हिमाचल प्रदेश के सुदूर पहाड़ी गांव से कविताओं
की अलख जगाए राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं किसी पहाड़ी झरने की तरह मंत्र मुग्ध
कर देने के साथ आपको यथार्थ के धरातल सा वास्तविक आभास भी कराती हैं। कवि के कथनी और
करनी में कोई फर्क नहीं है। बिल्कुल पहाड़ी नदियों की तरह निश्चल और पवित्र हैं इनकी
कविताएं। गांव , नदी , पहाड़ ,जंगल , घाटियां नया आयाम देती हैं इनकी कविताओं को ।
बकौल राजीव कुमार
त्रिगर्ती - गांव से हूं ,आज भी समय के साथ करवट
बदलते गांव से ही वास्ता है। जीवन का वह हिस्सा जब हाथ लेखनी पकड़ने के लिए बेताब थाए
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के माहौल में बीता। वाराणसी की खरपतवार और रासायनिक उर्वरक.
रहित साहित्य की भूमि में कब कवित्व का बीज अंकुरित हुआ कुछ पता ही नहीं चला। भीतर
के उद्गारों को अपने ढंग से व्यक्त कर पाने की हसरत से ज्यादा आत्मसंतुष्टि शायद ही
कहीं होती हो। असल में पहाड़ ,जंगल , घाटियों , कलकलाती नदियां हैं
तभी तो पहाड़ में प्रेम है। इनके होने से ही जीवन जटिल है तभी तो पहाड़ में पीड़ा है।
यहां प्रेम और पीड़ा का सामांजस्य अनंत काल से सतत प्रवाहित है। प्रकृति के सानिध्य
में सुख दुख के विविध रूपों को उभारना अच्छा लगता है। मेरे लिए यह बहुत है कि प्रकृति
के सानिध्य में भीतर के उद्गारों को व्यक्त करने का एक खूबसूरत तरीका मिल गया है। भीतर
के उद्गार को अपने ही शब्दों में व्यक्त करने के आनंद की पराकाष्ठा नहीं और यह आनंद
ही मेरे लिए सर्वोपरि है।
राजीव कुमार त्रिगर्ती की कविताएं -
1-एकमात्र गुनाह
असल में हमने तमाम सुविधाएं दी हैं
चोरों को, घूसखोरों को देष में आम लुटेरों को
बड़ी से बड़ी सीमेंट सरिए की बिल्डिंग डकार जाने पर
अनाज मंडियों से अनाज को निगलने
बोरी से इलेक्ट्रानिक्स तक
आखिरी सामान तक के तमाम घोटाले
खेलों के अन्तर्राष्ट्रीय आयोजनों के नाम पर
सरकारी धन का मुंह मनचाहे ढंग से खोलने
अपने ही लोगों या भाई भतीजावाद के नाम पर
कहीं भी कुछ भी हड़प लेने
बड़े से बड़े नाम पर
बड़े से बड़ा धब्बा लगाने पर
किसी भी बड़ी से बड़ी चोर कंपनी से घूस लेकर
देकर अनर्थक व्यापार की अनुमति
घूसखोरों से भी घूस लेने वाले सम्माननीय लोगों
कुछ भी मार लेने की चाह में जीने वालों
कि हर सुविधा का रखा जाता है ख्याल
दी जाती है विशिष्ट सुविधाएं हर जगह
यहॉं सब कुछ खेल सा ही है
खेल ही समझा जाता है
कोई भी गुनाह रोटी को छोड़कर
अब जो एकमात्र गुनाह है, वह है
रोटी लूटना
और उससे भी ज्यादा
कड़ी मशक्कत के बाद
भूख के कीड़ों के कुलबुलाने पर भी
वक्त पर एक जून की भी रोटी
न खा पाना।
2-अभाव और कविता
जब अभाव खत्म होंगे
तो लेखनी की नोक पर आएगी
और इत्मीनान के साथ
लिखी जाएगी कविता,
अभाव जब खत्म हुए
कलम की स्याही
सूख चुकी थी
और कविता रूठ चुकी थी।
संपर्क-
राजीव कुमार त्रिगर्ती
गांव-लंघु डाकघर-गांधीग्राम
तहसिल-बैजनाथ
जिला - कांगड़ा हिमाचल प्रदेश 176125
मोबा0-09418193024
अच्छी प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएंसहज व गंभीर कविताएँ..बधाई……
जवाब देंहटाएं