सोमवार, 23 सितंबर 2013

अनवर सुहैल की कविताएं


 















09 अक्टूबर 1964 जांजगीर छत्तीसगढ़

दो उपन्यास, तीन कथा संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशित

संकेत नामक लघुपत्रिका का सम्पादन

कोल इण्डिया लिमिटेड की एक भूमिगत खदान में


वरिष्ठ खान प्रबंधक 




अनवर सुहैल की कविताएं



1.

घटनाएं




हो किसी और जगह

कुछ भी गड़बड़

हमें तनाव नहीं होता

बल्कि हम ये तक कह देते हैं

कि सरकार और मीडिया

दोनों बोल रहे झूठ

मरने वालों के आंकड़े

क्या इतने कम होंगे?



यदि ऐसा ही कुछ घटे

अपने साथ

या अपनों के साथ

तब समझ आता

आटे-दाल का भाव!



2.

स्मार्ट बच्चे




हमें कुंद बच्चे पसंद नहीं

हमें चाहिए स्मार्ट बच्चे

जो हों सिर्फ अपने घर में

बाकी सारे बच्चे हों भांेदू



बच्चों को बना दिया हमने

अंक जुटाने की मशीन

सौ में सौ पाने के लिए

जुटे रहते हैं बच्चे



मां-बाप के अधूरे सपनों को

पूरा करने के चक्कर में

बच्चे कहां रह पाते हैं बच्चे!

वज़नदार किताबों के

दस प्वाइंट के अक्षरों से जूझते बच्चों को

इसीलिए लग जाता चश्मा

होता अक्सर सिर-दर्द!



बच्चे नहीं जानते

उन्हें क्या बनना है

मां-बाप, रिश्तेदार और पड़ोसी

दो ही विकल्प तो देते हैं

इंजीनियर या डॉक्टर

बच्चा सोचता है

सभी बन जाएंगे इंजीनियर और डॉक्टर

तो फिर कौन बनेगा शिक्षक,

गायक, चित्रकार या वैज्ञानिक



बच्चे चाहते ऊधम मचाना

लस्त हो जाने तक खेलना

चाहते कार्टून देखना

या फिर सुबह देर तक सोना

बच्चे नहीं चाहते जाना स्कूल

 नहीं चाहते पढ़ना ट्यूशन

 नहीं चाहते होमवर्क करना



तथाकथित स्मार्ट बच्चों ने

नहाया नहीं कभी झरने के नीचे

( इसमें रिस्क जो है )

तालाब किनारे कीचड़ में

लोटे नहीं स्मार्ट बच्चे

अमरूद चोरी कर खाने का

इन्हें अनुभव नहीं



स्मार्ट बच्चे सिर्फ पढ़ा करते हैं

स्मार्ट बच्चे गली-मुहल्ले में नहीं दिखा करते

स्मार्ट बच्चे टीचरों के दुलारे होते हैं

स्मार्ट बच्चों पर सभी गर्व करते हैं

शिक्षक, माता-पिता और नगरवासी!



बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती स्मार्ट बच्चों को

वही बच्चे जब बनते ओहदेदार

ओढ़ लेते लबादा देवत्व का

नहीं रह पाते आम आदमी



इस बाज़ारू-समाज में भला

कौन आम-आदमी बनने का विकल्प चुने?

कौन असुविधाओं को गले लगाए?

3.

बाज़ार




बाज़ार अब वहां नहीं होता

जहां सजती हैं दुकानें

रहते हैं क्रेता-विक्रेता



आज घर-घर सजी दुकानें

फेरीवालों, अख़बारों के

टीवी, इंटरनेट के

मोबाईल फोन के ज़रिए

बाज़ार घुसा चला आया

सबके दिलो-दिमाग़ में भी!



4.

अनुपयोगी




जिस तरह स्टोर में पड़ा

वाल्व वाला भारी-भरकम रेडियो

श्वेत-श्याम पोर्टेबल टीवी

उसी तरह आज बुजु़र्ग

हमारे घरों से

हो गए ग़ायब

क्या हम भी नहीं

हो जाएंगे एक दिन

उपेक्षित, अनुपयोगी, बेकार

कैसा लगा मेरे यार!!






5.

अम्मा



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

वरना बुजुर्गों के प्रति बढ़ती लापरवाही से

तुम्हें कितनी तकलीफ़ होती



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने आंखें मूंद लीं

वरना बीवी के गुलाम

और बाल-बच्चों में मगन

अपने बेटों का हश्र देख

तुम बहुत दुखी होतीं



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

धर्म-ग्रंथों में छपे शब्द

अब कोई नहीं बांचता

कि मां के पैरों के

नीचे होती है जन्नत

कि जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

वरना तुम्हें अक्सर

सोना पड़ता भूखे पेट

क्योंकि सुन्न हुए हाथों से

तुम बना नहीं पाती रोटियां

या घड़ी-घड़ी चाय



अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद

वरना बुजुर्गों की देखभाल के लिए

सरकारों को बनाना पड़ रहा कानून

कि उनकी एक शिकायत पर

बच्चों को हो सकती है जेल

क्या तुम बच्चों की लापरवाहियों की शिकायत

थाना-कचहरी में करतीं अम्मा?

नहीं न!

अच्छा हुआ अम्मा

तुमने ली आंखें मूंद...



सम्पर्कः टाईप 4/3, बिजुरी,अनूपपुर मप्र 484440  09907978108
Anwarsuhail_09@yahoo.co.in,                     www.sanketpatrika.blogspot.com    

रविवार, 8 सितंबर 2013

पूनम शुक्ला की कविताएं


                                                        पूनम शुक्ला
जन्म - ज्येष्ठ पूर्णिमा ,२०२९ विक्रमी । 
26 जून 1972
जन्म स्थान - बलिया , उत्तर प्रदेश 

शिक्षा - बी ० एस ० सी० आनर्स ( जीव विज्ञान ), एम ० एस ० सी ० - कम्प्यूटर साइन्स ,एम० सी ० ए ० । चार वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की ,अब कविता,गीत ,लेख ,संस्मरण,लघुकथा लेखन मे संलग्न ।
कविता संग्रह " सूरज के बीज " अनुभव प्रकाशन , गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित । सनद,सिताब दियरा,पुरवाई,बीईंग पोएट ईपत्रिका ,जनसत्ता दिल्ली,जन-जन जागरण भोपाल,जनज्वार,सारा सच,लोकसत्य,सर्वप्रथम ,गुड़गाँव मेल में रचनाएँ प्रकाशित ।पाखी,समालोचन ,फर्गुदिया ब्लाग,शब्दांकन,नव्या,दैनिक जागरण में प्रतीक्षित ।
1. शार्ट कट

शार्ट कट
हाँ है ये भी 
एक रास्ता
लक्ष्य पाने का
पर ऐसा
जिसकी जड़ें
चट कर दी गई हों
दीमकों द्वारा
जिसका न हो
कोई आधार
बस लुढ़कता,गिरता,
काँपता,सिसकता,
लार टपकाता,
डरता,कनखियों से
लोगों को निहारता,हारता
किसी भी तरह पहुँच गया हो
और गिनता हो पल
कि कब तक 
खड़ा रह पाऊँगा मैं,
अब हुआ धराशाई
अब लुढ़का,गिरा,पड़ा
कुचला जाऊँगा मैं ।

तो क्यों बनती हैं नीतियाँ
शार्ट कट की
क्यों बनती हैं सीढ़ियाँ
शार्ट कट की
लम्बी ही होती जा रही है लिस्ट
अरे कोई लगाम क्यों नहीं लगाता ?
शार्ट कट ही तो है कि
जगह-जगह रिजर्व 
कर दी गईं हैं सीटें
कमजोर को मजबूत जो बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बलत्कृत को 
कर दिया जाता है पुरस्कृत
उन्हें देवियाँ जो बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बाँट दिए जाते हैं
अनपढ़ों में लैपटाप
उन्हें जल्दी इंजीनियर बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बच्चों में बाँट दिया जाता है
मिड डे मील
जल्दी गरीबी हटाना है ।

नहीं !
नहीं होगा बदलाव
ऐसे कभी नहीं 
होगा बदलाव
तय करना होगा
एक लंबा रास्ता
एक साफ सुथरा रास्ता
और तब जो लक्ष्य मिलेगा न
उसकी जडों ने
पकड़ रखा होगा
मजबूती से धरा को
और तब
बच्चा लैपटाप बेचने
बाजार नहीं जाएगा
अप्रशिक्षित डाक्टर द्वारा
नहीं होगी मौंतें
औरतें नहीं होगी बलत्कृत
अयोग्य शिक्षक नहीं धरेगा
कमजोर नींव
और तब
शायद मिड डे मील की भी
जरूरत न पड़े ।

2. एसिड अटैक

उजबुजाता
छनछनाता
तेज आक्रोश से भरा
चुस्त दुरुस्त द्रव्य
एसिड भरा हुआ है 
बोतलों में
जो साफ कर देता है
चकत्ते,धब्बे
चमका देता है
घर,आँगन,संसद
और तुम फेंक देते हो
उन्हें चेहरों पर
मासूमों पर
कमजोरों पर ।
फेकना है तो
फेको न एसिड
जो भरा है
तुम्हारे भीतर
क्यों ? भ्रष्टाचार देखकर
बनता है न एसिड
बलात्कार देखकर
भीतर कुछ खौलता 
ही होगा
गल्तियाँ देखकर 
बड़े अधिकारियों की
आक्रोश से 
भर जाते हो कि नहीं ?
नेताओं के निकम्मेपन पर
भीतर कुछ
उजबुजाता तो
जरूर होगा
तो क्यों नहीं 
करते अटैक ?
अपने भीतर बनते
एसिड से करो अटैक
ये एसिड चमका देगा
समाज,संसद,देश ।

पता - 50 डी ,अपना इन्कलेव ,रेलवे रोड,गुड़गाँव - 122001
मोबाइल - 9818423425