बुधवार, 18 दिसंबर 2013

अनवर सुहैल की कविता



       09 अक्टूबर 1964  को छत्तीसगढ़ के जांजगीर में जन्में अनवर सुहैल जी के अब तक दो उपन्यास , तीन कथा संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कोल इण्डिया लिमिटेड की एक भूमिगत खदान में पेशे से वरिष्ठ खान प्रबंधक हैं। संकेत नामक लघुपत्रिका का सम्पादन भी कर रहे हैं।

अनवर जितने सहज-सरस साहित्यिक हैं उतने ही सहज-सरस इंसान भी। उनसे मिलने या बात करने वाला कोई भी व्यक्ति उनके मृदुल व्यवहार का कायल हुए बिना नहीं रह कता है।


 प्रस्तुत है यहां उनकी  कविता


1-

उन्हें विरासत में मिली है सीख
कि देश एक नक्शा है कागज़ का
चार फोल्ड कर लो
तो रुमाल बन कर जेब में जाये

देश का सारा खजाना
उनके बटुवे में है
तभी तो कितनी फूली दीखती उनकी जेब
इसीलिए वे करते घोषणाएं
कि हमने तुम पर
उन लोगों के ज़रिये
खूब लुटाये पैसे
मुठ्ठियाँ भर-भर के
विडम्बना ये कि अविवेकी हम
पहचान नही पाए असली दाता को

उन्हें नाज़ है कि
त्याग और बलिदान का
सर्वाधिकार उनके पास सुरक्षित है
इसीलिए वे चाहते हैं
कि उनकी महत्वाकांक्षाओं के लिए
हम भी हँसते-हँसते बलिदान हो जाएँ
और उनके ऐशो-आराम के लिए
त्याग दें स्वप्न देखना...
त्याग दें प्रश्न करना...
त्याग दें उम्मीद रखना.....

क्योंकि उन्हें विरासत में मिली सीख
कि टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं से
कागज़ पर अंकित
देश एक नक्शा मात्र है....



सम्पर्क: टाईप 4/3, ऑफीसर्स कॉलोनी, बिजुरी
       जिला अनूपपुर .प्र.484440
              फोन 09907978108

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