र क़िस्म के अनुभव
हो जाते हैं ।
पिछली सर्दियों में मेरे साथ ऐसा
ही हुआ । मैं और मेरे एक परिचित विमल
किसी काम के सिलसिले में राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली से रायपुर
जा रहे थे । हमारे सामने वाली सीट पर फ़्रेंचकट दाढ़ीवाला एक व्यक्ति अपनी पत्नी और तीन साल के बच्चे के साथ यात्रा कर रहा
था । परस्पर अभिवादन हुआ । शिष्टाचारवश मौसम
से जुड़ी कुछ बातें हुईं । उसके अनुरोध पर हमने
अपनी नीचे वाली बर्थ उसे दे दी और हम दोनो ऊपर वाली बर्थ पर चले आए ।
मैं अख़बार के पन्ने पलट रहा था
। तभी मेरी निगाह नीचे बैठे उस व्यक्ति पर
पड़ी । वह बार-बार हवा को सूँघने की कोशिश करता , फिर नाक-भौंह सिकोड़ता ।
उसके
हाव-भाव से साफ़ था कि उसे किसी चीज़ की बदबू आ रही थी । वह रह-रह कर अपने दाहिने हाथ से अपनी नाक के इर्द-गिर्द की हवा को उड़ाता ।
विमल भी यह सारा तमाशा देख रहा था । आख़िर
उससे रहा नहीं गया । वह पूछ बैठा -- " क्या हुआ
, भाई
साहब ? "
" बड़ी बदबू आ
रही है । " फ़्रेंचकट दाढ़ीवाले उस व्यक्ति ने बड़े चिड़चिड़े स्वर में कहा ।
विमल ने मेरी ओर प्रश्नवाचक
दृष्टि से देखा । मुझे भी कुछ समझ नहीं आया ।
मैंने जीवन में कभी यह दावा नहीं
किया कि मेरी नाक कुत्ते जैसी है । मुझे और
विमल -- हम दोनो को ही कोई दुर्गन्ध नहीं सता रही थी । इसलिए , उस
व्यक्ति के हाव-भाव हमें कुछ अजीब से लगे । मैं फिर अख़बार पढ़ने में व्यस्त हो गया । विमल ने भी अख़बार का एक पन्ना उठा लिया ।
पाँच-सात मिनट बीते होंगे कि
मेरी निगाह नीचे गई । नीचे बैठा व्यक्ति अब
बहुत उद्विग्न नज़र आ रहा था । वह चारो ओर टोही निगाहों से देख रहा था । जैसे बदबू के स्रोत का पता लगते ही वह कोई
क्रांतिकारी क़दम उठा लेगा ।
रह-रहकर उसका हाथ अपनी नाक पर चला जाता । आख़िर उसने अपनी पत्नी से कुछ कहा । पत्नी ने बैग में से ' रूम-फ़्रेश्नर
' जैसा
कुछ निकाला और हवा में चारो ओर
उसे' स्प्रे
' कर
दिया । मैंने विमल को आँख मारी । वह मुस्करा दिया । किनारेवाली
बर्थ पर बैठे एक सरदारजी भी यह सारा तमाशा हैरानी से देख रहे थे ।
चलो , अब शायद इस
पीड़ित व्यक्ति को कुछ आराम मिलेगा -- मैंने मन-ही-मन सोचा ।
पर थोड़ी देर बाद क्या देखता हूँ
कि फ़्रेंचकट दाढ़ी वाला वह उद्विग्न व्यक्ति
वही
पुरानी हरकतें कर रहा है । तभी उसने अपनी पत्नी के कान में कुछ कहा । पत्नी परेशान-सी उठी और हमें सम्बोधित करके कहने लगी ,
" भाई
साहब , यह जूता किसका
है ? इसी में से बदबू आ रही है । "
जूता विमल का
था । वह उत्तेजित स्वर में बोला , " यहाँ पाँच-छह जोड़ी जूते पड़े हैं । आप यह कैसे कह सकती हैं कि इसी
जूते में से बदबू आ रही है । वैसे भी ,
मेरा
जूता और मेरी जुराबें , दोनों नई हैं और साफ़-सुथरी हैं । "
इस पर उस
व्यक्ति की पत्नी कहने लगी , " भाई साहब , बुरा
मत मानिएगा । इन्हें बदबू सहन नहीं होती ।
उलटी आने लगती है । आप से गुज़ारिश करती
हूँ , आप अपने जूते पालिथीन में डाल दीजिए । बड़ी मेहरबानी होगी ।
"
विमल ग़ुस्से और असमंजस में था ।
तब मैंने स्थिति को सँभाला ," देखिए ,
हमें
तो कोई बदबू नहीं आ रही । पर आप जब इतनी ज़िद कर रही हैं तो यही
सही
।"
बड़े बेमन से विमल ने नीचे उतर
कर अपने जूते पालिथीन में डाल दिए ।
मैंने सोचा -- चलो
, अब
बात यहीं ख़त्म हो जाएगी । पर थोड़ी देर
बाद वह व्यक्ति उठा और मुझसे कहने लगा , " भाई साहब ,
मुझे
नीचे अब भी बहुत बदबू आ रही है । आप नीचे आ
जाइए । मैं वापस ऊपरवाली बर्थ पर जाना चाहता
हूँ । "
अब मुझसे नहीं रहा गया । मैंने
कहा , " क्या आप पहली बार रेल-यात्रा
कर रहे हैं ? भाई साहब , आप अपने घर के ड्राइंग-रूम में नहीं बैठे हैं । यात्रा में कई तरह की गंध आती ही हैं । टॉयलेट के
पास वाली बर्थ मिल जाए तो वहाँ की दुर्गन्ध आती
है । गाड़ी जब शराब बनाने वाली फ़ैक्ट्री के
बगल से गुज़रती है तो वहाँ की गंध आती है । यात्रा में सब सहने की आदत डालनी पड़ती है । "
विमल ने भी धीरे से कहा ,
" इंसान
को अगर कुत्ते की नाक मिल जाए तो बड़ी मुश्किल होती है ! "
पर उस व्यक्ति ने शायद विमल की
बात नहीं सुनी । वह अड़ा रहा कि मैं नीचे आ जाऊँ और वह ऊपर वाली बर्थ पर ही जाएगा
।
मैंने बात को और बढ़ाना ठीक नहीं
समझा । इसलिए मैंने ऊपर वाली बर्थ
उसके
लिए ख़ाली कर दी । वह ऊपर चला गया ।
थोड़ी देर बाद जब उस व्यक्ति की
पत्नी अपने बड़े बैग में से कुछ निकाल रही थी तो वह अचानक चीख़कर पीछे हट गई ।
सब उसकी ओर देखने लगे ।
" क्या हुआ ?
" ऊपर
वाली बर्थ से उस व्यक्ति ने पूछा ।
" बैग में मरी
हुई छिपकली है ।" उसकी पत्नी ने जवाब दिया ।
यह सुनकर विमल ने मुझे आँख मारी
। मैं मुस्करा दिया ।
वह व्यक्ति
खिसियाना-सा मुँह लिए नीचे उतरा ।
" भाई साहब ,
बदबू
का राज अब पता चला ! " सरदारजी ने उसे छेड़ा । वह और झेंप गया ।
ख़ैर । उस
व्यक्ति ने मरी हुई छिपकली को खिडकी से बाहर फेंका ।
फिर वह बैग में से सारा सामान निकाल कर उसे डिब्बे के अंत में ले जा कर झाड़ आया ।
हम
सबने चैन की साँस ली । चलो , मुसीबत ख़त्म हुई -- मैंने सोचा ।
पैंट्री-कार
से खाना आ गया था । सबने खाना खाया । इधर-उधर की बातें हुईं । फिर सब सोने की
तैयारी करने लगे ।
तभी मेरी
निगाह उस आदमी पर पड़ी । उद्विग्नता की रेखाएँ उसके चेहरे
पर लौट आई थीं । वह फिर से हवा को सूँघने की कोशिश कर रहा था ।
" मुझे अब भी
बदबू आ रही है ... ", आख़िर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उसने कहा
।
" हे भगवान !
" मेरे मुँह से निकला ।
यह सुनकर
विमल ने मोर्चा सँभाला , " भाई साहब , मेरी बात ध्यान से सुनिए । बताइए , हम किस युग
में जी रहे हैं ? यह कैसा समय है ? हम कैसे
लोग
हैं
? "
" क्या मतलब ?
" वह
आदमी कुछ समझ नहीं पाया ।
" देखिए ,
हम
सब एक बदबूदार युग में जी रहे हैं । यह समय बदबूदार
है । हम लोग बदबूदार हैं । यहाँ नेता भ्रष्ट हैं , वे बदबूदार
हैं । अभिनेता अंडरवर्ल्ड से मिले हैं ,
वे
बदबूदार हैं । अफ़सर घूसखोर हैं , वे बदबूदार
हैं । दुकानदार मिलावट करते हैं , वे बदबूदार हैं । हम और आप झूठ बोलते हैं , दूसरों का हक़ मारते हैं , अनैतिक
काम करते हैं -- हम सभी बदबूदार हैं
। जब यह सारा युग बदबूदार है , यह समय बदबूदार है , यह
समाज बदबूदार है , हम लोग बदबूदार
हैं , ऐसे में यदि आपको अब भी बदबू आ रही है
तो
यह स्वाभाविक है । आख़िर इस डिब्बे में हम बदबूदार लोग ही तो बैठे हैं ...।
"
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सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014 ( उ. प्र . )
मो:
08512070086
ई-मेल: sushant1968@gmail.com