ममता सैनवाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ममता सैनवाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

बूढ़ी अम्मा : ममता सैनवाल



    
  

   इस नवोदित रचनाकार में बहुत कुछ करने की संभावना है। इसके पहले इनकी एक कविता प्रकाशित कर चुका हूं। इस बार इनकी डायरी का कुछ अंश जो इनके अनुभवों पर आधारित है बिना तारिख के।


 बूढ़ी अम्मा


      आज कल रास्ते में चलते टी0वी0,अखबार पर हम अलग अलग घटनाएं देखते सुनत व पढ़ते रहते हैं।मैं भी एक ऐसी घटना का वर्णन कर रही हूँ,जो दो साल पहले मेरे साथ घटी।

     मैं उस समय की बात कर रही हूँ जब मैं अकेले ट्यूशन क्लास जाया करती थी। मैं जिस बस स्टॉप से अपनी बस पकड़ती थी उसी बस स्टॉप पर एक बूढ़ी अम्मा बैठी रहती थी और वह बहुत बूढ़ी थी लेकिन वह बस स्टॉप पर अकेले ही बैठे रहती थी । एक दिन मैंने उन से जाकर पूछा अम्मा आप हमेशा यहां अकेले क्यूँ बैठे रहती हो। उन्होंने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया वे जहां बैठी थी वहां से उठकर चली गई मैंने सोचा शायद वो मुझसे बात नहीं करना चाहती इसलिए वो उठकर चली गई।

      एक दिन सोमवार की सुबह को जब मैं दुबार टयूशन क्लास के लिए बस स्टॉप गई तो वह बूढ़ी औरत वहां पर सब लोगों से पानी मांग रही थी लेकिन कोई उस बुढ़िया को पानी की क्या , बात तक सुनने को तैयार न थे । लोग उन्हें देखकर भी अनदेखा कर रहे थे।बुढ़िया पानी मांगते मांगते जमीन पर गिर गई। लोग पैर मार-मार कर आगे बढ़ गए।लेकिन किसी ने उन्हें पानी की एक बूंद तक नहीं दी। थोड़ी देर बाद मैंने दुकान से पानी की एक बोतल खरीदी और उन अम्मा का जमीन से उठाया उनके कपड़े झाड़े जिन पर बहुत मिट्टी लग गई थी। उनके कपड़े झाड़ने के बाद एक कोने में बैठाया और उन्हें पानी पिलाया। उस समय अम्मा मुझे गले लगकर रोने लगी।उस समय मुझे लगा कि वो कोई मेरी ही कोई अपनी है।मैंने अम्मा से पूछा कि अम्मा आप यहां अकेले क्यों बैठे रहती हैं।उन्होंने रोते रोते कहा मुझे मेरे बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया है।मेरे पति की मृत्यु के बाद उन्होंने सारी जमीन जायदाद अपने नाम पर कर ली।और मुझे घर से बाहर निकाल दिया।

    मैंने अम्मा से कहा अम्मा आप मेरी दादी जैसी हैं।आप मेरे साथ घर चलो । आप मेरे घर पर रहना। '' मैं नहीं जाउंगी, ये बस स्टॉप ही मेरे घर जैसा है। मैं यहां दो साल से रह रही हूं।'' अम्मा ने कहा ।



वो मेरे साथ नहीं आई।
अगली सुबह जब मैं दोबारा बस स्टॉप पर गई तो वहां पर बहुत भीड़ लगी हुई थी।मैं जब भीड़ के आगे जाकर देखा तो वह बूढ़ी औरत जमीन पर लेटी हुई थी। मैंने लोगों से पूछा कि अम्मा लेटी हुई क्यों हैं ? तो लोगों ने बताया कि अम्मा मर गई है।उस समय मुझे लगा कि मेरा अपना कोई मुझसे दूर हो गया है।



   शायद आज अगर अम्मा के बच्चे उन्हें घर से बाहर नहीं निकालते तो वे जीवित रहती। उन्हें क्या पता माता-पिता दुनिया में कितनी अनमोल चीज हैं। जिसका कोई मोल नहीं है और ना ही हो सकता है।

संपर्क-
ममता सैनवाल
कक्षा 12
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड 249121
 

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

ममता सैनवाल की कविता -जब दुनिया में मैं आयी

समस्त देश वासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है नवोदित कवयित्री ममता सैनवाल की कविता ।

 
















जब दुनिया में मैं आयी



ना गूंजा घर में गीत
ना घर में बजी बधाई थी
सबके चेहरे उतरे उतरे
जब दुनिया में मैं आयी
दादा दादी भी गुमसुम
गुमसुम चाचा ने बात बताई
क्यों नाचें हम लोग खुशी से
क्यों बांटें हम मिठाई
पापा की आंखें उदास
मम्मी की आंखें पथराई थी
सोचा था लाल ही होगा
पर ये बिटिया कहां से आयी
वो दुनिया को रचने वाले
कैसा न्याय तुम्हारा है
जो हमको तुमने लड़की बनाया
क्या ये दोष हमारा है
सोचो भाइयों और बहनों
अगर न होती जग में लड़की
झांसी की लाज बचाता कौन
सीख क्या देती दीदी हमको
दादी का प्यार दिलाता कौन ?

 















संपर्क-
ममता सैनवाल
कक्षा 11
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड 249121