हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कहानीकार विक्रम सिंह
की कई कहानियों को इस ब्लाग में पढ़ चुके हैं। इनकी चर्चित लम्बी कहानी बद्दू की आज दूसरी किस्त। यह कहानी मंतव्य में प्रकाशित हो
चुकी है।
तारकेश्वर का गणित
दरअसल सिर्फ पलटन की ही नहीं गाँव में
और भी कई लोगो से तारकेश्वर ने खेत खरीदा
था। ऊपर वाले का गणित नहीं था यह तो तारकेश्वर
का गणित था कि जमीन अचल सम्पत्ति होती है। जब भी जायेगी ज्यादा पैसे देकर
जायेगी। यह जितनी पुरानी होगी इसका दाम बढ़ता जायेगा। जब जीवन में नौकरी चाकरी नहीं
रहेगी खेती कर खाया जायेगा। सही मायने में
अपने बेटे मृत्युंजय की उन्हे बहुत चिंता थी। क्योंकि बेटा पढ़ने लिखने में
कमजोर तो था ही साथ में एक नम्बर का खुरापाती भी था। वह किसी की जल्दी बात सुनता
नहीं था। जलते तवे की तरह वह हमेशा गुस्से में रहता था। ग्रेजुऐसन पूरी करने के
बाद कहीं नौकरी मिल नहीं रही थी। तारकेश्वर
हमेशा यही सोचते जब अनुकम्पा पर नौकरी हो रही थी तब बेटे की उम्र ही छोटी थी अब जब बेटे की नौकरी करने का वक्त आया
तो सरकार ने अनुकम्पा पर नौकरी देना बंद कर दिया था। जिस दिन भी दोबारा अनुकम्पा
पर नौकरी मिलना शुरू होगी उस दिन ही बेटे को नौकरी दे देंगे। मगर वह यह जानते थे
कि यह बस एक स्वप्न है जो कभी पूरा नहीं होगा। क्योंकि वह जानते थे आखिर उसके
जोडीदार सब भी तो इस दिन का ही इंतजार कर रहे हैं। फिर सरकार किस किस को नौकरी
देगी। कुल मिला जुलाकर नौकरी अब भेड़ और गधो को नहीं मिलती थी। नौकरी अब होनहार अर्थात लोमड़ी
की तरह चालाक लोगों को ही मिलती है। हाँ अगर कोलियरी में किसी की नौकरी हो रही थी।
वह भी उन किसान भाई की जिसकी जमीन के नीचे सरवर से कोयला मिल जा रहा था।
कुल बात की एक बात थी अब
तो हर कोई यही सोच रहा था। खेत ऊपर से चाहे उपजाऊ हो या ना हो ,सोना उगले या ना उगले मगर अंदर में काला हीरा होना चाहिये। पैसे भी मिलेगे और
नौकरी भी। कुछ तो ऐसी खण्डहर जमीन थी जहाँ कभी अंग्रेजो ने कोयला निकाला था। उस जमीन
सें भी गरीब ,माजी ,डोम ने अपने कोदाल ,फावड़ा और सबलो से उस जमीन को खुद कर
कोयला निकालना शुरू कर दिया था। देखते ही देखते यही काम गाँव के कई किसान भाईयो ने
भी अपनी जमीन को खोदना शुरू कर दिया। क्योंकि उन्हें भी पता चला कि जमीन के अंदर ही
अंदर सुरंग तैयार होने लगे है। हर तरफ बस साबल ,कोदाल ,कोयले की झुडी टोकरी दिखने लगा था।
लोग बाग बैलो की जगह ट्रैक्टर ट्राली खरीदने लगे थे। जिनके पास बैल रहे उन लोगो ने
इसे कोयले की बैल गाड़ी बना डाला था। इंट भट्टो से लेकर फैक्ट्ररियों तक फिर कई
तरफ साइकिल के डंडो के बीच कोयले के बोरो को भर कर ले जाते हुए देखा जाने लगा। हर
बेरोजगार गरीब के लिये यह एक रोजगार की तरह हो गया। सरकार इस तरह अपनी सम्पत्ति का
गबन होता देख पुलिस प्रसाशन के व्दारा रोकने की कोशिश करने लगी। जब पुलिस आई तो
देखते ही देखते कोल माफियायों की फौज तैयार हो गई। आधे से ज्यादा किसान मजदूर कोल
माफिया बन गये। अंत में सरकार भी बोट बैंक की खातिर चुप हो गई। पुलिस को बैग भर-भर
नोटो की गड्डी मिलने लगी। यहाँ के लोग कोयले से सने काले जैसे खुद कोयला हो गये
हो। अलग ही प्रजाति के दिखने लगे। तारकेश्वर
का लड़का कुछ काम ना कर इधर-उधर भटक रहा था तो उसने एक दिन यह सोचा की क्यों
ना गाँव भेज दिया जाये। अब आखिर इतनी जमीन का करेगे क्या कम से कम खेती तो करवायेगा। कहते हैं
जब तारकेश्वर गाँव से रानीगंज कोयला अंचल
आया था उस वक्त उसके पास बँटवारे के बाद सिर्फ पाँच बीघा जमीन आई थी। अब खेत
लिखवाते लिखवाते जमीन करीब पच्चीस बीघा हो गई थी। वैसे भी अब तारकेश्वर की नौकरी भी थोड़ी ही रह गई थी। इस वजह से वह
चाहते थे कि बेटा खेती में मन लगा ले। मगर जब यह बात पत्नी से साझा किया तो पत्नी
ने साफ कहा , दुनिया गाँव छोड़ शहर को भाग रही हैं। कुछ तो बाहर देश को जा रहे हैं। आप हम
सबको गाँव भेजना चाहते हैं। वैसे भी बेटे को खेती के बारे में पता ही क्या है
तारकेश्वर अपनी पत्नी की बात से पूरा चिढ़ जाते। चिढ़ने का
मुख्य कारण यह भी था कि वह सोचते , जितनी जमीन गाँव में है उतनी अगर इस
कोयला अंचल में होती तो जिंदगी कुछ और होती। अब तो पूरे गाँव के लोग भी बस यही
सोचते कि उनकी जमीन कब कोयले खद्यान के अंदर आ जाये। उन दिनों जब कोयला अंचल में
जमीन कौडी के भाव में मिल रही थी। तब तारकेश्वर
को यही लगता था इस धूल धक्कड़ वाली जगह में जमीन ले कर क्या करेंगे। तब
उन्हे बस अपने गाँव की जमीन सबसे उपजाऊ और उपयोगी लगी थी। क्या गाँव में लोग
नहीं रहते हैं। अगर अब खेती नहीं करेगा तो फिर क्या करेगा। मैंने उसे कौन सा रोका
है कुछ करने के लिये कुछ करे तो सही सारा दिन बस दोस्तो के साथ आवारा गर्दी करता
फिरता है। वैसे भी नौकरी कितने दिन बची है।
जब तक उसे खेत खलिहान के बारे में पता
नहीं होगा वह खेती कैसे कर लेगा।
अरे भाग्यवान खेत में हल चलाने को उसे
कौन कह रहा है। यह पुँजीवादी युग है कुछ करने के लिए सीखना जरूरी नहीं होता बस
पैसे की जरूरत होती है। अब अम्बानी को देखो किस चीज का व्यवसाय नहीं करता , सबके बारे उसे आता है क्या। बेटे को
बस सुपरवाइजरी करने कह रहा हूँ। बटाई का जो भी मिलता है वह भी इसके चाचा ताऊ बेच
लेते हैं। कम से कम बटाई का जो मिलता है वह तो मिल जाया करेगा।
एक तरह से तारकेश्वर ने गाँव भेजने की पूरी तैयारी कर ली थी। वैसे
भी अपने जीवन में कोलियरी की धूल धुवां से वह आजीज आ गये थे। अपने रिटायरमेंट के
बाद आखिरी समय गाँव में ही काट कर चैन की मौत मरना चाहते थे। मगर अब तो मौत भी
कम्बखत चैन से कहा आती है।
जारी.......
सम्प्रति- मुंजाल शोवा लि.कम्पनी में सहायक
अभियंता के पद पर कार्यरत
सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर, न्यू शिवालिकनगर,हरिव्दार,उत्तराखण्ड,249407
मोबा0- 9012275039
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