रविवार, 12 फ़रवरी 2012

नित्यानंद गायेन की तीन कविताएं


          20 जनवरी 1981 को शिखरबाली, 0 बंगाल में जन्में नित्यानंद गायेन की कवितायें और लेख सर्वनाम, अक्षरपर्वकृति ओर, समयांतर, समकालीन तीसरी दुनिया, जनसत्ता, हिंदी मिलाप  आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन का शतक।
अपने हिस्से का प्रेम नाम से एक कविता संग्रह प्रकाशित  अनवर सुहैल के संपादन में संकेत द्वारा कविता केंद्रित अंक।
संप्रति- अध्यापन

 
 




















नित्यानंद गायेन की तीन  कविताएं-

देवता नाराज़ थे

खाली हाथ
वह लौट आया
मंदिर के दहलीज से

नहीं ले जा सका 
धूप- बत्ती, नारियल
तो देवता नाराज़ थे

झोपड़ी में
बिलकते रहे
बच्चे भूख से
भगवान
एक भ्रम है
मान लिया उसने


मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

कुछ साये
ऐसे भी होते हैं
जिनका कोई
चेहरा नहीं होता
नाम नहीं होता
केवल
भयानक होते हैं
नफ़रत की बू  आती है
भय का आभास होता है

कहीं भी हो सकते हैं
अयोध्या में
गोधरा में
इराक या अफगानिस्तान में
किसी भी वक्त

इंसानी खून से
रंगे हुए हाथ
इनकी पहचान है

कोई मज़हब नहीं इनका
ये साये
खुद के भगवान्  होते हैं

खुद नहीं उगते ये
मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

राख हुए सपने


गुलाबी के
सपने तो बहुत थे
उन्हें तोड़ने वाले
कहाँ कम थे

रंगीन चूड़ियों
का  सपना
सहृदय बालम
का सपना

सबको अपना
बनाने का सपना 

जलाई  जाएगी
उसे केरोसिन डालकर
नहीं था
ये सपना गुलाबी का
पर
राख हुए सब सपने
गुलाबी के साथ


12 टिप्‍पणियां:

  1. जलाई जाएगी
    उसे केरोसिन डालकर
    नहीं था
    ये सपना गुलाबी का
    पर
    राख हुए सब सपने
    गुलाबी के साथ

    मार्मिक पंक्तियां
    बहुत खूब भाई साहब |

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  2. मैं इस अदभूत सम्मान के लिए आरसी चौहान जी के प्रति कृतज्ञ हूं ........

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  3. आपका भी तह दिल से आभार मुकेश जी

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  4. अच्छी कविताएं पढवाने के लिये कवि व संपादक को बहुत बहुत बधाई।

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  5. झोपड़ी में
    बिलकते रहे
    बच्चे भूख से
    भगवान
    एक भ्रम है
    मान लिया उसन

    bhai ultimate hai, sach hai jab insan ka pet bhara ho tabhi kuchh bhi hai, jaat-dharm , mazhab khuda hai---------
    R C CHAUHAN ko hamari taraf se bahut-bahut badhai ki aapne mere bhai ki kavita ko yahan prakashit kiya-----------

    जवाब देंहटाएं
  6. कहीं भी हो सकते हैं
    अयोध्या में
    गोधरा में
    इराक या अफगानिस्तान में
    किसी भी वक्त

    कोई मज़हब नहीं इनका
    ये साये
    खुद के भगवान् होते हैं

    खुद नहीं उगते ये
    मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

    sach hai bahut hi khubsurati, bebaki se aapen ye baat kahi hai jo kafi gambhir aur sochniya hai---------
    sach me in darindo ka koi mazhab nahi hota hai----------- bus itna yaad rakhiye ye bus insaniyat ke dushman hain aur kuchh nahi

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  7. जलाई जाएगी
    उसे केरोसिन डालकर
    नहीं था
    ये सपना गुलाबी का
    पर
    राख हुए सब सपने
    गुलाबी के साथ


    aaj ke daur me bhi ye sab hota hai aur aapki kavita iski bakhubi chitran karti hai-----------

    aur hume batati kis tarah se humen Gulabi ke sapne koochle hain-------

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  8. aapki teeno'n kavitaye'n ek gambhir arth liye hue jo aur humen aagah kar rahi hai ki hum jo aadhunikta ka chola pahan khud ko aadhunik kahne se baaz nahi aate sach me kya hain? hamari sach ki tasvir kaisi hai?

    aur bahut-bahut badhai

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  9. Bahut Abhar Dheeraj bhai ................. achha lga tumahari tippanipadkar .

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