हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कहानीकार विक्रम सिंह
की कई कहानियों को इस ब्लाग में पढ़ चुके हैं। इनकी चर्चित लम्बी कहानी बद्दू की आज पांचवीं और आखिरी किस्त। यह कहानी मंतव्य में प्रकाशित हो
चुकी है।
जिन्हें कब्र में चैन नहीं आया
इस सच को जानने के बाद शायद यकीन ना
हो। भले ही पूरी दुनिया गीता ,कुरान और बाइबल पर हाथ रख सच कहने को कह रही हो पर जब कोई सच कह रहा हो तो उस
पर कोई विश्वास ना करे फिर उस सच को झूठ समझ कर ही मान लेना सही होता है। भले ही
दुनिया भर में अंधविश्वास ,आडम्बर ,स्वप्न जैसी बातों पर विश्वास ना करें। क्योंकि यह कभी किसी के लिये इतना
लाभकारी भी होगा यह किसी ने भी स्वप्न में भी नहीं सोचा था। कोई अभी तक अंधविश्वास
पर विश्वास करने वालो को ठोकर ही मिली है। उस दिन मुधिर आया था सबको उनके बकाया
पैसे और पासपोर्ट देने की बात करने लगा। यह भी कहा कि आने वाले हर महीने तनख्वाह
सही समय और पूरी मिला करेगी। जो अभी छुट्टी में जाना चाहता है वह जा सकता है। कुछ
पल के लिए ऐसी बातें सुन सबको लगा आज मदारी का दिमाग सनक गया है। कहीं किसी बंदर
ने जोर का चाटा तो नहीं जड़ दिया जिसे इसका दिमाग सनक गया है। मुधिर ने सबको ऑफिस
आने को कहा। मगर ऐसा सुन सबको लगा कि यह कोई चाल तो नहीं , मुधिर की। मगर सच स्वप्न की तरह होना
शुरू हो गया। सही में सबको बैरक में पैसे से भरा पैकट आ गये। बोनस में उसी शाम
सबके बेरक में पासपोर्ट मिले थे। सबकी हालत उस भारतीय डायमेंड बिजनेसमैन के कर्मचारियो
की तरह हो गई थी जिन्हें डायमेंड बिजनेसमैन ने एकाएक फ्लैट और गाड़ी देकर खुशी से
पागल कर दिया था। अब कितने तो छुट्टी ले घर नहीं जाना चाहते थे। उन्हें लगा कि अब
सब सही होगा। मगर धनंजय दोबारा कोई गलती नहीं करना चाहता था। वह वापस आने की तैयारी
करने लगा। दरअसल हुआ यूँ कि कम्पनी के मालिक की मृत्यु हो गई थी। कुछ दिनों से
मालिक के बेटे के स्वप्न में उनके पिता कब्र में दिखाई दे रहे थे। बेटे को कह रहे थे कि कब्र में वह चैन से नहीं रह पा
रहे हैं। इसकी वजह वह यह बता रहे थे कि कम्पनी में काफी लोगों की सैलरी बकाया है।
सबकी आत्मा मुझे कोस रही है। इस स्वप्न ने
बेटे की भी नीद खराब कर रखी थी। सो बेटे ने सबका बकाया पैसा देने का फैसला कर लिया
था। अब अगर आप सब इस सच को ना पचा पा रहे हो तो इस सच को झूठ किस्सा समझ कर ही मान
लीजियेगा।
जिन्होंने अपने को कभी नहीं कोसा
धनंजय के वापस आने पर पूरे गाँव के लड़के उसके साथ मक्खी की तरह उसके आस-पास
मंडराने लगे थे। कुछ तो यह जानने के लिए उत्सुक थे कि कितने पैसे कमा कर लाया है।
कुछ उसके साथ सऊदी अरब जाने के लिए उसकी चिरौरी कर रहे थे। पर धनंजय तो छुट्टी
बिताने नहीं परमानेन्ट आया था। जब पिता को यह बात पता चली तो वह बेटे को यही कह
समझा रहे थे , ‘गाँव में क्या करोगे । कम से कम वहाँ नौकरी से पैसे तो मिल रहे हैं। उसने अपने पिता को बस इतना ही
कहा था ,‘‘आप सच से दूर हैं सच क्या है आप को
पता नहीं है।‘‘ उसके बावजूद भी गाँव के लड़के उसे इतना तक कह रहे थे ‘‘अगर तुम नहीं भी जाओगे। तो हम सब को तो वहाँ भेजवा दो। हम भी कुछ कमा ले।‘ बेटे के वापस आने से माँ बहुत खुश थी।
बेटे के दुबले और काले पड़ गये शरीर को देख दुखी हो रही थी। माँ एक नजर में ही समझ
गई थी कि बेटा विदेश में कभी खुश नहीं रहा। उस दिन जब वह हल ले अपने खेतों को जा
रहा था कुछ अरब देश से वापस आये मित्र उसे देख मुस्कुराये थे। उसने भी इस
मुस्कुराहट में पूरा साथ दिया था। व्यंग और तानों की मुस्कान नहीं थी यह आजादी की मुस्कान
थी विकास की मुस्कान थी। जो अब शायद उनसे कोई नहीं छीन पायेगा। धनंजय ने जल्द ही
छोटा सा भैसों का तबेला खोल लिया था।
वह इस बात को समझ गये
थे कि देश का विकास किसानों से ही हो सकता है। दुनिया को जिन्दा रहने के लिये अन्न
की जरूरत है।
उस दिन जब पलटन और धनंजय अपने खेतों
को जोत रहे थे। उसी दिन पास वाले जमीन की नपाई चल रही थी। यह जमीन किसी और की नहीं
तारकेश्वर की थी। बेटा कनाडा जा रहा था
बीजा के लिये पंद्रह लाख रूपयों की जरूरत थी। तारकेश्वर जो हमेशा जमीन को अचल सम्पत्ति कहते थे। आज वही
कह रहे थे जमीन खेत अचल सम्पत्ति नहीं होती।
आज फिर पलटन को ईश्वर का गणित समझ
नहीं आ रहा था कि गलती उसके बेटे ने की है। जो तमाम तकलीफ झेलने के बाद वापस आ गया
है। या फिर तारकेश्वर कर रहा है जो जमीन
बेच बेटे को इतने बड़े़ देश भेज रहा है।
सम्प्रति- मुंजाल शोवा लि.कम्पनी में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत
सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर,
न्यू शिवालिकनगर,हरिव्दार,उत्तराखण्ड,249407
मोबा0- 9012275039
सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर,
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नव वर्ष की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं...
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