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रविवार, 25 जनवरी 2015

देश पुकारता है : उमेश चन्द्र पन्त





उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के चोढीयार गंगोलीहाट नामक गांव में 30 अक्टूबर 1985 को जन्में उमेश चन्द्र पन्त अज़ीब ने अपनी साहित्यिक यात्रा कविताओं से की। इनकी रूचियां -फोटोग्राफी, देशाटन, कवितां, सिक्का.संग्रह, पढना, तबला वादन एवं संगीत में।

 बकौल उमेश चन्द्र - यही कुछ साल भर पहले कविताओं की शुरुआत हुई अनजाने ही कुछ पंक्तियाँ लिखीं तो लगा के मैं भी लिख सकता हूँ बस यूँ ही एक अनजाने सफ़र की शुरुआत हो गई  उम्मीद है यह सफ़र यूँ ही अनवरत चलता रहेगा क्यों कि कुछ सफरों को मंजिलों की तलाश नहीं होती वे सिर्फ सफ़र हुआ करते हैं।

समस्त देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है युवा कवि उमेश चन्द्र पंत की देशभक्ति कविताएं-

उमेश चन्द्र पन्त की कविताएं

देश पुकारता है

उठ जागो , के अब देश पुकारता है
दिशाएं ये गीत गाती तो हैं
उठ तेरे लहू की है अब जरुरत
अंतर्मन से ये आवाज आती तो है

लाऊँगी मैं
सुख का सवेरा
सांझ ये गीत गुगुनाती तो है
और कुछ न सही
तमाम अंधेरों के बीच
उम्मीद की किरणें
जगमगाती तो हैं।

वतन

कर गुजरना है कुछ ग़र
तो जुनूं पैदा कर
हक को लड़ना है
रगों में खूं पैदा कर
वतन की चमक को जो बढ़ाये
तेरी आँखों में ऐसा नूर पैदा कर 
वतन पे कुरबां होना शान है माना
तू बस अरमां पैदा कर
शम्सीर बख़ुदा मिलेगी तुझे तू
तू हाथों में जान पैदा कर
अहले वतन को जरूरत है तेरी
तू हाँ कहने का ईमान पैदा कर 
सीसा नहींए हौसला--पत्थर है उनका
तू साँसों में बस आंच पैदा कर
फ़तह मिलकर रहेगी तुझे 
हौसला पैदा कर
रौंद न पाएंगे तुझे चाह कर भी वे
कुछ ऐसा मंज़र राहों में पैदा कर
होंगे ख़ाक वे , सामने जो आयेंगे
तू सीने में बस , आग पैदा कर।


संपर्क-
ग्राम- चोढीयार
पोस्ट-गंगोलीहाट
जिला-पिथौरागढ़ ;उत्तराखंड
वार्ता सूत्र-09897931538
ईमेल-umeshpant.c@gmail.com
UmeshC.pant@yahoo.co.in

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

आओ एक दीप जलायें : उमेश चन्द्र पंत



     


                          
                            उमेश चन्द्र पंत


      दोस्तो दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आज प्रस्तुत है युवा कवि उमेश चन्द्र पंत की दो कविताएं

एक दीप जलायें

आओ एक दीप  जलायें
नयी आशा का
एक दीप जलायें
जिसकी किरण
भेदभाव का दाग मिटाए 
आओ हम एक दीप जलायें
जिसकी ज्योत
प्रकाश फैलाये 
ज्ञान का 
सत्य का
उम्मीद का
प्रेम का
आओ हम एक दीप जलायें

देश पुकारता है
उठ जागो , के अब देश पुकारता है
दिशाएं ये गीत गाती तो हैं 
उठ तेरे लहू की है अब जरुरत
अंतर्मन से ये आवाज आती तो है

लाऊँगी मैं , सुख का सवेरा
सांझ ये गीत गुगुनाती तो है
तमाम अंधेरों के बीच , उम्मीद की एक किरण 
और कुछ सही , शाबाशी पाती तो है

संपर्क-
ग्राम- चोढीयार
पोस्ट-गंगोलीहाट
जिला-पिथौरागढ़ ;उत्तराखंड
वार्ता सूत्र-09897931538
ईमेल-umeshpant.c@gmail.com,UmeshC.pant@yahoo.co.in

बुधवार, 20 अगस्त 2014

कुमाऊनी कविताएं:उमेश चन्द्र पन्त

                    



                            उमेश चन्द्र पन्त
 
                      ये कविताएं मुझे अरसा पहले मिल गई थीं । भोजपुरी और गढ़वाली कविताओं के प्रकाशन के बाद आज कुमाऊनी कविताएं प्रकाशित कर रहा हूं। और इन्हें प्रकाशित  करते हुए मुझे गर्व का अनुभव हो रहा है। इन कविताओं पर आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।



कुमाऊनी कवितायेँ


भाभर की भाबरियोव में नि भबरीणो
घर आओ
वां को छु अपण?
जब के नि रोलकाँ जला
कि कौलाकै मुख दिखाला?
फिर अपण जस मुख ल्ही बेर आला
आई ले 'टैमछु
आओअपन जड़-जमीन पछियाणो
याद करो ऊ गाड़-भीड़
जो तुमार पितरनैल कमाईं
ऊ घर-बार
जो अफुं है बेर ले बाहिक समाईं

अरे भायो लाली
तुम कुंछा-पहाड़ में के नहातन आब
जब तुमे न्हेता
बाहिक के चें

तुम कुंछा-नेता लोग नैल पहाड़ चुसी हालो
मैं कूं-तुमुल त पहाड़ छोड़ी हालो

आओ यारो यस नि करो
हमर पहाड़ बर्बाद है गो
के करो यारो
जब जड़ सुखी जाल
बोट हरी नि रै सकन
अपण गौं-घर छोड़ी बेर
कैक भल नि है सकन
पहाड़ अंतिम समय मैं छु
फिर जन कया---
हमुल मुख ले नि देख सक

दिनचर्या

'रात्ती-बियाणीउठकर
करती है वो 'गोठ-पात'
फिर 'गोरको 'हतियातीहै,

उजाला नहीं हुआ रहता,
जब तक वो
दो 'डाल' 'पोशखेत पंहुचा आती है.

'सास-सौरज्युको 'चाहाबनाकर देती है फिर
दूध 'ततातीहै 'मुनुके लिए वो
'रोट-सागका कलेवा बनाती है.

'सौरज्युकी निगरानी में छोड़ जाती है 'मुनुको
जब 'बणको वो जाती है
जंगल बंद होने ही वाला है, कुछ दिन में 'ह्यूनका
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.

बटोर लेना चाहती है वह
अधिक से अधिक
'शिरकी घास और 'दाबे'..अधिक से अधिक 'पाल्यो'.

बटोर लेना चाहती है वो
जंगल बंद होने से पहले 'ह्यूनका
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.

'दोफरीको आकर
'भातपकाती है वो
'कापेके साथ.

'इजा', 'बाबूकब 'आल'?
'मुनुके सवाल का जवाब ढूंढ़ते हुए
थोडा सा याद कर लेती है वो उनको
पोस्टिंग हैं सियाचिन में.

फिर 'सुतर' 'गिन्यातीहै
'इजरको जाती है
शाम को घास लेने के लिए.

'गाज्योका 'दुणपोईहुआ है, आजकल बहुत
माघ का है 'कल्योड़'
अतिरिक्त मेहनत तो करनी ही पड़ेगी.

'लाई-पालंगबनाना है रात के खाने में
'ह्वाकभी सुलगाना है 'सौरज्युके लिए 
शाम को 'गोरहतियाकर.
          
हाथ खाली नहीं है उसका काम करने से
फिर भी हाथ खाली है उसका.

चूड़ियाँ पहनने बाजार जाना था
कैसे जाये? 'सोबुतही नहीं हो पाता है काम 'आकतिरी'
मनीऑर्डर भी तो नहीं पंहुचा है उनका अभी तक
'मुनुका 'बालबाड़ीमें भी डालना है.

ऐसा ही कुछ सोचा करती है वो
जाती है जब बिस्तर पर
'चुली-भानिकर चुकने के बाद
कुछ और कहाँ सोच पाती है वह 
सिवाय अगले दिन के कामों को सोचने को छोड़ कर


उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'….

शुक्रवार, 9 मई 2014

कर गुजरना है कुछ ग़र :उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"



उमेश चन्द्र पन्त

कर गुजरना है कुछ ग़रतो जुनूं” पैदा कर
हक को लड़ना हैरगों में खूं” पैदा कर
वतन की चमक को जो बढ़ाये
तेरी आँखों में ऐसा नूर” पैदा कर  
वतन पे कुरबां होना शान हैमाना
तू बस अरमां” पैदा कर
शम्सीर” बख़ुदा मिलेगी तुझे तू
तू हाथों में जान” पैदा कर
अहले वतन को जरूरत है तेरी
तू हाँ कहने का ईमान” पैदा कर  
सीसा नहींहौसला-ए-पत्थर है उनका
तू साँसों में बस आंच” पैदा कर 
फ़तह मिलकर रहेगी तुझे  
हौसला पैदा कर
रौंद न पाएंगे तुझे चाह कर भी वे
कुछ ऐसा मंज़र” राहों में पैदा कर
होंगे "ख़ाक" वे, सामने जो आयेंगे
तू सीने में बस, "आग" पैदा कर..



मेरे हमसफ़र आ

तुझे ले के चलूँ

इन फिज़ाओं मै कहीं....


इन हवाओ क साथ 
तुझे कहीं उड़ा के ले के चलूँ

मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ

हुस्न की वादियों मैं


चाहत के समंदर मैं


बहाता ले चलूँ


मेरे हमसफ़र आ


तुझे दूर ले क चलूँ

तुझे एहसास दिलाऊं....


तुझे ये बताऊँ.....के तू मेरा है....


तू आया जब से..


मेरे जिन्दगी मैं नया सवेरा है

मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ

पर्वतों के पार..


एक घाटी मैं


जो है वादे-वफ़ा से सरोबार


मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ....

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

जिंदगी ख़ूबसूरत है :: उमेश चन्द्र पन्त


 















उमेश चन्द्र पन्त

परिचय-
       उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के चोढीयार गंगोलीहाट नामक गांव में 30 अक्टूबर 1985 को जन्में उमेश चन्द्र पन्त अज़ीब ने अपनी साहित्यिक यात्रा कविताओं से की। स्नातक करने के पश्चात फिलहाल देहरादून में नौकरी ।
इनकी रूचियां -फोटोग्राफी
, देशाटन, कवितां, सिक्का.संग्रह, पढना, तबला वादन एवं संगीत में।

 बकौल उमेश चन्द्र - यही कुछ साल भर पहले कविताओं की शुरुआत हुई अनजाने ही कुछ पंक्तियाँ लिखीं तो लगा के मैं भी लिख सकता हूँ बस यूँ ही एक अनजाने सफ़र की शुरुआत हो गई  उम्मीद है यह सफ़र यूँ ही अनवरत चलता रहेगा क्यों कि कुछ सफरों को मंजिलों की तलाश नहीं होती वे सिर्फ सफ़र हुआ करते हैं।

उमेश चन्द्र पन्त की दो कविताएं



जिंदगी ख़ूबसूरत है


 
जिंदगी ख़ूबसूरत है
बहुत खूबसूरत
तितली के पंखों -सी  
कभी फूलों -सी
पूनम की रात- सी
खूबसूरत है
तुम्हारी कही किसी बात -सी
जिंदगी खूबसूरत है
निश्छल
, निष्कपट
शिशु की मुस्कान  की तरह
खूबसूरत है जिंदगी
उस समीर की तरह
शाम को मंद-मंद  बहते हुए
जो माहौल में
गुलाबी ठंडक ला देती है
जिंदगी खूबसूरत  है
उससे भी ज्यादा
जितना की वो हो सकती है।  


तालीम

 
हम तालीम  लेते हैं
हर तरह से
हर तरीके की तालीम
ताउम्र लेते रहते हैं
कुछ न कुछ
किसी न किसी तरह की तालीम
हर लम्हाए हर वक़्त
दरजा दर दरजा
कदम दर कदम
लेते हैं  तालीम
अलग-अलग काफ़िया
पढ़ते हैं
सीखते हैं
कुछ नया
हर दफा
कोई नया काफ़िया
पढ़ते हैं
रखते हैं अपना नज़रिया
देते हैं अपनी राय
संजीदगी से उस पर
और कभी-कभी बेबाकी से भी
पाते हैं हम कई-कई सनद
अपने तालीमों  से
वजीफ़े भी दिलाती है तालीम हमको
इन सब बातों के बीच
शायद हम भूल  जाते हैं
तालीम लेना
मुहब्बत की
इंसानियत की
और उससे ज्यादा
हम भूल जाते हैं लेना
इंसान होके भी इंसान होने की तालीम। 



संपर्क.                 द्वारा श्री हेम चन्द्र पन्त
                              संगम विहार हर्रावाला
                              देहरादून उत्तराखंड
                              वार्ता सूत्र.09897931538
ईमेल. umeshpant.c@gmail.com,UmeshC.pant@yahoo.co.in