इंटर
की पढाई कर
रहे गौरव सजवाण
का जन्म उत्तराखण्ड में टिहरी जनपद के
पलेठी नामक गांव
में 25 जुलाई1996 को
एक किसान परिवार में हुआ।
इनकी
कहीं भी प्रकाशित होने वाली पहिलौठी कविता है। वैसे
पुरवाई पत्रिका का उद्देश्य बच्चों की रचनाधर्मिता को बढ़ावा देना
है। चाहे इनकी
रचनाओं का स्वाद
कच्चापन एवं कसैलापन ही क्यों न
हो। इसके पहले
हम बिजेन्द्र सिंह एवं
मनवीर सिंह नेगी
की कविताएं पढ़वा चुके
हैं। जिंदगी कहने और
न कहने के
बीच कैसे गुजरती है। गौरव सजवाण
की कविताओं में बखूबी
महसूसा जा सकता
है।
गौरव सजवाण की कविता
बहती हवाओं को
बलखाती नदियों को
नीले समन्दर को
अनमापे आसमान को
खड़ी चट्टान को
फैले मैदान को
सूरज की किरनों को
चांद की अंजोरिया को
टिमटिमाते तारों को
चक्कर लगाते ग्रहों को
कुछ नहीं कहा
जा सकता
कुछ कहा जा
सकता है तो
सिर्फ अपनी बुराइयों को
दूसरों की भलाइयों को
किसानों की मेहनत
को
लहलहाते खेतों को
चींटियों की एकता
को
बगुले के ध्यान
को
कुत्ते की नींद
को
गिलहरी के साहस
को
और फिर चलती
है जिंदगी
इसी कहने और
न कहने के
बीच।
achchhi kavita.badhai..
जवाब देंहटाएंवाह क्या रचना है !.....
जवाब देंहटाएंकिसानों की मेहनत को
लहलहाते खेतों को
चींटियों की एकता को
बगुले के ध्यान को
कुत्ते की नींद को
गिलहरी के साहस को
और फिर चलती है जिंदगी
इसी कहने और न कहने के बीच।