मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें


 



















कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें
1

रात लाएगी सहर
आँख क्यों करते हो तर।
कैसे ना उम्मीद में
जिन्दगी होगी बसर।   
बढ़ सदा बेखौफ हो
दिल में रख बिल्कुल न डर।
कल तुम्हें है झूमना
पा के खुशियों की खबर।
टोकते रहने से भी
कुछ न कुछ पड़ता असर।

2

तुम नदी की धार में पतवार बिन   
जंग मुश्किल जीतना हथियार बिन।   
खूब उत्पादन हुआ पर देखिए
सड़ रहा है माल अब बाजार बिन।   
साथ चलती हैं कई मजबूरियाँ
राह कटती हैं नहीं उदगार बिन।   
खौफ से है हर तरफ खामोशियाँ
रोग बढ़ता जा रहा उपचार बिन।   
बज़्म में आके हुआ एहसास यह       
दिल तड़पता है यहाँ दिलदार बिन।

3
      
दो घड़ी के लिए ठहर जाएँ
फैसला आज आप कर जाएँ।

रात पहले ही हो चुकी काफी
अब अँधेरों में हम किधर जाएँ।

दे चुके हैं जुबान हम सबको
इस तरह अब नहीं मुकर जाएँ।

हम यहाँ हैं, सँभाल लेंगे सब
आप निश्चिन्त हो के घर जाएँ।

बात मेरी भी आप रक्खेंगे
राजधानी तरफ अगर जाएँ।
   
संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204

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