रविवार, 29 सितंबर 2019

प्रतिभा श्री की कविता :भेड़िये


  



      प्रतापगढ़  में जन्मी प्रतिभा श्री ने अपना कर्मक्षेत्र आजमगढ़ चुना।  रसायनशास्त्र में परास्नातक के बाद एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका एवं विगत तीन वर्षों से लेखन कार्य मे सक्रिय । अदहन , सुबह सवेरे , जन सन्देश टाइम्स , स्त्रीकाल , अभिव्यक्ति के स्वर एवं गाथान्तर में लघुकथा व कविताएँ प्रकाशित । लघुकथा संग्रह अभिव्यक्ति के स्वर में  लघुकथाएं प्रकाशित
  जीवन की किसी भी गतिविधी में सौंदर्य की रचना तभी हो पाती है जब उसमें संतुलन हो। किसी भी तरह की क्षति सौंदर्य को नष्ट करती है । कविता में भी वही बात है। जिसने संतुलन को साध लिया वे ही अपना ऊंचा स्थान बनाने में सफल होते हैं। संतुलन को साधने में महारत हासिल करने वाली ऐसी ही एक युवा कवयित्री हैं जिन्होंने हाल के दिनों में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है । पुरुषों की निरंकुश पाश्विकता को इनकी कविताओं में बखूबी देखा जा सकता है।

प्रतिभा श्री की कविता
भेड़िये
1
ठीक ठाक याद नहीं उम्र का हिसाब
ना याद है  पढ़ाई की कक्षा
बेस्ट फ्रेंड का चेहरा भी याद नहीं
ना याद है सबसे तेज लड़के का नाम
लेकिन
याद है
तुम्हारा छूना
घर के भीतर ही,
देह पर रेंगती लिजलिजी छिपकलियाँ
तेज नुकीले नाखूनों से बोया गया जहर
बेबसी
,छटपटाहट,
आँसू
ठोंक दी गई सभ्यता की कीलों से  बन्द चीखें
मेरा ईश्वर मरा उस दिन
थोड़ी मैं भी मरी
चुप थी
कई दिनों तक
मेरी चुप्पी में ध्वनित रहे अकथनीय प्रश्न
महीनों खुरचती रही देह
कि उतार सकूँ चमड़ी से लाल काई
जिससे
बची रह सकूँ मैं
मेरे भीतर
थोड़ी सी
जीवित
2
बाद के दिनों में
एक आदत सी हो गई
जैसा बच्चा सीखता है
बोलना
लड़खड़ाते हुए
चलना
मैं सीखती गई
बस में,
ऑटो में,
पैदल रास्ते पर ,
सीने पर लगे तेज धक्के से
गिरते गिरते सम्हलना
कंधे से नीचे सरकते हाथों को झटकना
पैरों के बीच जगह बनाते पैरों को कुचलना
मेरे साथी
सेफ्टीपिन
नन्हा चाकू
और लंबे नाखून थे।
उम्र घटती गई
बढ़ती गई समझ
और
नफरत भी
पुरुष भेड़िया है
उसे  पसंद है
लड़कियों का कच्चा मांस
लड़कियों को झुण्ड में रहना चाहिए
ताकि ,
भेड़िये नोंच कर खा न सकें
3
तुमने छुआ जब प्रेम में थी
जैसे छूती है मां,
नवजात को
सहेजा ,
जैसा सहेजता हो वंचित अपना धन
निर्द्वन्द रही तुम्हारे संग
जैसेे हरे पत्तों पर थिरकती हो
ओस की बूंदे
तुम मुझमें
मैं तुममें समाहित
जैसे गोधूलि में 
सूर्य और धरती का आलिंगन
तब जाना
पुरुष
आदमी  होता है।
बेहद कमजोर
उसे जीतने की भूख है
हारी हुई औरत उसकी पहली पसंद है।
4
अब छत्तीस की होने तक
सीख चुकी हूँ
भेड़िये की पहचान
लड़कियों को बताती हूँ
लक्षण के आधार पर
पहचान के तरीके
परन्तु
जानती हूँ
आदमी के बीच
भेड़िये की पहचान
मुश्किल है ।
क्योंकि,
आदमी और भेड़िये के चेहरे
अक्सर
गड्डमगड्ड होते हैं।।
4
वे बात करते हैं
मंदिर ,
मस्जिद की
अल्लाह ,
राम की
गीता ,
कुरान की
आरती,
अजान की
मरी हुई गाय की
हमारे ,तुम्हारे सम्प्रदाय की ।
वे बात नहीं करते....
सीमा पर हर रोज कटते सिरों की
अस्पताल में मरते बच्चो की
भूखे अन्नदाता की
शिक्षा ,
दवाई,
रोजगार की
वे बाँटते हैं अन्न,
कपड़े,सस्ती दवाइयाँ
उन्हें विश्वास है
उनकी तर्जनी  से रची जाएंगी
तुम्हारे हाथ की रेखाएं
वे भाग्य विधाता हैं
वे घर
शौचालय
मुफ्त बिजली
गैस चूल्हा देते हैं
भूख देते हैं ....
तुम चाहते हो रोटी
रोजगार
वे लालच देते हैं
वे जानते हैं
उनके ईश्वर बने रहने के लिए
जरूरी है
तुम्हारा भूख से बिलखना ।।
5
तुम हँसती क्यों नहीं ?
भले ही तुम्हारी आँखों में हो
रात की बारिश
तुम्हारी पीठ पर हो
नीले काले निशान
टीस मारता हो
पेट की दाईं तरफ
रात धँसा
पाँव का बिछुवा
माथे पर हो
समय की विद्रूपता के कई निशान
तुम्हारी उंगलियाँ
जब तब कुचली जाती हों
एडिडास के जूते के नीचे
तुम हँसों
भले ही
पेट में एक ग्रास निवाला न हो
शरीर में कम हो
विटामिन
आयरन
कैल्शियम
तुम्हारा पहला बच्चा मरा हो असुरक्षित प्रसव से
पुत्र प्राप्ति के लिए कई बार
कराया गया हो गर्भपात
हंसो
तुम हँसती क्यों नहीं
यदि हँसी न आये
तो होंठो को थोड़ा चौड़ा रखो
जिससे लगता रहे
कि तुम हँसती हो।
जब तक
कि ,
तुम्हारा लहू पानी न बन जाये
जब तक
कि
तुम ठीक से
हँसना न सीख जाओ
रोज , रोज
हँसने का अभ्यास करो
हँसों ।
तुम हँसती क्यों नहीं ।

संपर्क सूत्र-
E Mail-raseeditikat8179@gmail.com 

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