05 जून सन 1971
इनकी कविताओं का प्रकाशन वागर्थ, अतएव , अक्षरा , अक्षर पर्व , समकालीन सूत्र , साम्य , शब्द कारखाना , आजकल , वर्तमान साहित्य सहित
प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में ।
आकाशवाणी भोपाल , बालाघाट, रायपुर , बिलासपुर केंद्रों से रचनाओं का प्रसारण ।
संप्रति - शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जांजगीर क्रमांक -2 में अध्यापन ।
आकाशवाणी भोपाल , बालाघाट, रायपुर , बिलासपुर केंद्रों से रचनाओं का प्रसारण ।
संप्रति - शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जांजगीर क्रमांक -2 में अध्यापन ।
सतीश कुमार
सिंह की कविताएं जहां अनुभव की गहन आंच में रची
पगी हैं वहीं अनगढ़ आत्मीयता की मौलिक मिठास लिए हुए हैं। सतीश कुमार
सिंह के कवि की सबसे मूलभूत ताकत अपनी माटी,
अपने अनमोल जन, गांव-जवार और
बाग -बगिचे हैं। जहां कवि पला बढ़ा है वहीं की चीजों से कविता का नया शिल्प गढ़ता है
और भाषा को तेज धार देता है जिससे कविता जीवंत हो उठती है। सभी देशवासियों को विजय
दशमी की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ आज पढ़ते हैं सतीश कुमार
सिंह की कविताएं-
1- सिक्का
इसके साथ जुड़े हैं कुछ इंसानी करतब और
तरकीबें
इसलिए यह चलता भी है
उछलता भी ।
जाने कबसे कायम है
कुछ खास खास जगह
खास खास लोगों का सिक्का ।
कहते हैं सिक्का जम जाने पर
अपने आप फलने फूलने लगता है
अंधेरे में कारोबार
कई कई तरह के क्रिया व्यापार ।
जनता इसे नहीं उछालती
इसके साथ उछलती है ज्यादा
तलाशी जाती हैं
उसके इस तरह उछलने की वजहें ।
किसी निर्णय पर पहुँचने
जरूरी है सिक्के का उछलना ।
शोले फिल्म के जय बीरू
हेड और टेल पर
जान की बाजी लगाते हैं
सिक्के को
बाजार में नहीं
हवा में चलाते हैं ।
चिल्हर नहीं है कहकर
चॉकलेट या टॉफी थमाने वाले
हमें बाजार का असली चेहरा दिखाकर संतुष्ट करने की
कोशिश में लगे होते हैं ।
इस बार जरूर चलेगा
जनता का सिक्का
इस उम्मीद में हम बार बार
चुनाव चिन्ह में
मुहर लगाते हैं
वे फिर से अपना सिक्का
बेखौफ होकर चलाते हैं ।
2- सोचते ही
यह सोचते ही कि
वह नहीं आएगा अब
इंतजार की उत्कंठा खत्म हो गई ।
यह सोचते ही कि
आज बादल बरसेगे जरूर
भीतर हरिया गया बहुत कुछ ।
यह सोचते ही
कि रोपूंगा गमले में
मधुमालती के पौधे
मेरे बगीचे में फूलों से लदी
रातरानी बिहँस उठी ।
यह सोचते ही कि
सर्दी बढ़ गईं हैं इस बार
दांत किटकिटाने लगे
ठिठुरने लगी उंगलियां ।
सोचते सोचते कितना कुछ
होता है महसूस
कितना कुछ घट जाता आसपास
सोचते सोचते ।
सतीश कुमार सिंह
पुराना कालेज के पीछे ( बाजारपारा ) जांजगीर जिला - जांजगीर -चांपा ( छत्तीसगढ़ ) 495668 मोबाइल नं . 094252 31110
पुराना कालेज के पीछे ( बाजारपारा ) जांजगीर जिला - जांजगीर -चांपा ( छत्तीसगढ़ ) 495668 मोबाइल नं . 094252 31110
बेहतरीन कविताएं ..बधाई....
जवाब देंहटाएं