आशीष बिहानी बीकानेर से आते हैं और वर्तमान
में कोशिका एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्रए हैदराबाद में पीएचडी कर रहे हैं।
इनका पहला काव्यसंग्रह अंधकार के धागे,
हिन्दण्युग्म द्वारा 2015 में प्रकाशित । समालोचन, पहलीबार, पूर्वाभास,स्पर्श आदि ई पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित ।
इनकी पिता पर लिखीं कविताएँ आशा है आपको अच्छी लगेंगी। पुरवाई में आपका स्वागत है।
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
1-
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
उनका हमेशा से सपना था
कि हम अच्छे पेड़ बनें
पर कभी हमसे कहा नहीं
उन्होंने कहा
कि तुम विद्रोह करो
पर शांति से
उनके उघड़ेपन ने हमें भीगने नहीं दिया
उनके कठोर हाथों ने हमारे जीवन में घर्षण नहीं पैदा किया
उनके बाल हवा में सरसराकर भी बिखरते नहीं
उनकी मूंछ कभी चाय से गीली नही होती.
2-
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
घंटों भारी भरकम रजिस्टर लिए बैठे-बैठे
उनके पैर लकड़ी के काउंटर में जड़ें जमा लेते हैं
सहज कर देते हैं वो
लोगों का आना और बैठना
और प्रलाप करना
वो सुबह जम्हाई लेते हैं तो
शेष बची थकान
पीठ से जड़ों की मिट्टी बांधे निकल आती है
3-
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
वो टस से मस नहीं हुए
मृत्यु और ऊब की डूब में
उनकी जड़ों में गांठें हैं
संस्थागत ऋण
रीति-रिवाज़
भूमंडलीकरण और व्यक्तिवाद
नियम-कानून व्यापार और विचार
कहीं गहरे दबे हैं
भयावह युद्ध की राख
किसी के धुंधले कड़वे बोल
कई समानांतर विश्व
जमाए हुए पकड़
पानी की खोज में
बहुत गहरे
इनकी पिता पर लिखीं कविताएँ आशा है आपको अच्छी लगेंगी। पुरवाई में आपका स्वागत है।
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
1-
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
उनका हमेशा से सपना था
कि हम अच्छे पेड़ बनें
पर कभी हमसे कहा नहीं
उन्होंने कहा
कि तुम विद्रोह करो
पर शांति से
उनके उघड़ेपन ने हमें भीगने नहीं दिया
उनके कठोर हाथों ने हमारे जीवन में घर्षण नहीं पैदा किया
उनके बाल हवा में सरसराकर भी बिखरते नहीं
उनकी मूंछ कभी चाय से गीली नही होती.
2-
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
घंटों भारी भरकम रजिस्टर लिए बैठे-बैठे
उनके पैर लकड़ी के काउंटर में जड़ें जमा लेते हैं
सहज कर देते हैं वो
लोगों का आना और बैठना
और प्रलाप करना
वो सुबह जम्हाई लेते हैं तो
शेष बची थकान
पीठ से जड़ों की मिट्टी बांधे निकल आती है
3-
मेरे पापा बहुत अच्छे पेड़ हैं
वो टस से मस नहीं हुए
मृत्यु और ऊब की डूब में
उनकी जड़ों में गांठें हैं
संस्थागत ऋण
रीति-रिवाज़
भूमंडलीकरण और व्यक्तिवाद
नियम-कानून व्यापार और विचार
कहीं गहरे दबे हैं
भयावह युद्ध की राख
किसी के धुंधले कड़वे बोल
कई समानांतर विश्व
जमाए हुए पकड़
पानी की खोज में
बहुत गहरे
Email-ashishbihani1992@gmail.com
बेहतरीन कविताएं ..बधाई....
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