शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

नक्सली एक सामाजिक और आर्थिक समस्या : प्रदीप कुमार मालवा



'कार्य ही पूजा है' की उक्ति को ठसक के साथ स्वीकार करने वाले सन्त कवि रैदास की आज जयन्ती है। स्मरण करते हुए हम उन्हें नमन करते हैं।

      नक्सली आज एक नासूर की तरह बन गये हैं। नक्सली समस्या को जानने के लिए हमें पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में जाना होगा जहां पर 1974 में चारू मजूमदार जो कि एक सिविल इंजीनियर थे और कानू सान्याल ने मिलकर नक्सलवाड़ी गांव के गरीब किसान व मजदूरों के लिए जमींदारों के खिलाफ जो आवाज बुलन्द की वही नक्सली आन्दोलन कहलाया। नक्सलबाड़ी गाँव के किसानों (भूमिहीनों बनाम भूमिधर) का यह आन्दोलन आज देश के 180 से भी अधिक जिलों में फैल चुका है।
            प्रारम्भ में यह आन्दोलन हिंसक नहीं था धीरे धीरे इस आन्दोलन में गरीब, दलित, आदिवासी जुड़ते गये। यह आन्दोलन दंडकारण्य में बहुत ज्यादा व सबसे अधिक मघ्य प्रदेश में जड़ें जमाये है। दन्डकारन्य- आन्ध्रप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र का वह आदिवासी इलाका है जहां भारत सरकार की एक भी पंचवर्षीय योजना नहीं पंहुची।
            अभी हाल में नक्सलियों ने सी. आर. पी. एफ. के जवानों को घेर कर मार दिया। नक्सलियों की यह कार्रवाई बहुत बड़ा जघन्य अपराध है और उन्हें इसकी कठोरतम सजा मिलनी ही चाहिए। लेकिन सरकार को भी यह विचार करना चाहिए कि क्या प्रतिहिंसा ही इस समस्या का हल हो सकता है। जैसा कि हमारे गृहमंत्री कहते हैं कि नक्सली सिर्फ डाकू हैं और कुछ नहीं।
            यदि वे डाकू हैं तो आप विचार करें कि कोई खुशी से डाकू बनना चाहता है ?
सरकार जरा अपने दामन में झांककर देखें कि जहाँ पर नक्सली अपना प्रभाव जमाने में कामयाब होते जा रहे हैं। क्यों नहीं सरकार विकास की योजनाएं उन क्षेत्रों में ठीक ढंग से कार्यान्वित कर रही है । वास्तव में नक्सली अपने क्षेत्रों में सरकार की भूमिका निभाते हैं। या कहें कि समानान्तर सरकार चलाते हैं। आदिवासियों का भरपूर समर्थन उन्हें मिलता है। वे गरीब आदिवासियों के लिए किसी नायक से कम नही हैं।
            कुछ समय पहले नक्सली आन्दोलन के बड़े नेता कोबाड गाँधी की गिरफ्तारी से लगा था कि इससे नक्सली आन्दोलन को झटका लगेगा लेकिन इसके बाद समस्या और बढ़ गयी है। कोबाड़ गाँधी की गिरफ्तारी व नक्सलियों को नष्ट करने के सरकार के अभियान से भी वे बोखला गये हैं। कोबाड़ गाँधी नक्सलियों के लिए किसी भगवान से कम नहीं है। कोबाड़ गाँधी जिसने दून स्कूल में संजय गाँधी के साथ पढ़ाई की तथा लन्दन की उच्च शिक्षा अधूरी छोड़कर किसी मालदार रइसजादे की बजाय गरीब आदिवासियों और हाशिये पर जीने वाले लाखों लोगों की बेहतर जिन्दगी के लिए जीना अधिक सार्थक माना इसके लिए उन्होंने जो मार्ग चुना इस पर उनके बलिदान और समर्थन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता।
            सरकार को चाहिए कि जितना पैसा वह नक्सलियों को नष्ट करने में बर्बाद कर रही है। यदि उसे सही ढंग से उनके विकास, शिक्षा, गरीबी दूर करने में भी लगाये तो हो सकता है कि ये लोग मान जायें वर्ना उनका तो नारा है हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए सारा जहाँ है। सरकार को यह भी देखना होगा कि जब कोई आन्दोलन हिंसक होता है तो उसे कहां से हथियार और प्रशिक्षण व समर्थन मिलता है। ऐसे में अक्सर दुश्मन देश आग में घी का काम करता है।
प्रधानमंत्री ने कुछ समय पहले कहा था कि नक्सलियों ने उन इलाकों पर अपना प्रभाव जमा रखा है जहां बहुमूल्य खनिज है और उनकी वजह से औद्योगिक विकास प्रभावित हो रहा है। जबकि नक्सली इसका अर्थ निकालते हैं कि इन संसाधनों को दोहन के लिए उद्योग जगत को सोचना है जिसके लिए स्थानीय वाशिंदों को विस्थापित होना पड़ेगा। दुश्मन देश हमें बरगला कर गृह युद्ध की स्थिति पैदा करना चाहता है। ताकि हमारा देश गृहयुद्ध में उलझ जाये और वह अपना स्वार्थ सिद्ध करता रहे। ऐसे में हमारे निति निर्माताओं को ऐसी नितियाँ बनानी होगी कि हमारे देश के ये नक्सली बेरोजगार न रहें व दूसरे देश के बरगलाने में न आये।
            यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि सरकारों के कानों पर तब तक जूँ नहीं रेंगती जब तक समस्या विकराल न हो जाये। नक्सलियों की समस्या इतनी बड़ी समस्या नहीं थी यदि प्रदेश सरकारें या केन्द्र सरकार ढृढ़ इच्छा शक्ति दिखाती हैं तो यह समस्या कबकी हल हो सकती थी। सरकार अब नक्सलवाद का खात्मा करना चाहती है लेकिन क्या वह इन इलाकों की भूख और गरीबी का समूल नष्ट करने को लेकर ईमानदार हैं ? सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों की खनिज सम्पदा के दोहन के लिए जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सौंप दिया है वहाँ की खनिज सम्पदा से ये कम्पनियां लाखों करोड़ों कमा रही हैं जबकि आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है।
            नक्सली समस्या एक आर्थिक के साथ सामाजिक समस्या भी है और कई लोग इसमें जातिगत भेदभाव के कारण भी नक्सलियों में शामिल हो जाते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी कई जगह छुआछूत देखने को मिल जाता है। कहीं पर उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों के लोगों को मारना या दलित औरतों को पूरे गाँव में नंगा घुमाना और प्रशासन द्वारा दोषियों को सजा न दिला पाना भी कभी-कभी निम्न जाति के लोगों को उद्धेलित कर देता है।
            अप्रैल 2006 में मुख्यमंत्रियों की बैठक में पी. एम. ने देश के समक्ष सर्वाधिक गम्भीर चुनौतियों में से एक वाममार्गी चरमपंथी हिंसक विद्रोह के मुख्य कारणों की जानकारी दी थी, उन्होंने कहा था कि नक्सली उभार के लिए निम्न कारण हैं -
1 - शोषण
2 - मजदूरी दर को कृत्रिम तरीके से निम्न स्तर पर बनाये रखना।
3 - गैर बराबरी को बढ़ावा देती सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियां
4 - संसाधन प्राप्ति के अवसरों का अभाव।
5 - खेती का पिछड़ापन।
6 - भूमि सुधारों का अभाव आदि जिम्मेदार हैं।
सीधी सी बात है कि बढ़ती गैरबराबरी और शोषण में चोली दामन का साथ है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और संगठित क्षेत्रों के विकसित होने के समानान्तर बढ़ती गैर बराबरी, शोषण, बेरोजगारी, जल जंगल जमीन से लाखों लोगों की बेदखली आदि से मुँह फेर कर नक्सली हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सकता।
संपर्क -
प्रदीप कुमार मालवा
प्रवक्ता - भौतिक विज्ञान
रा 0 0 का0 गौमुख
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखण्ड 249121

मोबा0-09557921411


 

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' की ग़ज़लें





1-
पुराने नोट बन गये खोट अब तो
कुर्ते की ज़ेब दे रही चोट अब तो

झूँठी देश-परिवेश की बातें सभी  
ज़ेह़न में केवल बैठा वोट अब तो

कमाया है धन घपलों से जिन्होंने
 हो रहे मुखर उनके होठ अब तो

नोट के बदले वोट लेने वाले सभी
मल रहे तेल कस रहे लंगोट अब तो

जो विरोधी थे कभी एक दूसरे के
 सेक रहे एक ही तबे पर रोट अब तो

हस्र काले धन का देख-देख करके
'व्यग्र' भी हुआ है लोट-पोट अब तो

                            ममता सैनवाल की पेंटिंग
2-
बपौति समझ रखा है जिन्होंने इस ज़माने को
जाने लगा क्यूँ आदमी मेहनत से कमाने को

ठिठुरना धूँजना जिनकी मानो नियति बन चुका
मुफ़लिसी में है नहीं छत उनके सर छुपाने को

जिनकी हक़ीकत सारी सब लोग जानते हैं
उनके पास नहीं कुछ भी अपना बताने को

बहुत ठोकरें खाई है कंकरों से शिलाओं से
 उसे अब ना रहा कोई  यहाँ आज़माने को

पहनकर धर्म का चोला यहाँ बने सभी मौला  
निकलते देखे हमने दूसरों के घर जलाने को

मैं ही नहीं हूँ 'व्यग्र' सारा जहां है आज
 सब मुस्कराते हैं यहाँ केवल दिखाने को

   संपर्क-     
   विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
   कर्मचारी कॉलोनी,गंगापुर सिटी,
   स.मा. (राज.)322201
   मोबा0- 09549165579
   मेल - vishwambharvyagra@gmail.com