फिलहाल सो रहा था ईश्वर एवं अपने अपने दण्डकारण्य
काव्य संग्रहों से चर्चा में आए युवाकवि सन्तोष कुमार तिवारी कविता को जनता की जुबान में कहने के आग्रही हैं । वे सहज- सरल वाणी में जन जन के दिल की बात की पैरोकारी करते भी दिखते हैं । आप रामनगर, नैनीताल
में रहते
तथा अध्यापन से जुड़े हैं ।
1-तुमसे मिलूँगा... तुमसे मिलूँगा तो
लौटते वक्त
पूरा नहीं लौटूँगा
थोड़ा तुम्हारे पास रह जाऊँगा|
थोड़ी बातें
हँसी थोड़ी
रह जायेंगी साथ |
थोड़ी आधी- अधूरी
रह गयीं तुम भी
मेरे वापिस लौटने पर |
2-जैसे देवालयों में नैवेद्य
पास इतने पास
जैसे काजल आँखों के
लहरें सागर
दीपक लौ, और
घटाएं बादलों के पास हैं |
जैसे हरियाली पौधों के
भौंरे फूलों
मछली पानी,और
इन्द्रधनुष अम्बर के |
कोई पास है इतना
जितना
शब्दों के पास ध्वनियाँ
देवालयों में नैवेद्य
गीतों में लय, और
बस्ते में टिफिनबॉक्स होता है |
3 -फिर सवेरा
फिर सवेरा
फिर सवेरा
फिर सवेरा|
छोड़ बसेरा
छोड़ बसेरा
छोड़ बसेरा|
कर बखेड़ा
कर बखेड़ा
कर बखेड़ा |
4-ये कोई कविता नहीं है
नये साल के संदेशों, शुभकामनाओं में
आभाषी दुनिया से बाहर
शामिल किया उन्हें भी
जिनसे रोज का वास्ता है
जिनको छोड़ना कतई ठीक नहीं
कॉलोनी मे तमाम जन
पीरूमदारा के सब्जीवाले
बाल काटने वाले सुलेमान
कंप्यूटर सेंटर के राहुल भाई
फलवाले, मोमफली वाले
साईकिल रिपेयरर , समोसा जलेबी वाले
प्रेम भाई किताब वाले,
फोटोस्टेट वाले,
लाला जी |
ये सब मेरी छोटी सी दुनिया के
वे लोग हैं
जो हर रोज
मुस्कुराते हुए मिलते हैं
मेरे मालिक, इन सबको
खुश रखना |
5-थाह लेना मन की
कब से न जाने
अनछुआ
अनचीन्हा
एकाकी है स्त्री-मन |
यहाँ कब दस्तक दोगे पुरुष?
स्त्री-देह में उतरने से
बिल्कुल जुदा है
स्त्री- मन में उतरना |
कभी उतरना
थाह लेना कभी|
मोबा0-0941175081
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