बिहार के खगड़िया जिले में 12 जनवरी 1962 को जन्में कैलाश झा किंकर ने परास्नातक के साथ एल0 एल 0बी0 भी किया है।अब तक देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनकी कविताओं एवं गजलों का प्रकाशन हो चुका है।इनकी प्रकाशित कृतियों में- संदेश , दरकती जमीन, चलो पाठशाला सभी कविता संग्रह कोई कोई औरत खण्ड काव्य हम नदी के धार में, देखकर हैरान हैं सब ,जिंदगी के रंग है कई सभी गजल संग्रह।
हिंदी गजल को आम लोगों की बोली भाषा में कह देना ही नहीं वरन सरल शब्दों को हथियार की तरह प्रयोग करना किंकर को समकालीन रचनाकारों से विशिष्ठ बनाती हैं। अपने देश को दागदार बनाने, लूटने खसोटने एवं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लोगों की ठीक ठाक पड़ताल करते हैं किंकर।इनकी गजलें आशा की नई किरन दिखाती हैं जो देर तक हमें आलोकित करती रहेंगी।
संपादन-कौशिकी त्रैमासिक और स्वाधीनता संदेश वार्षिकी ।
कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें -
1-
वो अन्धकार में बैठे
जो इन्तजार में बैठे।
हिम्मत जुटा न पाए जो
अब भी कछार में बैठे।
गाँवों का आँकड़ा लेते
ए. सी. की कार में बैठे।
बद-वक्त कुंडली मारे
जीवन की धार में बैठे।
विश्वास हो न पाता है
सचमुच बिहार में बैठे।
2-
उजाले का वो जरिया ढूँढ़ता है
वो कतरा में भी दरिया ढूँढ़ता है।
गई है माँ कमाने खेत उसकी
वो बच्चा घर में हड़िया ढूँढ़ता है।
न मीठी बात में आना कभी तुम
अगर सामान बढ़िया ढूँढ़ता है।
पला जो गाँव में बच्चा हमारा
शहर में बाग-बगिया ढूँढ़ता है।
नहीं सुनता यहाँ कोई किसी की
तू दिल्ली में खगड़िया ढूँढ़ता है।
संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204
मोबा0.09430042712,9122914589
achchhi gajalen.bahut bahut badhai...
जवाब देंहटाएंक्या बात कही है आपने !......
जवाब देंहटाएंगाँवों का आँकड़ा लेते
ए. सी. की कार में बैठे।