शुक्रवार, 6 मार्च 2015

जयकृष्ण राय तुषार की कविताएं






होली की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ प्रस्तुत है कवि मित्र जयकृष्ण राय तुषार की कविताएं-

आम  कुतरते हुए सुए से 


आम कुतरते हुए सुए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |

गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेशी की वही पुरानी 
आदत है तरसाने की ,
उसकी आंखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |

इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले ,पकड़कर 
हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |

चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रूमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर बांचेंगे 
कविता शमशेर की |

फूलों में रंग रहेंगे ....
जब तक
 तुम साथ रहोगी
फूलों में रंग रहेंगे ,
 जीवन का
 गीत लिए हम
 हर मौसम संग रहेंगे |

 जब तक
 तुम साथ रहोगी
मन्दिर में दीप जलेंगे ,
उड़ने को
नीलगगन में
सपनों को पंख मिलेंगे ,
 तू नदिया
हम मांझी नाव के
 धारा के संग बहेंगे |

 जब तक
तुम साथ रहोगी
एक हंसी साथ रहेगी ,
 मुश्किल
यात्राओं में भी
खुशबू ले हवा बहेगी ,
 जब तक
यह मौन रहेगा
अनकहे प्रसंग रहेंगे |

 तुमसे ही
शब्द चुराकर
लिखते हैं प्रेमगीत हम ,
 भावों में
डूब गया मन
उपमाएं हैं कितनी कम ,
 तोड़ेंगे वक्त की कसम
तुमसे कुछ आज कहेंगे |




 साभार-छान्दसिक अनुगायन

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