उत्तराखण्ड के टिहरी जनपद, चन्द्रवदनी
क्षेत्र के नौसा-बागी गांव में 21
जुलाई,
1963 को जन्में जगमोहन सिंह जयाड़ा ‘जिज्ञासू’ ने अपनी
साहित्यिक यात्रा गढ़वाली कविताओं के सृजन से की। इनका पहला गढ़वाली कविता संग्रह ‘अठ्ठैस बसंत’ हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल जी को समर्पित है। इनकी रूचियां -छायाकारी, उत्तराखण्ड भ्रमण,
कविता सृजन, बांसुरी वादन में है। पहाड़
से दूर दर्द भरी दिल्ली प्रवास ने इनके मन में कवित्व पैदा किया और 1997 से
गढ़वाली कविताओं का सृजन लगातार जारी है। अब तक लगभग एक हजार से भी ज्यादा
गढ़वाली कविताओं का इन्होंने सृजन किया है। इनकी गढ़वाली कविताएं हिलवाणी, हिमालय गौरव
उत्तराखण्ड, जागो उत्तराखण्ड, स्टेट एजेंडा, रंत रैबार, यंग उत्तराखण्ड, कुमगढ़, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम और फेसबुक पर प्रकाशित हैं। पुरवाई में आपका स्वागत है।
पहाड़ पर
बचपन.....
पहाड़ से
ऊंचा उठने की,
प्रेरणा
लेते हुए बीतता है,
तभी तो
पर्वतजन,
जिंदगी
की जंग जीतता है।
पहाड़ पर
बहती नदी भी,
प्रेरणा
प्रदान करती है,
किनारे
कितने ही कठोर हों,
ऐसे ही
जिंदगी में,
बाधाएं
आएंगी और जाएंगी,
जिंदगी में
जीतना है,
हारना
मंजूर नहीं,
सीख लेता
है बचपन।
पहाड़ की
पीठ पर,
पगडंडी
पर चढ़ते हुए,
दूर धारे
से पानी,
भरकर
लाते हुए,
बुरांस
के फूल निहारते हुए,
काफल
खाते हुए,
पहाड़ पर
दूर दूर,
बिखरे
हुए गांवों में,
रात्रि
में टिमटिमाती,
रोशनी को
निहारते हुए,
मधुर लोकगीत
गाते,
ग्रामवासियों
के संग,
बीतता है
बचपन।
बांज
बुरांस के सघन वन,
पक्षियों
का कोलाहल,
मंद मंद
बहती ठंडी हवा,
बहती जल
धाराएं,
भागता
हुआ कोहरा,
प्रकृति
का सौन्दर्य,
देखता और
अहसास करता है,
पहाड़ पर
बचपन।
संपर्क सूत्र-
जगमोहन
सिंह जयाड़ा ‘जिज्ञासू’,
सहायक
अनुभाग अधिकारी,
उर्वरक
उद्योग समन्वय समिति,
सेवा
भवन, आर.के.पुरम,
नई
दिल्ली-110066
मोबा0
- 09654972366
बेहतरीन कविता ..बधाई....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद और हृदय से अभार मान्यवर।
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