काग़ज की कश्ती तैराने का मन करता है
आज फिर बर्षात में नहाने का मन करता है।
क्यूँ लगने लगा गंदा राह का पानी मुझको,
वो बचपना फिर से जगाने का मन करता है।
क्या कहेंगे लोग मत कर परवाह उसकी
बर्षात में फिर से गाँव जाने का मन करता है।
वो समय फिर से ना आ सकता है दुबारा
बार-बार फिर क्यूँ दोहराने का मन करता है।
ढूँढ़ने लगी हैं आँखें अब बचपन के मित्र सारे
फिर से वो मज़मा जमाने का मन करता है।
ये उम्र है कि व्यग्र हर पल बदलती रही सदा
निकल गयी उसे क्यूँ बुलाने का मन करता है।
संपर्क-
विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
कर्मचारी कॉलोनी,गंगापुर सिटी,
स.मा. (राज.)322201
मोबा0- 09549165579
मेल - vishwambharvyagra@gmail.com
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