13 दिसम्बर 1994 को कटहर बुटहनी गोण्डा उ0प्र0 में जन्मी नवोदित कवयित्री पूर्णिमा जायसवाल
ने बहुत सरल शब्दों में अपनी बात कहने की कोशिश की है। एम0ए0 की पढ़ाई कर रही पूर्णिमा की ये पहलौटी कविताएं हैं। मां और बेटी के बीच हुए संवाद को बहुत ही बारीक धागों से बुनने की कोशिश की है।
वहीं अपना मार्ग बनाने में विश्वास करने वाली पूर्णिमा जायसवाल की दूसरी कविता जीवन
में भी बखूबी देखा जा सकता है। स्वागत है इस नवोदित कवयित्री का पुरवाई में।
पूर्णिमा जायसवाल की कविताएं
1-नीद
हे माँ
मुझे अब सोने दो
मुझे नींद में खोने दो
बात हमारी सुनो माँ
कही मैं पागल न हो जाऊं
फिर दुनिया मुझ पर हॅसेगी
थोड़ा सा भार हटा लो माँ
नहीं बिटिया तुम पागल नहीं होगी
तू ज्ञान की अकूत भंडार है
पृथ्वी से भी भारी धैर्य की प्रतिमूर्ति
हो
सो जाओ बेटी भार से घबराना क्या
कार्य से घबरा क्या
नींद और सपनों से
जूझ रही बिटिया
नाप रही है आकाश
और मंजिल आ रही है पास।
2-जीवन
नींद बेचकर
हमने ये कविता बनायी
ठोकर खाकर चलना सीखा
निकल पड़े
हम उस राह पर
जिसने हमें
सबक सिखाया
अंधकार का
विष पीकर
अब हमको जीना आया।।
सम्पर्क - पूर्णिमा जायसवाल
कटहर बुटहनी , लतमी उकरहवॉ
मकनापुर, गोण्डा उ0प्र0-271302
मोबा0-9794974220
सहज व गंभीर कविताएँ..बधाई……
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